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‘मौत सिर पर थी, हम कीचड़ में छिपे रहे’ — पहलगाम हमले से बचे प्रसन्न कुमार ने सुनाई दिल दहला देने वाली आपबीती

Pahalgam Attack Survivor Prasanna Kumar Narrates His Heartbreaking Ordeal
Pahalgam attack survivor Prasanna Kumar narrates his heartbreaking ordeal

Pahalgam Terror Attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी। इस कायराना हमले में बचे मैसूर के प्रसन्ना कुमार भट ने अपनी भयावह आपबीती साझा की है. उन्होंने बताया कि किस तरह उनके भाई की सूझबूझ और सेना की तत्परता के कारण उनकी और उनके साथ आए 35-40 अन्य पर्यटकों की जान बच गई.

भट ने बताई अपनी आपबीती

भट्ट ने बताया कि खराब मौसम के कारण दो दिन की यात्रा स्थगित करने के बाद वे 22 अप्रैल की दोपहर अपनी पत्नी, भाई और भाभी के साथ खूबसूरत बैसरन घाटी पहुंचे। वे मौज-मस्ती कर रहे थे, तभी दोपहर करीब 2.25 बजे उन्हें पहली दो गोलियां चलने की आवाज सुनाई दी. उन्होंने याद करते हुए कहा, “इसके बाद एक मिनट तक सन्नाटा छा गया और हर कोई यह समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर हुआ क्या था.”

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आतंकवादी कर रहे थे इंतजार

कुछ ही क्षणों में, उन्होंने और उनके परिवार ने वहां दो शव पड़े देखे और उनके भाई को तुरंत पता चल गया कि यह एक आतंकवादी हमला (Pahalgam Terror Attack) था। फिर गोलीबारी शुरू हो गई और अफरा-तफरी मच गई. भीड़ जोर-जोर से चिल्लाने लगी और अपनी जान बचाने के लिए भागने लगी. ये लोग गेट की तरफ भागने लगे, जहां आतंकवादी पहले से ही इंतजार कर रहे थे.

भट्ट ने कहा, “हमने एक आतंकवादी को अपनी ओर आते देखा, इसलिए हमने भागने का फैसला किया और सौभाग्य से हमें बाड़ के नीचे से रास्ता मिल गया और छिपे हुए अधिकांश लोग बाड़ को पार कर दूसरी ओर भागने लगे.”

पर्यटकों को विपरीत दिशा में भेजा

उन्होंने बताया कि उनके भाई ने तुरंत स्थिति का आकलन किया और अपने परिवार और 35-40 पर्यटकों को विपरीत दिशा में भेज दिया। भट्ट ने याद करते हुए कहा, उसने लोगों से गोलीबारी वाले क्षेत्र से दूर, नीचे की ओर भागने को कहा. यह एक ढलान थी जहाँ पानी बह रहा था, इसलिए सुरक्षा थी. कीचड़ भरी ढलान पर दौड़ना बहुत फिसलन भरा था, लेकिन कई लोग फिसल गए लेकिन अपनी जान बचाने में कामयाब रहे.

कानों में गूंजती है गोली की आवाज

हम एक घंटे तक गड्ढे में रहे और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते रहे. हमें समझ नहीं आ रहा था कि हमें उसी जगह पर रहना चाहिए या किसी दूसरी दिशा में भागकर अपनी जान बचानी चाहिए. दोपहर 3.40 बजे हेलीकॉप्टरों की आवाज़ सुनाई दी। शाम 4 बजे तक सेना के विशेष बलों ने इलाके को सुरक्षित कर लिया और बचे हुए लोगों को बाहर निकाल लिया। गोलियों की आवाज़ अभी भी हमारे कानों में गूंजती है और इस हमले ने मुझे अंदर तक हिला दिया है।

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