वाइट हाउस में जो बाइडेन की एंट्री अब लगभग पक्की हो चली है। बाइडेन पुराने राष्ट्रपतियों की राह पर चलेंगे या नई लकीर खींचेंगे, यह देखने वाली बात होगी। भारत के लिहाज से देखें तो कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां वे वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ढर्रे पर चलेंगे। कुछ में वे बदलाव कर सकते हैं।
21वीं सदी में भारत और अमेरिका के रक्षा, रणनीतिक और सुरक्षा संबंध मजबूत हुए हैं, फिर राष्ट्रपति की कुर्सी पर चाहे रिपब्लिकन बैठा रहा हो या डेमोक्रेट। यही ट्रेंड बाइडेन प्रशासन में भी बरकरार रहने के आसार हैं। लेकिन चीन को लेकर बाइडेन कैंप में भी दो धड़े हैं, जिसका असर भारत पर पड़ सकता है।
नीतियां बनाने में कमला हैरिस का बड़ा रोल
जो बाइडेन के साथ कमला हैरिस भी हैं जो उप–राष्ट्रपति होंगी। वह नीतिगत मामलों में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं क्योंकि बाइडेन इशारा कर चुके हैं कि वह एक कार्यकाल के लिए ही राष्ट्रपति रहेंगे। हैरिस 2024 के लिए राष्ट्रपति उम्मीदवार हो सकती हैं, ऐसे में विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
एक जैसी वैश्विक चुनौतियों से कैसे निपटेंगे?
बाइडेन ने अपने चुनाव प्रसार के दौरान भारतीय–अमेरिकियों से संपर्क किया है। वह भारत के लिए उदार सोच रखते हैं। चूंकि अमेरिका और भारत के रिश्ते अब संस्थागत हो चले हैं, ऐसे में उसमें बदलाव कर पाना मुश्किल होगा। बाइडेन के प्रमुख रणनीतिकार एंथनी ब्लिंकेन कह चुके हैं, कि
“हम एक जैसी वैश्विक चुनौतियों से बिना भारत को साथ लिए नहीं निपट सकते भारत के साथ रिश्तों को मजबूत और गहरा करना हमारी उच्च प्राथमिकता में रहने वाला है।“
मानवाधिकार उल्लंघन पर क्या स्टैंड लेंगे बाइडेन
बाइडेन प्रशासन भारत में मानवाधिकार उल्लंघन पर नजर रख सकता है। इसके अलावा हिंदू बहुसंख्यकवाद, जम्मू और कश्मीर का भी संज्ञान लिया जा सकता है। डेमोक्रेट्स से भरी कांग्रेस में भारत के खिलाफ ऐसी चीजों पर पैनी नजर रह सकती है।
रक्षा और सुरक्षा पर कैसा होगा साथ
बाइडेन प्रशासन और भारत के बीच रक्षा, रणनीतिक और सुरक्षा संबंध उसी तरफ आगे बढ़ने की संभावना है, जो दिशा 2000s से पकड़ी गई है।
व्यापारिक मामलों पर क्या है बाइडेन का मूड
भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में परेशानी रहेगी, चाहे सत्ता में कोई भी हो। ओबामा प्रशासन के दौरान भी नई दिल्ली और वाशिंगटन में इस क्षेत्र को लेकर तनातनी रहती थी। बाइडेन प्रशासन में भी भारत को व्यापार में कोई खास छूट मिलने के आसार नहीं हैं। इसके अलावा बाइडेन का ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन‘ का अपना वर्शन भी है। बाइडेन के टॉप एडवाइजर बिल टर्न्स कह चुके हैं कि ”अमेरिकी विदेश नीति को सबसे पहले घरेलू बाजार को दोबारा खड़ा करने का समर्थन करना ही चाहिए।”
चीन के साथ कैसे रहेंगे संबंध
टीम बाइडेन में चीन को लेकर मतभेद हैं। इसका असर भारत–अमेरिका और भारत–चीन के रिश्तों पर भी देखने को मिलेगा। बाइडेन के कुछ सलाहकारों ने चीन को लेकर ट्रंप जैसी राय रखी है। बाकी कहते हैं कि अमेरिकी और चीनी अर्थव्यवस्थाओं को अलग करना नामुमकिन है, ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा और क्रिटिकल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अलगाव हो सकता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
इंडो–पैसिफिक में कैसा रहेगा रुख
बाइडेन कैम्पेन में इंडो–पैसिफिक को लेकर रणनीति साफ नहीं की गई है। चूंकि यह इलाका भारतीय विदेश नीति के केंद्र में है, इसलिए इसपर नजर रखनी ही पड़ेगी।
अफगानिस्तान में क्या रहेगा रवैया
बाइडेन ने ही प्रस्ताव दिया था कि अमेरिकी सेनाअफगानिस्तान में केवल काउंटर–टेररिज्म के लिए ही रहे। ऐसे में ट्रंप ने सैनिकों को वापस बुलाने का जो आदेश दिया था, उसके वापस लिए जाने की संभावना कम ही है।
H-1B वीजा मुद्दा
H-1B वीजा के पुराने रूप में लौटने की संभावना न के बराबर है। हालांकि इससे भारतीयों पर असर पड़ सकता है लेकिन महामारी ने जिस तरह से रिमोट वर्किंग को बढ़ावा दिया है, उससे वह असर कम होने की उम्मीद है।
पेरिस समझौता
बाइडेन निश्चित रूप से अमेरिका को वापस पेरिस जलवायु समझौते का हिस्सा बनाएंगे। लेकिन भारत कोयला इस्तेमाल को लेकर बाइडेन के सामने घिर सकता है।