दिवाली का त्यौहार हजारों खुशियां लेकर आता है, जिसे हर समाज वर्ग के लोग हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं. दिवाली के दिन लोग प्रसन्नता के साथ एक दूसरे को त्यौहार की बधाइयां देते हैं और मिठाई बांटते हैं. दीपों का यह त्योहार सभी की जिंदगी में हजारों खुशियां लेकर आता है. लेकिन क्या आपको पता है कि, मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के कनेरी गांव में दिवाली जैसे पावन त्यौहार को लेकर एक अनोखी परंपरा है? जी हां, इस अनोखी परंपरा के चलते रतलाम जिले के कनेरी गांव में गुर्जर समाज के सभी लोग 3 दिनों तक ब्रह्मणों का चेहरा नहीं देखते.
क्या है पूरी परंपरा
दरअसल मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के कनेरी गांव में गुर्जर समाज के लोगों में पीढ़ियों से यह पुरानी परंपरा चली आ रही है. इस परंपरा के चलते गुर्जर समाज के लोग दिवाली के दिन सभी लोग एक साथ इकट्ठा होकर गांव के पास कनेरी नदी पर जुलूस के साथ पहुंचते हैं. यह लोग एक कतार में खड़े हो जाते हैं और लंबी बेर को हाथ में लेकर उस बेर को पानी में बहा कर विशेष पूजा करते हैं. विशेष पूजा हो जाने के बाद सभी लोग मिलकर अपने घर से लाया हुआ भोजन करते हैं. इस तरह से यह लोग अपनी विशेष परंपरा को पूरी विधि के साथ करते हैं.
पूर्वजों ने शुरू की थी यह परंपरा
गुर्जर समाज के लोग इस बारे में बताते हैं कि, यह परंपरा उनके पूर्वजों ने ही शुरू की थी. तब से यह लोग यह रीति निभाते चले आ रहे हैं. गुर्जर समाज के लिए दिवाली का दिन सबसे बड़े सर आज का दिन होता है. नदी के किनारे इकट्ठे होकर यह लोग हाथ में बेर पकड़कर अपने पितृ की पूजा करते हैं और एकजुट रहने का संकल्प करते हैं. गुर्जर समाज की इस परंपरा से जुड़ी एक खास कहानी भी है.
आराध्य भगवान देवनारायण की माता ने ब्राह्मणों को दिया था श्राप
गुर्जर समाज के लोग बताते हैं कि, बहुत समय पहले समाज के आराध्य भगवान देवनारायण की माता ने ब्राह्मणों को श्राप दे दिया था. इस श्राप के मुताबिक दिवाली के 3 दिन रूप चौदस, दीपावली और पड़वी तक कोई भी ब्राम्हण गुर्जर समाज के सामने नहीं आ सकता है. इतना ही नहीं गुर्जर समाज के भी लोग इन 3 दिनों में किसी भी ब्राह्मण का चेहरा नहीं देख सकते हैं. उसी समय से लेकर आज तक गुर्जर समाज दिवाली पर यह विशेष पूजा करता आ रहा है. इस दिन कोई भी ब्राह्मण गुर्जर समाज के सामने नहीं आ सकता और ना ही कोई ब्राह्मणों के सामने जा सकता है. यह परंपरा इतनी खास है कि इस दिन गांव में रहने वाले सभी ब्राम्हण अपने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लेते हैं.
वैसे तो यह परंपरा बहुत पुरानी है, लेकिन अब लोगों में जागरूकता आ गई है. इस परंपरा को मानने वाले लोगों की संख्या भी कम हो गई है. फिर भी कुछ ऐसे पुराने लोग हैं, जो आज भी अपनी परंपरा को पूरे विधि-विधान से मनाते हैं. दिवाली के दिन जब गुर्जर समाज में इस विशेष पूजा के लिए लोग बाहर आते हैं, तो पूरे गांव में सन्नाटा छा जाता है. उस समय गांव का कोई भी व्यक्ति अपने घर से बाहर नहीं निकलता है.