पेशवा नाना साहेब
पेशवा नाना साहेब को भला कौन नहीं जानता। उन्हें स्वतंत्रता संग्राम का शिल्पकार कहा जाता है। नाना साहेब के जीवन काल के कई दस्तावेज मिलेंगे, लेकिन वह शहीद कहां हुए इस बारे में कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है। वहीं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 1857 में नाना साहेब की मृत्यु मलेरिया बुखार से हो गई थी। इस बात के भी सुबूत हैं कि 1958 में रानी लक्ष्मी बाई, तांत्या टोपे और राव साहेब ने नाना साहेब को अपना पेशवा माना था। और यह भी कहा जाता है कि नाना साहेब 1859 में नेपाल चले गये थे, जहां एक शिकार के दौरान वो एक बाघ के हमले से घायल हो गये और उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद यह पर भी एक सुबूत थे कि 1860 में अंग्रेजों को उनके नेपाल में होने की खबर मिली थी।
यही नहीं यह भी कहा गया कि नाना साहब गुजरात के एक मंदिर में 46 साल तक एक ब्राह्मण दयानंद महाराज बन कर रहे। नाना साहेब के गुरू हर्षराम मेहता के भाई कल्याणजी मेहता ने एक डायरी लिखी कल्याणजी ने अंग्रेजों से बचने में नाना साहेब की मदद की थी। उनकी डायरी के अनुसार नाना साहब गुजरात आए और उनकी मृत्यु 1903 में हुई थी।
बाजीराव उर्फ सूरज प्रताप ने 1953 में एक अखबार के हवाले से ये दावा किया था कि नाना साहब की मृत्यु 1926 में हुई थी। सूरज प्रताप ने बताया था कि वो नाना साहब के पोते हैं। नाना साहब की मृत्यु को लेकर कई दावे किये गए, लेकिन उनकी मृत्यु कब, कहाँ कैसे हुई इतिहासकारो द्वारा इसका कोई प्रमाण नहीं दिया गया।