Dussehra: हर साल दशहरे पर देशभर में रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है, लेकिन इस बार का दशहरा (Dussehra) बिल्कुल अलग और अनोखा रहने वाला है। आयोजकों ने घोषणा की है कि इस बार रावण को “छुट्टी” दे दी गई है और उसकी जगह 11 मुखी शूर्पणखा का पुतला जलाया जाएगा।
इस अनोखे फैसले ने लोगों के बीच उत्सुकता और चर्चा दोनों को जन्म दे दिया है। खास बात यह है कि इस कार्यक्रम में सोनम रघुवंशी को आकर्षण का केंद्र बनाया गया है और उनके नाम को पुतले के शीर्ष पर विशेष रूप से जोड़ा गया है।
Dussehra पर जलाया जाएगा 11 मुखी शूर्पणखा का पुतला
इंदौर में इस साल दशहरा (Dussehra) उत्सव कुछ अलग अंदाज़ में मनाया जाएगा। परंपरागत रूप से जहां रावण का पुतला दहन किया जाता है, वहीं इस बार पौरुष संगठन ने एक नया प्रयोग करने की घोषणा की है। संगठन ने निर्णय लिया है कि रावण के स्थान पर ‘सोनम–मुस्कान’ नामक पुतला जलाया जाएगा। इस खबर के सामने आते ही स्थानीय स्तर पर चर्चाओं और प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है।
इंदौर में दशहरे पर रावण की जगह जलेगा सोनम रघुवंशी का पुतला 👻
इंदौर में इस बार दशहरा उत्सव को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। इस वर्ष आयोजन समिति ने रावण की जगह सोनम रघुवंशी का पुतला जलाने का निर्णय लिया है।
सोनम रघुवंशी पर समाज विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने और विवादित बयान देने… pic.twitter.com/fWLNgV0eUx— The Forgotten ‘Man’ 👨⚖️ (@SamSiff) September 19, 2025
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क्यों जलाया जाएगा पुतला?
पौरुष संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि दशहरा (Dussehra) केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक नहीं होना चाहिए, बल्कि यह सामाजिक बुराइयों पर भी चोट करने का अवसर होना चाहिए। इसी सोच के तहत इस बार उन्होंने रावण के स्थान पर एक ऐसा पुतला तैयार किया है, जो समाज में व्याप्त नकारात्मक प्रवृत्तियों और गलत आदर्शों को दर्शाता है। उनका मानना है कि जब तक समाज की नई चुनौतियों और बुराइयों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक दशहरे का वास्तविक संदेश अधूरा रहेगा।
‘सोनम–मुस्कान’ पुतले की विशेषता
बताया जा रहा है कि यह पुतला आकर्षक रंगों और आधुनिक तकनीक से बनाया गया है। इसे खासतौर पर युवाओं को संदेश देने के लिए तैयार किया गया है। पौरुष संगठन ने इसका नाम ‘सोनम–मुस्कान’ रखा है ताकि यह लोगों का ध्यान खींच सके और चर्चा का विषय बने। इसके जरिए संगठन यह बताना चाहता है कि दिखावे, फिजूल खर्ची और गलत जीवनशैली भी उतनी ही खतरनाक हैं, जितनी पुरानी कुरीतियाँ।
इस घोषणा के बाद लोगों की मिली-जुली राय सामने आई है। कुछ लोग इसे परंपरा से हटकर एक साहसिक और सकारात्मक पहल मान रहे हैं। उनका कहना है कि हर युग में बुराइयाँ बदलती रहती हैं और दशहरा इन्हें जलाने का प्रतीक है। वहीं, कुछ लोग इसे विवादित कदम बता रहे हैं और कह रहे हैं कि दशहरे की परंपरा से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।
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