Adani: हाल ही में बिहार में यह खबर तेज़ी से फैली कि अडानी (Adani) समूह को सिर्फ़ एक रुपये में ज़मीन दे दी गई है. सोशल मीडिया पर इसे “एक रुपया अडानी डील” करार दिया गया. ऐसी भी चर्चा है कि इस सौदे ने किसानों के आम के बागों और उपजाऊ खेतों को तबाह कर दिया, लेकिन क्या यह पूरी सच्चाई है? आइए जानें क्या है पूरा खेल?
जमीन सौदे को लेकर विवाद
खबरों के मुताबिक, अडानी (Adani) समूह को गुजरात और झारखंड समेत कई राज्यों में सरकारी दरों पर ज़मीन दी गई. सोशल मीडिया पर यह बात फैल गई कि हज़ारों एकड़ ज़मीन सिर्फ़ एक रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से दे दी गई. इससे किसानों में रोष फैल गया और कुछ विपक्षी दलों ने इसे किसानों के प्रति अन्यायपूर्ण तथा “कॉर्पोरेटों को लाभ पहुंचाने वाला सौदा” बताया।
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सरकार और Adani ग्रुप का जवाब
सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार, यह ज़मीन लंबी अवधि के लिए पट्टे पर दी गई है. नियमों के तहत, औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए अक्सर कंपनियों को मामूली दरों पर ज़मीन दी जाती है. बदले में, कंपनी को उस क्षेत्र में कारखाने लगाने, रोज़गार पैदा करने और बुनियादी ढाँचा तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. अडानी (Adani) समूह का कहना है कि उसने किसी भी किसान से ज़मीन जबरन नहीं छीनी और जो ज़मीन ली गई वह या तो सरकारी बंजर/खाली ज़मीन थी या उचित मुआवज़े के साथ अधिग्रहित की गई थी.
किसानों का पक्ष
कुछ किसानों का आरोप है कि उनकी उपजाऊ ज़मीन, खासकर आम के बाग, उद्योगों को सौंप दी गई. उनका कहना है कि उन्हें मुआवज़ा तो मिला, लेकिन उनकी लंबे समय से चली आ रही खेती और आय का ज़रिया छिन गया. वहीं, कुछ अन्य किसानों ने भी इसे विकास का अवसर माना क्योंकि क्षेत्र में सड़कें, रोजगार और बाजार बढ़े हैं.
दरअसल, “एक रुपये वाला अडानी सौदा” पूरी तरह से मुफ़्त ज़मीन नहीं है, बल्कि मामूली दर पर दिया गया पट्टा है. इसका उद्देश्य उद्योग को आकर्षित करना है, लेकिन यह किसानों के गुस्से को भी कम नहीं करता।