सड़कों के किनारे और गली मोहल्लों में भिखारियों को देखकर नाक भौं सिकोड़ने वाले लोग तो हजारों मिलेगें , लेकिन आज हम आपको एक ऐसे नौजवान के बारे में बताने जा रहे है, जिसने जानें कितने भिखारियों की जिंदगी को सवारां है. तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली जिले में मुसिरी के रहने वाले पी नवीन ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और अपने संस्थान के श्रेष्ठ छात्र रहे हैं, लेकिन वह पिछले छह बरस से सिर्फ भिखारियों के कल्याण में लगे हैं.
स्थापित किया अत्चयम ट्रस्ट
नवीन ने 2014 में तीन लोगों के साथ एक गैर सरकारी संगठन ‘अत्चयम ट्रस्ट’ की स्थापना की थी. आज उनका यह ट्रस्ट तमिलनाडु के 18 जिलों तक फैल चुका है और 4300 से अधिक भिखारियों की काउंसलिंग करने के साथ ही 424 भिखारियों को एक नयी जिंदगी देकर उनका पुनर्वास कर चुका है. नवीन के सफर में आज 400 से ज्यादा स्वयं सेवकों का कारवां जुड़ चुका है.
2015 -16 के लिए राष्ट्रीय युवा पुरस्कार जीतने वाले नवीन को 2019 में मुख्यमंत्री के राज्य युवा पुरस्कार के लिए चुना गया. अपने काम के लिए कुल 40 से ज्यादा पुरस्कार हासिल करने वाले नवीन बताते हैं कि कई बार एक बेहतर जीवन ही नहीं बल्कि एक सम्मानित मृत्यु की चाह में भी लोग भिक्षावृत्ति छोड़ने का उनका परामर्श मान लेते हैं.
बताई एक कहानी
ऐसी ही एक घटना का जिक्र करते हुए नवीन ने बताया कि उन्होंने एक भिखारी का पुनर्वास करके उसे आश्रम में पहुंचाया. वह कुछ दिन तो आश्रम में रहा, लेकिन फिर कई कारणों से भिक्षावृत्ति के रास्ते पर वापस लौट गया. तकरीबन एक वर्ष बाद नवीन जब दोबारा उस व्यक्ति से मिले तो वह वृद्धाश्रम जाने के लिए तत्काल राजी हो गया.
पूछने पर उसने बताया कि पिछले दिनों उसका एक साथी भिखारी बीमारी के कारण सड़क किनारे लावारिस मर गया और उसके शव को भी कोई उठाने वाला नहीं था. वह खुद इस तरह की मौत नहीं मरना चाहता था, इसलिए वृद्धाश्रम जाने को तैयार हुआ.
नहीं देखा जाता था लोगों का दुख
नवीन ने बताया कि, “मैंने तब यह काम शुरू किया था, जब मैं इंजीनियरिंग कर रहा था. मेरे पास रात के खाने तक के पैसे सिर्फ ₹10 ही होते थे, मैंने खाना खाने के लिए सड़क किनारे इंस्टॉल देखा. उसी समय मेरी मुलाकात भिखारियों से भी हो जाया करती थी, कभी-कभी भिखारी पैसे के लिए मेरे पास आते और हम उन्हें खाना खरीद कर देते थे और खुद भूखे सो जाते थे”.
प्रोफेसर ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर आचार्यम की स्थापना की और अपने वेतन, छोटे दान और ट्रस्ट के माध्यम से 18 जिलों में 400 स्वयं सेवकों की एक टीम के साथ 572 भिखारियों को पुनर्स्थापित किया. ऐसा वो इसलिए करते थे, क्योंकि उनसे उन गरीब असहाय लोगों को ऐसे देखा नहीं जाता था. वो चाहते थे कि उन गरीबों के लिए वो कुछ कर सके.