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कारगिल का वो पहला वीर, जिसने सिर्फ़ 22 की उम्र में झेला पाक का हर जुल्म, फिर तिरंगे में लिपटकर लौटा वतन

The First Kargil Martyr, Who Suffered The Atrocities Of Pakistan At The Age Of 22

Kargil Martyr : आज से 26 साल पहले पाकिस्तान को भारत के खिलाफ कारगिल में हार का सामना करना पड़ा था। वैसे तो इस युद्ध में कई लोग शहीद हुए थे। लेकिन इस युद्ध में एक योद्धा ऐसा भी था जिसनें भरी जवानी में देश के लिए अपनी कुर्बानी दी थी। और इतना ही नहीं वह इस युद्ध में शहीद (Kargil Martyr) होने वाले पहले व्यक्ति भी थे।

हम बात कर रहे कारगिल के शहीद कैप्टन सौरभ कालिया की, जिनके द्वारा दिए गए बलिदान को शायद ही देश का कोई नागरिक भूल पाए। मालूम हो कि कैप्टन सौरभ कालिया कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले पहले भारतीय सेना अधिकारी थे।

कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले पहले व्यक्ति सौरभ कालिया

कारगिल शहीद (Kargil Martyr) सौरभ कालिया को पाकिस्तानी सेना ने 5 अन्य सैनिकों के साथ पकड़ लिया था और मारे जाने से पहले 22 दिनों तक उन्हें बेरहमी से प्रताड़ित किया गया था। कारगिल युद्ध के पहले शहीद, पहले नायक कैप्टन सौरभ कालिया। जिनके बलिदान ने कारगिल युद्ध का शुरुआती अध्याय लिखा।

महज 22 साल की उम्र में दुश्मन उन्हें 22 दिनों तक बेइंतहा दर्द देता रहा। सारा दर्द उन कागजों में दर्ज है। जिन्हें सौरभ के पिता ने पिछले 21 सालों में 500 से ज्यादा पत्रों के जरिए न्याय की गुहार लगाई है।

पाकिस्तानियों ने सौरभ के साथ किया क्रूर व्यवहार

पाकिस्तानियों ने सौरभ के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर दी। यहां तक ​​कि उनकी आंखें फोड़ दी और गोली मार दी। दिसंबर 1998 में आईएमए से ट्रेनिंग के बाद उनकी पहली पोस्टिंग फरवरी 1999 में कारगिल में 4 जाट रेजिमेंट में हुई थी। जब उनकी मौत की खबर आई तब उन्हें सेना में भर्ती हुए बमुश्किल चार महीने ही हुए थे।

वर्ष 1999 में कारगिल जिले के काकसर लंगपा इलाके में गश्ती अभियान चलाया गया था। सौरभ कालिया लेफ्टिनेंट के पद पर थे और वह भारतीय सेना (Kargil Martyr) के पहले अधिकारी थे। जिन्होंने रिपोर्ट दी थी कि पाकिस्तानी सैनिक कारगिल नियंत्रण रेखा के भारतीय हिस्से में बड़े पैमाने पर घुसपैठ कर रहे हैं।

22 दिनों तक पाकिस्तानियों की गिरफ्त में रहे सौरभ

काकसर इलाके में घुसपैठ रोकने के लिए 13000-14000 फीट की ऊंचाई पर बजरंग पोस्ट की सुरक्षा संभाली थी। वह काकसर सेक्टर में बजरंग पोस्ट की नियमित गश्त पर थे। उन्होंने दुश्मन को हरकत करते देखा। सौरभ ने सबसे पहले अपने आला अफसरों को दुश्मन के बारे में जानकारी दी। फिर वह अपनी टीम के साथ दुश्मन का सामना करने लगे। गोलाबारी में सौरभ और उनके साथी बुरी तरह घायल हो गए।

पाकिस्तान ने उन्हें करीब 22 दिनों तक अपनी हिरासत में रखा। अपनी पूरी कोशिशों के बावजूद कैप्टन सौरभ कालिया ने दुश्मनों (Kargil Martyr) को देश के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। उन्हें बहुत प्रताड़ित किया गया।

आज तक नहीं भरे सौरभ के घरवालों के जख्म

सौरभ कालिया के कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेद दिया गया। उनकी आंखें निकाल ली गईं, हड्डियां तोड़ दी गईं। 9 जून को उनका पार्थिव शरीर सुपुर्द-ए-खाक (Kargil Martyr) किया गया। कैप्टन सौरभ कालिया की मां बताती हैं कि परिवार को उनकी शहादत की शुरुआती खबर एक अखबार में छपे लेख से मिली।

लेकिन जब वे पालमपुर स्थित सेना के दफ्तर में पूछताछ करने गए तो उन्हें बताया गया कि सेना में कोई भी खबर अच्छी खबर नहीं होती। लेकिन आखिरकार वह दुखद (Kargil Martyr) खबर सच निकली और परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।

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