Posted inक्रिकेट

खुशखबरी: फाइजर के कोरोना वैक्सीन को मिली अगले दौर की कामयाबी, जल्द मिलेगा वैक्सीन

खुशखबरी: फाइजर के कोरोना वैक्सीन को मिली अगले दौर की कामयाबी, जल्द मिलेगा वैक्सीन

दिल्ली- सभी देशों में कोरोना वायरस का कहर चरम पर है। भारत में कोरोना वायरस से 14 लाख लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं, वहीं विश्व में करोड़ों लोग इस वायरस से प्रभावित हैं। वैज्ञानिक लगातार कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं। मंगलवार को वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। कुल 177 कोविड- 19 वैक्सीन में से 36 वैक्सीन, इंसानों पर परीक्षण के दौर में पहुंच चुके हैं। वहीं, चीन की दवा निर्माता कंपनी कैनसिनो बायोलॉजिक्स ने मिलिट्री मेडिकल साइंसेज स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ बायॉलजी की साझेदारी में विकसित की गई वैक्सीन को इलाज में सीमित इस्तेमाल की मंजूरी भी मिल चुकी है।

अमेरिकी कंपनी का आखिरी चरण में पहुंचा ट्रायल

अमेरिकी दवा निर्माता कंपनी फाइजर ने कोविड- 19 के खिलाफ वैक्सीन बनाने के लिए जर्मन बायोटेक फर्म के साथ समझौता किया है। इनकी साझेदारी में बन रहा कोरोना का टीका इंसानों पर परीक्षण के आखिरी चरण में पहुंच चुका है। मॉडर्ना थिराप्युटिक्स की तर्ज पर ही फाइजर ने भी ऐलान कर दिया है कि उसका वैक्सीन कैंडिडेट दूसरे से तीसरे चरण से आगे बढ़ चुका है।

फाइजर ने बताया कि उसके वैक्सीन कैंडिडेट का नाम बीएनटी 162बी2 है। अब फाइजर अपने वैक्सीन का एक साथ दो चरणों में परीक्षण करेगी। कंपनी का मकसद वैक्सीन को जल्द से जल्द इस्तेमाल के लिए उपलब्ध करवाना है।

बंदरों में तगड़ा इम्‍यून रेस्‍पांस डिवेलप किया

अमेर‍िकी बायोटेक कंपनी मॉडर्ना और नैशनल इंस्‍टीट्यूट्स फॉर हेल्‍थ की वैक्‍सीन पर नई स्‍टडी मंगलवार को प्रकाशित हुई है। न्‍यू इंग्‍लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, वैक्‍सीन ने सफलतापूर्वक बंदरों में तगड़ा इम्‍यून रेस्‍पांस डिवेलप किया है।

वैक्‍सीन उनकी नाक और फेफड़ों में कोरोना को अपनी कॉपी बनाने से रोकने में भी सफल रही। नाक में वायरस को अपनी कॉपीज बनाने से रोकना बेहद महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि इससे वायरस का दूसरों तक फैलना रुक जाता है।

जब ऑक्‍सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्‍सीन का बंदरों पर ट्रायल हुआ था, तब ऐसे नतीजे नहीं आए थे। इसलिए मॉडर्ना की वैक्‍सीन से उम्‍मीदें और बढ़ गई हैं।

कोरोना वायरस को कॉपी बनाने से रोकने में सफल रही वैक्सीन

बंदरों पर हुए ट्रायल में पूरी तरह असरदार रही है। न्‍यू इंग्‍लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, वैक्‍सीन ने सफलतापूर्वक बंदरों में तगड़ा इम्‍यून रेस्‍पांस डेवलप किया। वैक्‍सीन उनकी नाक और फेफड़ों में कोरोना को अपनी कॉपी बनाने से रोकने में भी सफल रही।

नाक में वायरस को अपनी कॉपीज बनाने से रोकना बेहद महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि इससे वायरस का दूसरों तक फैलना रुक जाता है। जब ऑक्‍सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्‍सीन का बंदरों पर ट्रायल हुआ था, तब ऐसे नतीजे नहीं आए थे। इसलिए मॉडर्ना की वैक्‍सीन से उम्‍मीदें और बढ़ गई हैं।

नाक और ट्यूब के जरिए सीधे फेफड़ों तक वायरस पहुंचाया गया

मॉडर्ना ने एनिमल स्‍टडी में 8 बंदरों के तीन ग्रुप्‍स को या तो वैक्‍सीन दी या प्‍लेसीबो। वैक्‍सीन की जो डोज थी, 10 माइक्रोग्राम और 100 माइक्रोग्राम। खास बात ये है कि जिन बंदरों को दोनों डोज दी गईं, उनमें ऐंटीबॉडीज का स्‍तर कोविड-19 से रिकवर हो चुके इंसानों में मौजूद ऐंटीबॉडीज से भी ज्‍यादा था।

साइंटिस्‍ट्स ने बंदरों को वैक्‍सीन का दूसरा इंजेक्‍शन देने के चार हफ्ते बाद उन्‍हें कोविड-19 वायरस से एक्‍सपोज किया। नाक और ट्यूब के जरिए सीधे फेफड़ों तक वायरस पहुंचाया गया। लो और हाई डोज वाले आठ-आठ बंदरों के ग्रुप में सात-सात के फेफड़ों में दो दिन बाद कोई रेप्लिकेटिंग वायरस नहीं था। जबकि जिन्‍हें प्‍लेसीबो दिया गया था, उन सबमें वायरस मौजूद था।

साइंटिस्‍ट्स ने बंदरों को वैक्‍सीन का दूसरा इंजेक्‍शन देने के चार हफ्ते बाद उन्‍हें कोविड-19 वायरस से एक्‍सपोज किया। नाक और ट्यूब के जरिए सीधे फेफड़ों तक वायरस पहुंचाया गया। लो और हाई डोज वाले आठ-आठ बंदरों के ग्रुप में सात-सात के फेफड़ों में दो दिन बाद कोई रेप्लिकेटिंग वायरस नहीं था। जबकि जिन्‍हें प्‍लेसीबो दिया गया था, उन सबमें वायरस मौजूद था।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version