नई दिल्ली: असम में नागरिकता कानून (CAA) लागू होने व खुद पर से ‘विदेशी’ का ठप्पा हटने की आस लगाए हुए 104 साल के चंद्रधर दास का दिल की बीमारी के बाद रविवार को निधन हो गया। बता दें कि, 2 साल पहले उन्हें विदेशियों के लिए बनाए गए डिटेंशन कैंप में रखा गया था, जहां उन्होंने 3 माह व्यतीत किए थे। जिसके बाद उन्हें बेल मिल गई थी। लेकिन बीते दिनों डिमेंशिया व दिल की बीमारी से जूझ रहे चंद्रधर दास ने ‘विदेशी’ के रूप में ही अपना दम तोड़ दिया।
‘मोदी हमारा भगवान‘ है
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चंद्रधर दास की बेटी न्युति उस दिन को याद करती हैं, जब उनके भाई के फोन पर चंद्रधर दास पीएम नरेंद्र मोदी का भाषण सुन रहे थे। प्रधानमंत्री के भाषण को सुनकर उनके पिता मुस्कुराए और बोले कि, ‘मोदी आमार भोगोवन (मोदी मेरे भगवान हैं)। वह सब कुछ ठीक कर देंगे।
नागरिकता कानून है ना, हम सभी भारतीय बन जाएंगे। न्युति ने बताया कि उनके पिता को हमेशा से ये उम्मीद रही कि एक दिन उन्हें भारतीय नागरिकता मिल ही जाएगी। वह जहां कहीं भी पीएम मोदी के पोस्टर को देखते थे, उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार करते और अपना सिर भी झुकाते थे।
आगे न्युति ने बताया कि, ‘पीएम मोदी से उन्हें काफी बड़ी उम्मीद थी। इस कानून को बने तो एक साल हो गए, लेकिन उनके ‘भगवान’ ने क्या किया?’ न्युति का कहना है कि वह सिर्फ भारतीय होकर ही मृत्यु को प्राप्त होना चाहते थे।
हमने काफी कोशिश की और कोर्ट-कोर्ट में भटके, वकीलों से लेकर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात की, सभी पेपर्स जमा किए और फिर पिता भी चले गए। हम लोग अभी भी कानून की नजर में विदेशी हैं। नागरिकता कानून ने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया है।
ये है चंद्रधर दास की कहानी
चंद्रधर दास के बेटे गौरांग के मुताबिक, वह उन्हें पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने की कहानियां सुनाया करते थे। वहां पर हत्याओं का सिलसिला जारी था, इसलिए वह सीमा पार करके भारत के त्रिपुरा चले आए थे। वहीं ये करीब 50-60 के दशक की बात होगी।
चंद्रधर दास त्रिपुरा से काफी कठिन यात्रा करके असम पहुंचे थे। भरण-पोषण के लिए वह मूरी के लड्डू बेचते थे। काफी साल गुजरते गए फिर एक दिन साल 2018 में कुछ अधिकारियों ने उन्हें घर से उठा लिया और विदेशियों के लिए बने डिटेंशन कैंप में डाल दिया।
जून 2018 में चंद्रधर दास को जमानत मिल तो गई, लेकिन उनके परिवार का केस अभी भी कोर्ट में है। परिजनों के अनुसार, जीवन के अंतिम दिनों में दास डिमेंशिया के शिकार हो गए थे। वह सिर्फ खाते, सोते और कम ही बात करते थे। अगर वे जब भी बात करते थे, तो अपने केस के बारे में ही पूछा करते थे।
उन्हें ऐसा लगता था कि मोदी सरकार ने इसे सुलझा लिया होगा। लेकिन हमें उन्हें ये बात बताने की बिल्कुल भी हिम्मत नहीं होती थी कि केस अभी भी वैसा का वैसा ही है। बता दें कि, चंद्रधर दास भारतीय नागरिकता के साथ मरना चाहते थे, लेकिन नागरिकता कानून को लागू होने की प्रक्रिया में देरी की वजह से वह ‘विदेशी’ के रूप में ही दुनिया को अलविदा कह गए।