प्रेरणा: 3 बार की असफलता के बाद भी नहीं मानी हार, चौथी बार मजदूर बना प्रोफेसर

नई दिल्ली। आज मजदूर दिवस पर जानिए बिहार के एक ऐसे मजदूर की कहानी जो प्रोफेसर बन गया। तमाम मुश्किल हालात को कैसे मात देकर यह मुकाम हासिल किया जानिए खुद अमृत राज की जुबानी। ‘मेरे पिताजी मजदूरी करते थे। परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। मैं भी उनके साथ मजदूरी करता था।

सफलता में हर बार रुकावट बनी बीमारी

प्रेरणा: 3 बार की असफलता के बाद भी नहीं मानी हार, चौथी बार मजदूर बना प्रोफेसर

मजदूर से प्रोफेसर बनने की मेरी कहानी की शुरुआत जनवरी 2017 से हुई। जब मैंने नेट जेआरएफ के लिए प्रवेश लिया तब भयंकर फीवर की चपेट में था। 104 डिग्री का बुखार हो गया था। पढ़ाई भी नहीं हो पा रही थी। नतीजा यह निकला कि पहले प्रयास में फेल हो गया, मगर हिम्मत नहीं हारी।

नवंबर 2017 में फिर कोशिश की। इस बार भी परीक्षा से एक सप्ताह पहले डेंगू हो गया था। परीक्षा की पहली रात 104 डिग्री बुखार था। पूरी रात नहीं सो पाया। हालांकि परीक्षा दी, मगर इस बार भी फेल हो गया।

एक जिंदगी से जंग दूसरी तरफ प्रोफेसर का ख्वाब

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हर बार की तरह हौसला बनाए रखा। मेहनत जारी रखी और जून 2018 में तीसरा प्रयास किया। इस बार भी जिंदगी दगा कर गई। परीक्षा से पहले चेचक ने जकड़ लिया। परीक्षा में फिर फेल हुआ। अस्पताल गया। पता चला कोई गंभीर बीमारी है। मैं पूरी तरह से टूट चुका था। एक तरफ बीमारी से लड़ रहा था दूसरी ओर जेआरएफ से। तीन बार असफल होने के बाद भी निराश नहीं हुआ। समझ आया कि जिंदगी परे​शानियों का दूसरा नाम है। परेशानियां उन्हें ​ही मिलती हैं जो उन्हें झेल सकते हैं और सकारात्मक सोच के साथ अपने सपनों को पूरा करने में जुटे रहते हैं।

कौन हैं अमृत राज

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‘मेरा नाम अमृत राज है। बिहार के जहानाबाद के छोटे से गांव किशनपुर में जन्म हुआ है। जब मैं पैदा हुआ तब हमारे गांव में पढ़ाई लिखाई का माहौल नहीं था। माता-पिता दोनों मजदूरी करते थे। वे खुद भी नहीं पढ़े थे, मगर उन्होंने मुझे पढ़ने-लिखने का भरपूर अवसर दिया। कक्षा तीन की पढ़ाई मैंने गांव के सरकारी स्कूल में की।

ननिहाल में रहकर की पढ़ाई

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पढ़ाई के प्रति मेरी लगने को देखते हुए फिर मामा अपने शहर गुंसा में ले गए, क्योंकि वहां पढ़ाई का माहौल अच्छा था। वहां मामा ने फिर से मेरा दाखिला पहली कक्षा में करवाया। तब मुझे परिवार में मुन्नू कहकर बुलाते थे। स्कूल के शिक्षक जयप्रकाश ने मुझे अमृत राज नाम दिया। पांचवीं तक उसी स्कूल में पढ़ा। फिर दाउदपुर के हाई स्कूल में दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान में ननिहाल से घर जाता तो मां-बाप के साथ मिट्टी काटने की मजदूरी करने जाया करता था। फिर जहानाबाद के स्कूल से 11वीं साइंस से पढ़ाई की। टॉपर रहा तो 12वीं की फीस माफ हो गई। ​तब मेरी मैथ्स पर पकड़ अच्छी थी तो पटना के करतार कोचिंग से एनडीए की तैयारियों में जुट गया। उस समय भी मुझे चेचक और डेंगू ने जकड़ लिया। एनडीए में चयन नहीं हो सका।

एनडीए की तैयारियों के दौरान टीचर एम रहमान से इतिहास की कोचिंग में चन्द्रगुप्त मौर्य से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने इतिहास पर भी पकड़ बना लिया, इसके बाद कॉलेज में दाखिले की सलाह दी।

पटना कॉलेज से किया स्नातक

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2013 में मैंने पटना कॉलेज में प्रवेश लिया। हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की। वर्ष 2016 में इतिहास संकाय से स्नातक की डिग्री हासिल की। कॉलेज में प्रोफसर डेजी बनर्जी, प्रोफेसर नयाशंकर, प्रोफसर मोहम्मद इस्माइल का मार्गदर्शन बना और मैंने इन्हीं की तरह प्रोफेसर बनने की ठानी। उसके लिए मुझे नेट जेआरएफ करना था।

इंदिरा गांधी खुला विश्वविद्यालय नई दिल्ली से वर्ष 2018 में इतिहास विषय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। फिर नेट की तैयारी में जुट गया और जनवरी 2017 से नेट की परीक्षा देनी शुरू की हैं वर्ष 2018 तक चार बार नेट की परीक्षा दी और हर बार फेल हो गया। वर्ष 2019 में मुझे सफलता मिल गई और मैं प्रोफेसर बन गया।

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