किसान का बेटा कांस्टेबल से सीधा बना आईपीएस, कहा मै कर सकता हूँ तो आप क्यों नहीं....

हर पिता को चाह होती है कि उसके बच्चे की सरकारी नौकरी लगे. राजस्थान के एक पिछड़े गांव के किसान परिवार में पैदा हुए आईपीएस अफसर विजय सिंह गुर्जर भी कुछ ऐसे ही परिवार से थे. जहां पिता ने उन्हें संस्कृत विषय में शास्त्री की पढ़ाई कराई ताकि वो सरकारी टीचर बन जाएं. लेकिन, वो टीचर नहीं बनना चाहते थे तो कांस्टेबल भर्ती के लिए दिल्ली आ गए. यहां हालात ऐसे मुड़े कि वो एक के बाद एक सरकारी नौकरी बदलते मन में आईपीएस अफसर बनने की आस लिए इसकी तैयारी में जुट गए और सात साल नौकरी के साथ  पढ़ाई करके आखिरकार आईपीएस बन ही गए. इनकी कहानी से हम सभी को सीख मिलती है कि हमेशा अपनी सोच औऱ इरादों को अटल रखना चाहिए. आइए जानते है कैसा रहा विजय का आईपीएस बनने का सफर………..

सरकारी स्कूल से की पढ़ाई

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एक वीडियो इंटरव्यू में विजय सिंह ने बताया कि उन्होंने गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. उनके पिता लक्ष्मण सिंह किसान और मां हाउसवाइफ हैं. वो पांच भाई बहनों में तीसरे नंबर के हैं. वो घर पर पढ़ाई के साथ पिता के पशुपालन और खेतीबाड़ी में मदद करते थे. पिता के साथ सुबह चार से आठ बजे तक फसल कटाई में हाथ बंटाने के अलावा गर्मियां ऊंटों को जुताई के लिए ट्रेंड करने में जाती थीं.

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जिन्हें ट्रेंड होने के बाद पिता पुष्कर मेले में जाकर बेच आते थे. घर के आर्थ‍िक हालात ऐसे नहीं थे कि बहुत अच्छे कॉलेज में पढ़ सकें सो सरकारी नौकरी के लिए पिता ने संस्कृत से शास्त्री करने की सलाह दे दी थी. पापा का शिक्षा पर बहुत जोर था. उन्होंने बहन को भी पढ़ाया आज वो गांव में पहली महिला ग्रेजुएट हैं. गांव में पढ़ाई का माहौल नहीं था, लेकिन शायद टीचर बनने की इच्छा नहीं थी.

दोस्त की मदद से पहुंचे दिल्ली

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विजय का मन कांस्टेबल पद के लिए निकली भर्ती के फार्म भरने का था, जिसको भर के वो दोस्त की मदद से दिल्ली आ गए. एक महीने कांस्टेबल की तैयारी की, पेपर दिया तो 100 में 89 सही थे. तब लगा कि संस्कृत का होकर भी मैथ रीजनिंग में अच्छा किया. उसके बाद सब इंस्पेक्टर की भर्ती में जाने की सोची. फिर जून 2010 में कांस्टेबल के तौर पर ज्वाइन कर लिया. सब इंस्पेक्टर का रिजल्ट आया तो लगा कि काफी कुछ मिल गया. लेकिन याद आता है कि कांस्टेबल की ड्यूटी के दौरान मैंने देखा कि दिल्ली में एक डीसीपी थे, उनका काम और जिम्मेदारी देखी. देखकर लगा कि मुझे भी इसके लिए तैयारी करनी चाहिए.

इतने से भी नहीं भरा मन

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विजय ने एक बार फिर से पढ़ाई करना शुरु कर दिया, जैसे टापर्स ने बताया था उसी तरह में विजय की तैयारी शुरु हो गई. विजय ने सोचा कि आगे अगर मेरा आईपीएस नहीं होता है तो उसी दौरान एसएससी सीजीएल भी दिया था. तो मैंने कस्टमअफसर के तौर पर ज्वाइन किया. वहां फिर जॉब छोड़ा, वहां से आकर इनकम टैक्स में 2014  में ज्वाइन किया. मन में लेकिन यूपीएससी ही था कहीं, साथ में डर भी था कि शायद मैं नहीं कर पाऊंगा. फिर 2013 में यूपीएससी दिया किसी को बिना बताए तो प्रीलिम्स में भी नहीं हुआ. सीसैट में अच्छे नंबर थे. 2014 में भी फिर दिया तो भी नहीं हुआ. तब मुझे पता भी नहीं था बुक सेलेक्शन कैसे करना है. जब 2014 का अटेंप्ट खराब हो गया तो अपने कलीग से बात की. उसके बाद मैंने तैयारी शुरू की.

की कड़ी मेहनत

किसान का बेटा कांस्टेबल से सीधा बना आईपीएस, कहा मै कर सकता हूँ तो आप क्यों नहीं....

विजय 3 बार प्रीलिम्स नहीं कर पाए थे, लेकिन  2015 में जो गलती थी कि 2016 में सबसे पहले उसे ही तैयार किया. ऑनलाइन जर्नल और मौक टेस्ट की मदद से 50 से ज्यादा क्वैश्चन पेपर लगाए. बाहर आकर देखा कि फिर जीएस पर फोकस किया. 2016 वाला अटेंप्ट था कि संस्कृति को लेकर कान्फीडेंट था.शायद इसी कारण मेरा एवरेज बिलो रहा.

किसान का बेटा कांस्टेबल से सीधा बना आईपीएस, कहा मै कर सकता हूँ तो आप क्यों नहीं....

किसी से एडवाइज भी नहीं ली थी. 2016 में मेन्स निकाल लिया, लेकिन इंटरव्यू में 9 से 10नंबर से रह गया,लेकिन कॉन्फीडेंस आ गया कि अगर सही डायरेक्शन में मेहनत की तो हो जरूर जाएगा, क्योंकि बिना तैयारी के कांस्टेबल से यूपीएससी इंटरव्यू तक आ गए थे. लेकिन 2018 में मेरी मेहनत रंग ला चुकी थी. साल 2017 के रिजल्ट में यूपीएससी की परीक्षा में 547वीं रैंक हासिल कर ली थी.

मेरा नाम दिव्यांका शुक्ला है। मैं hindnow वेब साइट पर कंटेट राइटर के पद पर कार्यरत...