Cheteshwar Pujara: भारतीय क्रिकेट में एक ऐसा दौर समाप्त हो गया है, जिसने धैर्य, तकनीक और क्लास की मिसाल पेश की। चेतेश्वर पुजारा (Cheteshwar Pujara), भारतीय टेस्ट टीम की दीवार, ने सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा कर दी है। पुजारा (Cheteshwar Pujara) ने सोशल मीडिया पर भावुक पोस्ट साझा करते हुए लिखा, “भारतीय जर्सी पहनना, राष्ट्रगान गाना और हर बार मैदान पर अपनी पूरी जान लगाना, इन सबका क्या मतलब था, इसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। लेकिन जैसा कि कहते हैं, हर अच्छी चीज़ का एक अंत होता है। इसी भाव के साथ मैं भारतीय क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास ले रहा हूं।”
सबसे भरोसेमंद नंबर 3 के बल्लेबाज
2010 में भारत के लिए डेब्यू करने वाले पुजारा (Cheteshwar Pujara) ने 103 टेस्ट में 7195 रन बनाए, जिसमें 19 शतक और 35 अर्धशतक शामिल हैं। 43.60 की औसत और खासतौर पर घरेलू सरजमीं पर 52.58 की शानदार औसत ने उन्हें टेस्ट क्रिकेट में टीम इंडिया का सबसे भरोसेमंद नंबर-3 बल्लेबाज़ बना दिया। उनका आखिरी टेस्ट वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप 2023 का फाइनल था, जो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इंग्लैंड के ‘द ओवल’ में खेला गया। इसके बाद चयनकर्ताओं ने नई खिलाड़ियों को आजमाने का फैसला लिया, लेकिन पुजारा ने सौराष्ट्र और ससेक्स के लिए रेड-बॉल क्रिकेट खेलते हुए अपनी जिद और जुनून जारी रखा।
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खेली कई ऐतिहासिक पारियां
2012 में न्यूजीलैंड के खिलाफ अपने पहले टेस्ट शतक से लेकर इंग्लैंड के खिलाफ दोहरा शतक और साउथ अफ्रीका में 153 रनों की लगभग 6 घंटे लंबी पारी, पुजारा (Cheteshwar Pujara) की बल्लेबाज़ी भारतीय क्रिकेट की सबसे शांत और स्थिर ताकत रही। उन्होंने इंग्लैंड, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका जैसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में कई बार भारत की लाज बचाई।
2018-19 की बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी में पुजारा ने एडिलेड, मेलबर्न और सिडनी में शतक जमाए, और भारत को ऐतिहासिक सीरीज़ जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। 2021 का ऑस्ट्रेलिया दौरा भी उनके जुझारूपन के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। कंगारू टीम के गेंदबाजों ने कई बार उनके शरीर को निशाना बनाया, लेकिन वह झुके नहीं। उन्होंने 928 गेंदों का सामना करते हुए भारत को एक और ऐतिहासिक जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
नायक के रूप में रखे जाएंगे याद
चेतेश्वर पुजारा (Cheteshwar Pujara) सिर्फ एक बल्लेबाज़ नहीं थे, वह टेस्ट क्रिकेट की आत्मा थे। खासकर उस दौर में जब टी20 क्रिकेट और आक्रामकता को ही प्राथमिकता दी जा रही थी। उन्होंने बताया कि टेस्ट मैच में टिकना, जूझना और समय को मात देना भी उतना ही अहम है जितना रन बनाना। उनकी रक्षात्मक तकनीक और मानसिक दृढ़ता आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल है। भारतीय क्रिकेट पुजारा को हमेशा याद रखेगा, जिन्होंने ग्लैमर नहीं, बल्कि धैर्य को को अपना हथियार बनाया।
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