कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है। कोरोना के चलते देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है। वहीं किसानो और मजदूर ने भी काफी परेशानियों का सामना किया है। कोरोना की वजह से देश में काफी समय तक लॉकडाउन भी लगा रहा। इसी वजह से काफी मजदूर अपने घर वापस जाने की आशा भी खो चुके थे। वही तमिलनाडु के ईंट-भट्टों में काम करने वाले मज़दूरों के लिए 9 वर्षीय मानसी बरिहा किसी उम्मीद की किरण की तरह बनकर आई थी। बलांगीर जिले के ईंट के भट्टे में फंसे मजदूरों में उनमे से एक थी मानसी। वह अपने पिता के साथ यहां फंसी थी। रोजाना 10 से 12 घंटे के दैनिक श्रम करती थी। प्रतिदिन 250 रुपये की औसत मज़दूरी मिलती थी।
मालिक ने आधी रात में किया जानलेवा हमला
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, वह लॉकडाउन के बाद घर वापस जाना चाहती थी, मगर उसके मालिक ने बाकी मज़दूरों के साथ उसको भी जाने से मारने की धमकी दिया था। उन्होंने शर्त रखी और कहा कि अपना टारगेट पूरा करने पर ही वह अपने घर वापस लौट सकती है। 18 मई को इस बात का मज़दूरों ने विरोध किया, तो मालिक ने आधी रात में उन पर जानलेवा हमला किया। इस घटना में कई मज़दूर गंभीर रूप से घयाल हो गए थे।
मानसी ने मदद के लिए लगायी गुहार
इसी बीच मौका मिलते ही मानसी ने मदद के लिए फ़ोन मिला दिया। मानसी ने कहा,“मैं अपने गांव में अपने कुछ रिश्तेदारों से मदद मांगी। एक परिचित ने एक संगठन से संपर्क किया, जिसने तुरंत तिरुवल्लूर ज़िला प्रशासन के साथ इस मुद्दे को उठाया और हमारी रिहाई के लिए काम किया।”
मानसी ने कहा, स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची, हमें बचाया और घायल व्यक्तियों को अस्पतालों के लिए ले गई। फिलहाल पुलिस ने एक गुंडे को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन ईंट भट्ठा मालिक मुन्नुसामी फ़रार होने में कामयाब हो गया था। स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने एक सप्ताह के अंदर तिरुवल्लूर के 30 ईंट भट्ठों में कैद रखे गए 6,750 मजदूरों को बचाया। मज़दूर ओडिशा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के थे। इस तरह मानसी की सूझ-बूझ और हिम्मत से बंधक मज़दूरों को मुक्ति मिली।