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बिहार चुनाव 2020 : लालू और नितीश के फेवरेट इस नेता ने हारने पर प्रतिद्वंदी को ही बम से उड़ा दिया था

बिहार चुनाव 2020 : लालू और नितीश के फेवरेट इस नेता ने हारने पर प्रतिद्वंदी को ही बम से उड़ा दिया था

बिहार में इस समय चुनावी माहौल है। इसी के चलते सभी सियासी दल इस समय विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। सभी पार्टिया एक दूसरे पर तीखे प्रहार कर रही हैं। राज्य में चुनावी बिगुल बज चूका है। इसी बीच बात करते है बिहार के उस शख्स के बारे में जिसने चुनाव हारने के बाद अपने विरोधी को बम से उड़ा दिया।

जी हां, बिहार में सिवान जिले के महाराजगंज सीट के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह की छवि एक समय में बाहुबली नेता की ही रही है। पहले यह एक सीमेंट कारोबारी थे। फिर राजनीति में आए और साल 1995 में जब अपने ही एक शागिर्द अशोक सिंह के हाथों प्रभुनाथ सिंह विधानसभा चुनाव हारे तो यह शिकस्त उनसे बर्दाश्त नहीं हुई थी।

खा रहे हैं जेल की हवा

सूत्रों के मुताबिक 3 जुलाई 1995 की शाम करीब 7.20 मिनट पर विधायक अशोक सिंह की पटना में उनके आवास पर बम मारकर हत्या कर दी गई। इस सनसनीखेज हत्याकांड में प्रभुनाथ सिंह और उनके भाई दीनानाथ सिंह को सीधा आरोपी बनाया गया थे। फिर इस मामले में प्रभुनाथ सिंह को दोषी भी करार दिया गया और अब इस समय वो इसी मामले में जेल सजा काट रहे हैं।

कई मामले हैं दर्ज

यह कोई पहला मौका नहीं था जब प्रभुनाथ सिंह पर हत्या के आरोप लगे थे। विधायक बनने से पहले भी मशरक के पूर्व विधायक रामदेव सिंह काका की हत्या में भी उनका नाम सामने आय़ा था। फिलहाल इस मामले से बाद में अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था।

प्रभुनाथ सिंह हजारीबाग की जेल में बंद हैं उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी। प्रभुनाथ सिंह पर हत्या, अपहरण, धमकी देने, मारपीट समेत 35 से ज्यादा संगीन मामले दर्ज हैं।

सभी नेताओं के करीबी

बाहुबली की छवि रखने वाले प्रभुनाथ सिंह भले ही आज जेल में बंद हैं, लेकिन राजनीति में उनका नाम काफी ऊंचा रहा है। कभी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव तो कभी जेडीयू के वर्तमान सीएम नीतीश कुमार, प्रभुनाथ सिंह इन दोनों ही नेताओं की राजनीति में अपने लिए जगह बनाने में हमेशा कामयाब रहे हैं। माना जाता है कि प्रभुनाथ सिंह की लोकप्रियता इतनी है कि उन्हें किसी भी पार्टी का टिकट आसानी से प्राप्त हो सकता है।

सियासी सफर

साल 1985 में प्रभुनाथ सिंह ने राजनीति में कदम रखा। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सारण के मशरख विधानसभा सीट से जीत हासिल की और राज्य के बड़े नेताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। बता दें प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह, उनके जीजा गौतम सिंह और समधी विनय सिंह यह सभी राजनेता हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भी प्रभुनाथ सिंह ने जीत हासिल की थी।

साल 1995 में वो जीत की हैट्रिक नहीं लगा पाए। फिलहाल इस हार से प्रभुनाथ सिंह की राजनीतिक ठसक में कोई कमी नहीं आई। विधायकी का चुनाव हारने के बाद वो लोकसभा तक पहुंच गए। साल 1998 में समता पार्टी से टिकट हासिल कर उन्होंने महाराजगंज लोकसभा सीट से जीत हासिल की। साल 2004 में जदयू के टिकट पर सफलता प्राप्त की। फिर साल 2009 के लोकसभा चुनाव में राजद के उमाशंकर सिंह ने इन्हें हरा दिया।

ये हार इनको बर्दास्त नहीं हुई इन्होने साल 2012 में महाराजगंज सांसद उमाशंकर सिंह का निधन हो गया और उपचुनाव होने वाला था। साल 2012 में ही प्रभुनाथ सिंह जेडीयू से अलग होकर आरजेडी में शामिल हो गए।

महाराजगंज लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में आरजेडी के टिकट पर साल 2013 में प्रभुनाथ सिंह को जीत मिली। 2014 के चुनाव में प्रभुनाथ सिंह को फिर हार का सामना करना पड़ा।

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