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देवभूमि उत्तराखंड में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा लोक पर्व Phool Dei, जानें त्योहार का महत्व

Phool Dei

देवों की भूमि उत्तराखंड के लिए आज का दिन बेहद ही खास है। बता दें आज से उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई (Phool Dei Festival 2022) की शुरूआत हो गई है। इस त्यौहार को लोग बड़े ही धूमधाम से मना रहे हैं। लोग फिर से अपने पुराने दिनों को याद कर सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को फूलदेई की शुभकामनाएं भेज रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है ये फूलदेई त्योहार क्यों मनाया जाता है, नहीं न। तो चलिए आज आपको इस आर्टिकल के माध्यम से उत्तराखंड के लोकपर्व फूलदेई के बारे में बताते है।

Phool Dei Festival 2022 मनाया गया

उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई (Phool Dei Festival 2022) की आज से शुरुआत हो गई है। फूलदेई त्योहार उत्तराखंडी समाज के लिए विशेष पारंपरिक महत्व माना जाता है। दरअसल चैत की संक्रांति यानि फूल संक्रांति से शुरू होकर इस पूरे महीने घरों की देहरी पर फूल डाले जाते हैं। इसी को गढ़वाल में फूल संग्राद और कुमाऊं में फूलदेई पर्व कहा जाता है। जबकि, फूल डालने वाले बच्चों को फुलारी कहते हैं। इस खास मौके पर फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार… जैसे लोक गीत सुनने को मिलते हैं।

इस दिन में सबसे खास बात ये है कि पीले रंग के फूल का प्रयोग जरूर किया जाता है , जिसे प्योंली कहा जाता है।इसके साथ ही इस त्योहार को लेकर उत्तराखंड में बहुत सारी लोक कथाएं भी हैं और कुछ लोक कथाएं प्योंली फूल पर भी आधारित है। उनमें से एक कहानी आज इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे।

प्योंली की सच्ची कहानी

दरअसल प्योंली नाम की एक वनकन्या थी, जो कि जंगल मे रहती थी। ऐसा माना जाता था कि जंगल के सभी लोग उसके दोस्त थे। उसकी वजह जंगल मे हरियाली और सम्रद्धि थी। एक दिन एक देश का राजकुमार उस जंगल मे आया, उसे प्योंली से प्रेम हो गया और उससे शादी करके अपने देश ले गया। जिसके बाद प्योंली को अपने ससुराल में मायके की याद आने लगी, अपने जंगल के मित्रों की याद आने लगी। उधर जंगल मे प्योंली बिना पेड़ पौधें मुरझाने लगे, जंगली जानवर उदास रहने लगे। उधर प्योंली की सास उसे बहुत परेशान करती थी।

प्योंली अपनी सास से और अपने पति से उसे मायके भेजने की विनती करती रहती थी लेकिन उसके ससुराल वालों ने उसे मायके नही भेजा। जिसके बाद प्योंलि मायके की याद में तड़पते लगी। मायके की याद में तड़पकर एक दिन प्योंली मर जाती है। राजकुमारी के ससुराल वालों ने उसे पास में ही दफना दिया। कुछ दिनों बाद जहां पर प्योंली को दफ़नाया गया था, उस स्थान पर एक सुंदर पीले रंग का फूल खिल गया था। उस फूल का नाम राजकुमारी के नाम से प्योंली रख दिया। तब से पहाड़ो में प्योंली की याद में फूलों का त्योहार  फूलदेई त्यौहार (Phool Dei Festival 2022) मनाया जाता है।

पुष्कर सिंह धामी ने बच्‍चों के साथ मनाया लोकपर्व

इसी कड़ी में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री आवास में बच्चों के साथ उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई (Phool Dei Festival 2022) मनाया। इसके साथ ही धामी ने प्रकृति का आभार प्रकट करने वाले फूलदेई पर्व की प्रदेशवादियों को शुभकामनाएं दी और प्रदेश की सुख- समृद्धि की कामना भी की।

हरिश रावत ने भी ट्वीट कर दी बधाई

इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी अपने लोकपर्व को लेकर ट्वीट शेयर किया जिसमें उन्होंने अपनी एक वीडियो साझा की जिसमें वे चौखट पर फूल डालते हुए नजर आए। इसके साथ ही उन्होंने ट्वीट कर कहा- #फूलदेई-छम्मादेई, फूलदेई-छम्मादेई…….. आप सबको #फूलदेई के त्यौहार की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बहुत-२ बधाई। #फूलदेई2022

बदलते वक्त के साथ नहीं बदली परंपरा

बता दें लोकपर्व (Phool Dei Festival 2022) पूरे उत्तराखंड में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है। इस शुभ पर्व पर सभी लोग अपने नौनिहालों से घर की देहरी पर पुष्प वर्षा कराकर उन्हें शगुन और उपहार देकर इस त्यौहार को जीवंत बनाएं रख रहे है। पिछले कुछ दशकों से पारंपरिक त्योहारों और रीति-रिवाजों पर काफी असर पड़ा है। जब से लोगों ने गांवों से पलायन किया तब से उत्तराखंड के गांव विरान है, वहां वो फूल लेकर आने वाले बच्चे नहीं है, उन बच्चों को दान- दक्शिणा देने वाले वो लोग नहीं है। लेकिन इसके बावजूद इस त्यौहार को हर पहाड़ी परिवार में धूम-धाम से मनाया जा रहा है, बेशक गांवों में नहीं लेकिन शहर में रहने के बाद भी उत्तराखंड के लोग इस त्योहार को नहीं भूले और ये परंपरा कायम है।

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