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एक मजदूर ने 7 साल पहले बचाई थी लड़की की इज्जत, अब ऐसे चुकाया एहसान बदल दी पूरी जिंदगी

एक मजदूर ने 7 साल पहले बचाई थी लड़की की इज्जत, अब ऐसे चुकाया एहसान बदल दी पूरी जिंदगी

हमारे समाज में लड़की की इज्जत को सर्वोपरि रखा जाता है, लेकिन समाज में फैले कुछ अराजक तत्व परिवार की जमापूंजी पर अपनी गंदी नज़र बनाए रखते है. आज हम आपको एक ऐसे श्रमिक की कहानी बताने जा रहे है, जिसे सुनकर आपको एक कहावत याद आ जाएगी कर भला तो हो भला.

कौन था वो श्रमिक, क्या थी घटना

शिवदास राना एक मजदूर परिवार से आता है. वो अपनी दैनिक ज़रूरतों को मजदूरी से पूरा करता था. उसकी परिवार में उसकी पत्नी और 2 छोटे बच्चे थे. मजदूरी करते हुए उनकी आवश्यकता को पूरा करता है. वह सुबह 6 बजे मजदूरी पर अपनी साइकिल से निकल जाता था और वापस आते जब तक अंधेरा हों जाता था. इसी तरह उनकी दैनिक टाइम बन चुका था. उसी रोज शिवदान पास के गांव कोलार में मजदूरी करने गया था. हमेशा तो वो अपने तीन दोस्तो के साथ काम पर जाता था औऱ साथ ही लौटता था, लेकिन एक दिन वो काम से अकेले लौट रहा था तभी अचानक से उसे लड़की के चीखने की आवाज सुनाई दी.

राना भाग कर वहां पहुचां तो देखा कुछ आदमी एक बच्ची की इज्जत लूटना चाह रहे थे. जब उन्होंने शिवदास को देखा तो उसे मारने के लिए उस पर टूट पड़े पर शिवदान उनसे लड़ता रहा और खुद लहूलुहान हो गया. लड़के इस से डर कर भाग गए. बुरी तरह जख्मी शिवदान अपनी हिम्मत नहीं हारा उसने उस मासूम सी बच्ची को अपनी साइकिल पर बैठाया और उसे उसके परिवार के पास केबी कॉलोनी में पहुंचा दिया. शिवदास अपने जख्म की वजह से वहीं बेहोस होकर गिर गया. लड़की के घर वालों ने उसको पास के अस्पताल में भर्ती कराया.

कैसे चुकाया एहसान

उस लड़की के पापा भारतीय सेना में एक अधिकारी थे. उस दिन वह मासूम बच्ची अपने किसी दोस्त के साथ घूमने गई थी, जहाँ कुछ लड़कें उसके साथ बदसुलूकी करने लगे, जिसे देखकर उसका दोस्त भाग गया. रश्मि उस टाइम होटल मैनेजमेंट की शिक्षा ले रही थी. घटना के कुछ दिन बाद रश्मि और उसके पिता अविनाश उसके घर पहुंच हुए थे, जहां उसकी पत्नी ने कहा वो शाम तक आयेंगे. रश्मि और उसके पिता वहीं बैठ गए और इंतज़ार करने लगे.

पुलिस देख डर गया था शिवदान

शाम को जब शिवदान अपने घर के करीब पहुंचा तो वहां पुलिस देख कर मन ही मन घबरा रहा था और किसी अनहोनी की आंशका में डूबा जा रहा था,लेकिन जब वह घर पहुंचा तो पाया कि वहां एक सेना का अधिकारी अपनी बेटी के साथ बैठे थे. उनके साथ सेना के 3 और जवान भी थे. शिवदान को कुछ सूझ नहीं रहा था जब रश्मि ने उठ कर उसके पांव छुए और 7 साल पहले वाली घटना बताई.

शिवदान तो उस घटना को एक सपने की तरह मान कर कब का भूल चुका था, किन्तु रश्मि उस घटना को नहीं भूली क्योंकि शिवदान ने उसे एक नई जिन्दगी दी.

रश्मि के पिता ने बनाया शिवदान के लिए घर

रश्मि के पिता ने शिवदान को कोलार में एक घर खरीद कर दिया और एक ऑटो दिलवाया. रश्मि ने बैंगलोर में एक होटल खोल कर रखा है और वो आज भी कुंवारी है. शिवदान के बच्चो को अपने पास रख कर वो बैंगलोर की हाई स्कूल में पढ़ाती है. रश्मि शिवदान से मिलने भी आती रहती है.

मेरा नाम दिव्यांका शुक्ला है। मैं hindnow वेब साइट पर कंटेट राइटर के पद पर कार्यरत...

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