दीपावली के मौके पर तमाम आदेशों को दरकिनार करते हुए दिल्ली में गगनचुंबी इमारतों के आसपास रहने वाले लोगों ने खूब आतिशबाजी चलाई है. जिसके कारण हवा के जहरीले होने की बात भी सामने आई और उसी के साथ पिछले 4 सालों का रिकॉर्ड भी टूट चुका है. दीपावली की रात दिल्ली में वायु की गुणवत्ता 90 के पार पहुंच गई. एनजीटी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जहरीली हवा के तरीकों पर आतिशबाजी को लेकर कई तरह के सख्त आदेश दिए गए थे, लेकिन पूरे दिल्ली में कानून की धज्जियां उड़ा दी गई. गाजियाबाद के जिला अस्पताल में रात सांस उखड़ने के लगभग 550 मरीज पहुंचे .
मौसम विभाग ने पहले ही जानकारी दी थी कि, पश्चिमी विक्षोभ के कारण दीपावली के अगले दिन बरसात होगी. दिल्ली एनसीआर में ज्यादा बरसात नहीं हुई थी, थोड़ा पानी बरसने के कारण दिल्ली के दमकल विभाग को 57 ऐसे फोन आए थे जिसमें आसमान से कुछ तैलीय पदार्थ के कारण सड़कों पर वाहन से चलने की खबर आई थी. बताया जा रहा है कि धूल कण के कीचड़ के कारण लोगों में सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी. अगर दिल्ली में ज्यादा बरसात होती तो अम्ल वर्षा के हालात ही बन सकते थे.
राष्ट्रीय राजधानी में हवा बेहद विषाक्त
अधिकांश पटाखे सल्फर डाइऑक्साइड और मैग्नीशियम क्लोराइड के बने हुए होते हैं, जिसका धुंआ दिल्ली में वायु मंडल में टिका हुआ है. अगर इसमें पानी का मिश्रण हो जाता तो सल्फ्यूरिक एसिड बन जाता और हालात बहुत ही भयावह हो जाते हैं. राष्ट्रीय राजधानी में हवा बेहद विषाक्त हो गई है. एक्यूआइ 500 का मतलब है कि हवा इंसान के सांस के लेने के लायक नहीं है.
68 करोड़ों लोगों की जिंदगी एक साल कम
जो लोग किसान की पराली को हवा गंदा करने का दोष लगा रहे थे, उन्होंने दो-तीन घंटों में कोरोना से उपजे बेरोजगारी और प्राकृतिक के संरक्षण के दावों को कुचल कर रख दिया है. हवा में जहर को लेकर दुनिया भर में दूषित शहर के स्तर पर आ रहा है . इस बारे में वैज्ञानिकों ने बताया है कि, एक रात में पूरे देश में हवा इतनी ज्यादा जहरीली हो गई है कि, 68 करोड़ लोगों की जिंदगी एक साल कम हो गई है.
कैंसर और अस्थमा जैसी कई बीमारी का कारण वायु प्रदूषण
वैज्ञानिकों ने बताया कि, दीपावली की पटाखों की आतिशबाजी ने दिल्ली की हवा को इतना जहरीला कर दिया है कि, सरकार ने सलाह जारी कर दी है कि यदि जरूरी ना हो तो घर से बाहर ना जाए. अस्थमा और कैंसर जैसी बीमारी फैलाने वाली हवा में मौजूद कण से लेकर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है. दीपावली की आतिशबाजी के बाद यहां सीमा 1000 के पार हो गई. दिल्ली में ही नहीं बल्कि इस तरह के हालात देश के कई अन्य राज्य और राजधानियों में भी है.
पटाखों से जो भी कूड़ा उत्पन्न हुआ है, उसको भी जलाने के लिए काफी समस्याएं आ रही हैं. यदि इस कूड़े को जला दिया जाता है तो और भी ज्यादा भयानक वायु प्रदूषण उत्पन्न हो जाएगा. यदि इसके कागज वाले हिस्से को जलाया जाएगा तो भी जहर घर और प्रकृति में फैल सकता है. यदि इसे डंपिंग में भी पड़ा रहने दिया जाए तो जमीन में जज्ब होकर भूजल और जमीन के स्तर पर विषैले कण जमीन जहरीला कर देंगे.
प्राकृतिक पूजा और दीपोत्सव का त्यौहार है दीवाली
इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि, पटाखे और आतिशबाजी सनातन धर्म की परंपरा का हिस्सा है. कुछ समय पहले विस्तारित हुई यह एक सामाजिक त्रासदी है. दीपावली की परंपराओं को लेकर कुछ घंटे तक बारूद और आतिशबाजी कई सालों तक जेब में भी छेद कर देती है. जिससे दवाओं और डॉक्टरों पर खर्चा करना पड़ता है. दीपावली से पहले ही आतिशबाजियों में प्रयुक्त सामग्री और आवाज पर नियंत्रण, बीमार लोगों, बेहाल जानवरों की कहानियां प्रचार माध्यमों व पाठ्य पुस्तकों के जरिए आम जनता तक पहुंचाने के कार्य किए जाने चाहिए. लोगों को जागरूक करना आवश्यक है कि, दीपावली असल में प्राकृतिक पूजा और दीपोत्सव का त्यौहार है. ऐसे में आतिशबाजी धार्मिकता से कोई खास संबंध नहीं रखती है. अपने परिवेश को हमेशा स्वस्थ रखने के संकल्प से विद्यालयों और आरडब्ल्यूए को इस पूरे साल कार्यक्रम करवाना चाहिए.