झारखंड के एक ऐसे गांव में रहने वाला लड़का जहां 70 सालों से बिजली तक नहीं पहुंची। उसके पिता कोयले की खदान में मजदूरी करते थे। पढ़ने लिखने को कभी अच्छा स्कूल भी नहीं मिला। वही लड़का आज डीएसपी बन गया है। इस लड़के का नाम है किशोर कुमार रजक। जो कि झारखंड के बोकारो के रहने वाले हैं।
गरीब दलित परिवार में जन्म लेने वाले एक आम बच्चे की तरह ही वह बचपन गुजार रहे थे। यह ऐसे गांव में रहते थे जहां आज तक कोई सरकारी पद पर कार्यरत नहीं रहा। उनका गांव का यह ऐसा लड़का जो डीएसपी बन गया। आइए जानते हैं इसकी प्रेरणादायक कहानी
सरकारी स्कूल में करते थे पढ़ाई
किशोर का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, जो कि पूरा बचपन संघर्षों में ही बिता। परिवार की अपनी ज्यादा जमीन भी नहीं थी ना ही परिवार के पास इतना पैसा था कि, दिल्ली मुंबई जाकर वहां रोजगार ढूंढ सके। उनके पिता मजदूरी करते हुए धनबाद के कोयला खदान में मजदूरी करने की नौकरी पा गए। इस नौकरी में उन्हें गुजारे लायक कमाई ही होती थी। ना तो बच्चों की पढ़ाई लिखाई करवा सकते थे ना ही अन्य खर्चे। पढ़ाई लिखाई के लिए किशोर को गांव में सरकारी स्कूल में भेजा जाता था, सरकारी स्कूल में ना तो बच्चे आते थे और ना ही मास्टर आते थे। किशोर को परिवार से लगातार पढ़ाई और सरकारी नौकरी के विषय में प्रेरणा मिलती थी। उनके पिता कहते थे कि, मेरा बेटा कलेक्टर बनेगा। घर के हालात बहुत बुरे थे, परिवार की उम्मीदों को देखते हुए किशोर खुद ही पढ़ाई करते थे।
पढ़ाई के साथ-साथ किशोर खेती बाड़ी का काम भी करते थे। शाम को गाय बकरी चराने जाते थे, लेकिन गांव के बच्चो के साथ मिलकर पढ़ाई मस्ती ज्यादा करते थे। आज जब वह सरकारी कर्मचारी बन गए हैं तो सभी के लिए प्रेरणा का विषय हो गया है। उन्होंने बताया कि,
” एक बार जब वह स्कूल में थे तभी पढ़ाई छोड़ कर घूमने के लिए निकल जाते थे। छुट्टी के समय पर वापस आ जाया करते थे। एक दिन मास्टर जी ने उनकी इस हरकत को नोट किया और पिटाई कर दी। बच्चों को समझाते हुए कहा कि, तुम में से अगर किसी की भी पढ़ाई लिखाई जीवन में सफल हो जाए तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मुझे खुशी होगी”। इस बात को किशोर ने अपने दिमाग में बसा ली और फिर लगातार मेहनत से पढ़ाई करने लगे।”
उन्होंने 10वीं और 12वीं पास के के इग्रू से इतिहास विषय में स्नातक किया है। ग्रेजुएशन के समय में बा थर्ड ईयर में फेल भी हो गए थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और यूपी एस सी की तैयारी में जुट गए, रिश्तेदारों से पैसे मांग कर किराए के पैसे जुटाने लगे और दिल्ली आकर तैयारी शुरू कर दी थी। यहां पर वह जिस मकान में किराए पर रह कर पढ़ाई करते थे, उसी मकान के मालिक के बच्चों को उन्होंने ट्यूशन भी पढ़ाना शुरू कर दिया। जिसके बाद और भी बच्चे आने लगे। इससे उनको खूब कमाई होने लगी थी।
उन्होंने साल 2011 में यूपीएससी की परीक्षा दी और इसके बाद पहले ही प्रयास में असिस्टेंट कमांडेंट बन गए। इसके बाद उनका डीएसपी के लिए चयन हो गया था। आज इस तरह उन्होंने सभी को प्रेरणा दी है। वह सभी के लिए उदाहरण बन गए हैं कि, गरीबी में भी पढ़ाई करके सफलता हासिल की जा सकती है।