World Cup: कभी-कभी ज़िंदगी सबसे मुश्किल इम्तिहान उस वक्त लेती है जब इंसान अपनी ऊंचाई पर होता है। जब पूरी दुनिया उसके खेल की दीवानी हो, और वो देश को जीत दिला रहा हो, उसी वक्त भीतर एक ऐसी लड़ाई चल रही होती है, जिसकी भनक किसी को नहीं होती।
मैदान पर छक्के उड़ाने वाला यह खिलाड़ी मैदान के बाहर अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े विरोधी से लड़ रहा था, कैंसर से। फिर भी इस खिलाड़ी ने कैंसर को मात देकर फिर से वापसी की।
मैदान पर जंग, भीतर जान की जंग
जब भारत ने 28 साल बाद साल 2011 में वर्ल्ड कप (World Cup) जीतकर इतिहास रचा, तब यह खिलाड़ी उस जीत की रीढ़ था। हर मैच में उसके प्रदर्शन ने भारत को आगे बढ़ाया। मैन ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया, लेकिन उसी दौरान उसे लगातार खांसी और थकान की शिकायत थी।
जांच के बाद पता चला कि उसकी छाती में एक ट्यूमर है, जो कैंसर का रूप ले चुका है। इस खिलाड़ी ने जिस तरह से वर्ल्ड कप (World Cup) में प्रदर्शन किया, उससे यह किसी को अंदाजा भी नहीं था, कि वो अंदर ही अंदर एक और मैच खेल रहा है, जो जिन्दगी और मौत का है, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
World Cup 2011 का हीरो, नाम है युवराज सिंह
यह जुझारू क्रिकेटर कोई और नहीं बल्कि युवराज सिंह (Yavraj Singh) हैं। उन्होंने न सिर्फ भारत को वर्ल्ड कप (World Cup) दिलाया, बल्कि अपनी बीमारी को भी मैदान में हराया। अमेरिका में इलाज के वक्त भी उनके दिल में एक ही सपना था, फिर से टीम इंडिया की जर्सी पहनना।
मैदान पर फिर से लौटे
इलाज के बाद युवराज ने वापसी की और वर्ल्ड कप (World Cup) 2014 में भी हिस्सा लिया, हालांकि यह टी-20 वर्ल्ड कप था, जो युवराज का आखिरी वर्ल्ड कप साबित हुआ। हालांकि इस बार उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं था, लेकिन उन्होंने साबित किया कि जज़्बे के आगे कोई बीमारी बड़ी नहीं होती।
युवराज सिंह आज सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि उम्मीद की मिसाल हैं। वो हमें ये सिखाते हैं कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर हौसला है तो जीत पक्की है। उनके जीवन की कहानी क्रिकेट से कहीं बड़ी हो गई वो बन गए हर उस इंसान की आवाज़, जो किसी कठिनाई से जूझ रहा है।
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