सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल फरवरी में आदेश दिया था कि पुरुषों की तरह महिला अफसरों को भी सेना में परमानेंट कमीशन दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद सेना ने ऐसी 615 महिला अफसरों में से सिर्फ 277 को ही परमानेंट कमीशन दिया और बाकी को या तो रिजेक्ट किया गया या फिर उनका मामला लंबित कर दिया गया था. ये कहकर कि कई अफसर मेडिकल में अनफिट हैं.
इस पर महिला अफसरों का कहना था कि उन्हें गलत तरीके से अनफिट बताया गया है. इसलिए कुछ अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. इस याचिका पर कोर्ट में सुनवाई भी हो चुकी है. महिला अफसरों की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने बताया कि कुछ महिलाएं जिनका मामला अभी कोर्ट में लंबित है उनको जनवरी के महीने से सैलरी नहीं दी गई है. आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आगे क्या फैसला लिया है..
गलत पैमाना अपना कर किया गया रिजेक्ट
इसी वर्ष फरवरी में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़(Dhananjaya Yeshwant Chandrachud) ने मौखिक तौर पर सरकारी वकील से कहा था कि सभी अफसरों की सैलरी को जल्द से जल्द रिलीज किया जाए. हालांकि इस बात पर कोई लिखित आदेश नहीं दिया गया था. वहीं मार्च में हुई सुनवाई में महिला अफसरों के वकील परमजीत सिंह पटवालिया ने बताया था कि गलत पैमाना अपना कर महिला अफसरों को रिजेक्ट किया गया है.
17 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद थलसेना (Army) में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हो गया था. कोर्ट ने फरवरी में एक अहम फैसले में कहा था कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं. अदालत ने केंद्र की उस दलील को निराशाजनक बताया था, जिसमें महिलाओं को कमांड पोस्ट न देने के पीछे शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मानदंडों का हवाला दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत 14 साल से कम और उससे ज्यादा सेवाएं दे चुकीं महिला अफसरों को परमानेंट कमीशन का मौका दिया जाए. महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और सेना पर छोड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जंग में सीधे शामिल होने वाली जिम्मेदारियां (कॉम्बैट रोल) में महिलाओं की तैनाती नीतिगत मामला है. दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यही कहा था. इसलिए सरकार को इस बारे में सोचना होगा.’