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शादी के 12 महीने और पति से मांग 5 करोड़, पत्नी का एलिमनी दावा सुन सुप्रीम कोर्ट भी रह गया हैरान

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12 months into marriage, she demands Rs 5 crore from her husband.

Supreme Court: पत्नी, जिसकी शादी को सिर्फ़ 12 महीने हुए थे, ने तुरंत अपने पति से ₹5 करोड़ का गुजारा भत्ता मांग लिया. इस मामले ने न सिर्फ़ निचली अदालत, बल्कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को भी झकझोर कर रख दिया. न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने पिछले सप्ताह इस विवाद पर सुनवाई की और कड़ा रुख अपनाया.

अदालत में पेश हुआ अजीबोगरीब दावा

Alimony Supreme Court

पत्नी ने दावा किया कि शादी के दौरान उसे मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी और उसके पति ने उसका साथ नहीं दिया. इसी आधार पर उसने ₹5 करोड़ (5 करोड़ रुपये) की एकमुश्त मुआवज़ा माँगा. अदालत इतनी बड़ी रकम की माँग सुनकर दंग रह गई. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पीठ ने स्पष्ट कहा कि गुजारा भत्ते का उद्देश्य पति-पत्नी के बीच संतुलन और न्याय स्थापित करना है, न कि इसे “लॉटरी टिकट” समझकर करोड़ों रुपये की मांग करना. न्यायालय ने कहा कि इस तरह के अवास्तविक दावे न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं और इन्हें प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता.

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समझौते की राह दिखाई

लंबी बहस के बाद, अदालत ने दंपति को समझौते के लिए राजी कर लिया. अदालत ने सिफारिश की कि रिश्ता खत्म करने के लिए एकमुश्त समझौता राशि व्यावहारिक और उचित होनी चाहिए. अंततः अदालत ने एकमुश्त निपटान के रूप में 35 से 40 लाख रुपये की राशि का निपटान करने की सलाह दी. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस मामले में कहा कि गुजारा भत्ते का उद्देश्य पत्नी को सम्मानजनक जीवन जीने और आर्थिक तंगी से बचाने का अवसर प्रदान करना है. हालाँकि, इसका मतलब अवास्तविक राशि की माँग करना नहीं है.

समाज के लिए संदेश

अदालत ने दोहराया कि प्रत्येक मामले में राशि तय करने का आधार पति की आय, पत्नी की आवश्यकताएं और जीवन स्तर होना चाहिए. यह मामला समाज को एक सशक्त संदेश देता है. गुजारा भत्ता अक्सर पति-पत्नी के बीच लंबी कानूनी लड़ाई का कारण बनता है. अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करना और मनमानी राशि की माँग करना उचित नहीं है. ऐसे मामलों में व्यावहारिक सोच और संतुलन ही समस्या का समाधान करने का एकमात्र तरीका है।

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