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एसआईटी ने खोला एनकाउंटर से पहले विकास दुबे की गाड़ी बदलने का सबसे बड़ा राज

एसआईटी ने खोला एनकाउंटर से पहले विकास दुबे की गाड़ी बदलने का सबसे बड़ा राज

कानपुर: कानपुर कांड के मुख्य आरोपी विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर हर दिन नए सवाल खड़े हो रहे हैं पुलिस की हर बात में लोगों को शक हो रहा है। लेकिन लोगों के मन में पहला सवाल एनकाउंटर के 10 मिनट बाद ही आ गया था और वह सवाल था कि विकास दुबे की कार सफारी से टीयूवी कैसे हो गई। यह सवाल पुलिस के आगे पीछे घूम रहा है। इसको लेकर अब एसटीएफ ने बड़ा जवाब दिया है।

बदल रहे थे बार-बार गाड़ी

विकास दुबे को उज्जैन से कानपुर लाने वाली एसटीएफ टीम ने इस इस बारे में बताया है कि विकास दुबे की गाड़ी बार-बार बदली जा रही थी। एसटीएफ टीम ने बताया है कि ये सुरक्षा कारणों के चलते किया गया था। हालांकि लोग इस मामले में पुलिस के जवाब‌ से भी संतुष्ट नहीं हो रहे हैं और इसकी न्यायिक जांच होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।

जल्दी में हुआ एनकाउंटर

उज्जैन से कानपुर के बीच 12 घंटे के सफर में नहीं बल्कि 15 मिनट के फेर में ही एनकाउंटर होने के सवालों पर स्टाफ का कहना है कि गाड़ी के सामने अचानक गाय भैंसों का झुंड आया और गाड़ी पलट गई इस दौरान विकास दुबे ने पिस्टल छीन कर भागने का प्रयास किया। जिसके बाद उसे रोका गया और जब वह नहीं माना तो उसे गोली मार कर एनकाउंटर कर दिया गया।

विकास दुबे के इस पूरे मामले में यह भले ही एक असली एनकाउंटर क्यों ना हो लेकिन इसकी पटकथा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। गाड़ी बदलने से लेकर विकास दुबे के भागने तक और पीठ की जगह विकास दुबे के सीने में गोली लगने का मामला लोगों के मन में सवालों का कौतूहल ला रहा है और इसके साथ ही पुलिस की मुसीबतें भी बढ़ रहीं हैं।

एसआईटी जांच में भी झोल

मध्य प्रदेश पुलिस ने विकास दुबे को गिरफ्तार करने के बाद उससे पूछा था कि ऐसा अपराध क्यों किया और आगे क्या करने का इरादा था ? इसके जवाब में विकास ने बताया था कि वह पुलिस वालों को जला देना चाहता था और इसके लिए केरोसिन की व्यवस्था भी की गई थी। विकास दुबे अपने बयान में बताता है कि उसे पता था कि कितने लोग मरे हैं और कहां मरे हैं कहां पड़े हैं।

लेकिन इन सबसे इतर एसआईटी की जांच में जो खुलासे हो रहे हैं वो विकास के एमपी पुलिस को दिए बयान से अलग है। जिसमें विकास को लेकर कहा गया है कि जब उससे रास्ते में पूछताछ की गई थी तो उसने बताया था कि मुझे पता ही नहीं था कि कितने लोग मरे हैं मैंने जब दूसरे दिन टीवी खोल कर देखा तब पता चला। दोनों बयान यह बताते हैं कि पुलिस की थ्योरी कहीं भी आपस में दो टुकड़ों को जोड़ती नहीं दिख रही है।

 

 

 

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