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6,6,6,6,6,4,4,4,4,4….. रणजी में इस भारतीय बल्लेबाज पर आ गई पुजारा की आत्मा, 443 रन की तूफानी पारी से वर्ल्ड क्रिकेट के उड़ाए होश

Ranji

Ranji Trophy: छक्कों-चौकों की बारिश, गेंदबाजों के उड़े होश और एक बल्लेबाज जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। रणजी (Ranji Trophy) में ऐसी तूफानी पारी कम ही देखने को मिलती है, जहां एक खिलाड़ी अकेले दम पर विपक्षी टीम के लिए सिरदर्द बन जाए। भारतीय क्रिकेट में जब लंबी और मैराथन पारियों की बात होती है, तो चेतेश्वर पुजारा का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है। लेकिन घरेलू क्रिकेट में एक ऐसे बल्लेबाज ने इतिहास रच दिया था, जिसने पुजारा से भी आगे बढ़कर क्रिकेट की दुनिया में अपनी अलग छाप छोड़ी।

Ranji Trophy में रिकॉर्डतो़ड़ प्रदर्शन

हम जिस बल्लेबाज की बात कर रहे हैं वो हैं भाऊसाहेब निंबालकर (Bhausaheb Nimbalkar)। भाऊसाहब ने 1948 में पुणे के मैदान पर महाराष्ट्र और काठिवार के बीच खेले गए रणजी (Ranji Trophy) मैच में 443 रनों की अविश्वसनीय पारी खेली।

उन्होंने 494 मिनट तक क्रीज पर टिके रहकर अपनी टीम को 826/4 के विशाल स्कोर तक पहुंचाया। यह कोई साधारण पारी नहीं थी, बल्कि रणजी इतिहास में दर्ज एक अद्वितीय प्रदर्शन था। उनके इस प्रदर्शन से क्रिकेट जगत भौंचक्का रह गया था।

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निंबालकर और पुजारा: लंबी पारियों के दो महारथी

भाऊसाहेब निंबालकर, जिन्होंने रणजी (Ranji Trophy) में अपनी इस मैराथन पारी से क्रिकेट जगत को चौंका दिया। उनकी बल्लेबाजी शैली में एक अलग धैर्य और तकनीकी कौशल था, जो आज के जमाने में चेतेश्वर पुजारा की बल्लेबाजी से मेल खाता है।

पुजारा जिस तरह लंबी पारियां खेलने के लिए जाने जाते हैं, उसी तरह निंबालकर भी अपने समय में गेंदबाजों को थका देने के लिए मशहूर थे। उनकी रणजी की इस पारी में आक्रामकता और संतुलन दोनों का बेहतरीन मिश्रण देखने को मिला।

Ranji इतिहास में निंबालकर की अमर पारी

कमल भंडारकर के 205 रनों के योगदान के साथ, महाराष्ट्र ने रणजी के मैच में अपनी स्थिति बेहद मजबूत कर ली थी। काठिवार की टीम पहली पारी में 238 रन ही बना सकी और इस बड़ी बढ़त के आधार पर महाराष्ट्र को विजेता घोषित किया गया। हालांकि, निंबालकर की यह पारी क्रिकेट इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गई।

आज जब कोई भारतीय बल्लेबाज लंबी पारी खेलता है, तो उसकी तुलना पुजारा से की जाती है। लेकिन अगर इतिहास के पन्ने पलटे जाएं, तो रणजी (Ranji Trophy) में भाऊसाहेब निंबालकर की यह पारी सबसे ऊंचे स्थान पर नजर आती है। यह सिर्फ रन बनाने की बात नहीं थी, बल्कि धैर्य, तकनीक और खेल के प्रति निष्ठा की अद्वितीय मिसाल थी।

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