Indian Player: भारतीय खेल जगत हमेशा ही खिलाड़ियों की शानदार उपलब्धियों और मैदान पर दिखाए गए जज्बे के लिए सुर्खियों में रहता है। लेकिन कई बार मैदान से बाहर भी खिलाड़ी अपनी इंसानियत और दरियादिली से लोगों का दिल जीत लेते हैं। हाल ही में एक भारतीय खिलाड़ी (Indian Player) ने ऐसा ही कदम उठाया, जिसने पूरे देश को गर्व महसूस कराया।
इस भारतीय खिलाड़ी ने दिखाई इंसानियत

दरअसल हम जिस भारतीय खिलाड़ी (Indian Player) की बात कर रहे है, वो भारतीय क्रिकेट टीम के स्टार ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या और उनके भाई क्रुणाल पांड्या है। जो मैदान पर अपने प्रदर्शन से तो सुर्खियां बटोरते ही हैं, लेकिन हाल ही में उन्होंने एक ऐसा कदम उठाया, जिसने उन्हें और भी बड़ा इंसान साबित कर दिया।
दोनों भाइयों ने अपने बचपन के कोच जितेंद्र सिंह की आर्थिक मदद कर यह दिखा दिया कि सफलता पाने के बाद भी इंसान को अपने मूल और गुरुओं को नहीं भूलना चाहिए।
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बहनों की शादी
दरअसल, पांड्या ब्रदर्स (Indian Player) ने अपने संघर्ष के दिनों में जितेंद्र सिंह से ट्रेनिंग ली थी। कोच की आर्थिक स्थिति हमेशा से कमजोर रही। जब उनकी बहनों की शादी की जिम्मेदारी सामने आई तो हार्दिक और क्रुणाल आगे आए। 2018 में बड़ी बहन की शादी का पूरा खर्च दोनों भाइयों ने उठाया था। वहीं फरवरी 2024 में दूसरी बहन की शादी में भी उन्होंने करीब 20 लाख रुपये की मदद की, जिसमें एक कार का तोहफा भी शामिल था।
कोच को गिफ्ट की थी कार
इतना ही नहीं, हार्दिक पांड्या (Indian Player) ने 2015-16 के ऑस्ट्रेलिया दौरे से लौटने के बाद अपने कोच को लगभग 6 लाख रुपये की कार गिफ्ट की थी। उनका कहना था कि वे नहीं चाहते कि कोच बाइक पर सफर करें और किसी हादसे का शिकार हों। इसके अलावा जब कोच की मां बीमार पड़ीं, तब हार्दिक ने बिना झिझक कहा, “मेरे सारे पैसे ले लो, लेकिन उनका इलाज अच्छे से कराओ।”
आज तक हार्दिक और क्रुणाल द्वारा अपने कोच को दी गई आर्थिक मदद की कुल राशि लगभग 70-80 लाख रुपये आंकी गई है। यह सिर्फ पैसों की बात नहीं, बल्कि उस रिश्ते की गहराई को दर्शाती है जो खिलाड़ी और उनके गुरु के बीच होता है।
फैंस कर रहे तारीफ
इस खबर के सामने आने के बाद फैंस सोशल मीडिया पर दोनों भाइयों की जमकर तारीफ कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि असली स्टार वही है, जो अपने गुरुओं और समाज को कभी न भूले। हार्दिक और क्रुणाल ने साबित कर दिया कि सफलता केवल नाम और दौलत कमाने का नाम नहीं, बल्कि इंसानियत निभाने का भी ज़रिया है।
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