सुदीप दत्ता की कहानी: दिहाड़ी पर काम करने वाला मजदूर कैसे बना 1600 करोड़ का मालिक  

मुंबई: आपने लोगों से सुना होगा मुझे बचपन में ये सुविधाएं नहीं मिली वरना हम भी आज एक अच्छी जगह नौकरी कर रहे होते हैं. हम भी अपने परिवार को सब सुख सुविधा देते, लेकिन ऐसा कह कर वह अपने नाकामियों को छिपाने की कोशिश करते हैं. क्योंकि कहा जाता है जहां चाह है वहीं राह है. अक्सर किस्मत भी उसी का साथ देती है, जो लाइफ में कुछ करना चाहते हैं. ऐसे में आज आपको एक ऐसे लड़के के बारे में बताते हैं, जिसने सिर्फ 15 रूपये की दिहाड़ी से आज 1600 करोड़ की सम्पत्ति का मालिक बन गया है.

Ess Dee Aluminium Pvt Ltd के संस्थापक हैं सुदीप दत्ता

जी हां, Ess Dee Aluminium Pvt Ltd के संस्थापक सुदीप दत्ता हैं, वो लड़के जिन्होंने अपनी लाइफ की शुरुआत एक मजूद के रूप में की थी, लेकिन आज वह अपनी कड़ी मेहनत और सूझबुझ से एक बड़ी कंपनी के मालिक है.

सुदीप दत्ता की कहानी: दिहाड़ी पर काम करने वाला मजदूर कैसे बना 1600 करोड़ का मालिक  

बचपन से ही घर के हालात थे खराब  

आपको बता दें पश्चिमी बंगाल, दुर्गापुर के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्में सुदीप दत्ता के पिता एक भारतीय सैनिक थे. उन्होंने 1971 में भारत-पाक जंग में हिस्सा लिया था. इसी जंग में इनके पिता को गोली लगी और वह हमेशा के लिए पैरालाइज्ड हो गए. पिता के अपंग होने के बाद सुदीप के परिवार की सारी जिम्मेदारी उनके बड़े भाई के कंधों पर आ गई.

सुदीप दत्ता की कहानी: दिहाड़ी पर काम करने वाला मजदूर कैसे बना 1600 करोड़ का मालिक  

भाग्य ने कुछ ही समय के भीतर सुदीप के घर की स्थिति को और भी खराब कर दिया. हालांकि बड़े भाई ने जैसे तैसे घर की जिम्मेदारी संभाल ली. वह खुद कमाते और घर चलाने के साथ साथ सुदीप को भी पढ़ाते थे. समय तो खराब था, लेकिन कैसे भी करके बीत रहा था. ऐसे में अचानक से बड़े भाई अचानक की तबियत खराब हो गई. बीमारी भी ऐसी कि घटने की बजाए रोज रोज बढ़ती जा रही थी. घर की स्थिति  पहले से और खराब हो गई.  जिसकी वजह से भाई को सही इलाज भी नहीं मिल सका.

आखिरकार बीमारी की वजह से भाई की मौत हो गई. इतना ही नहीं एक दुःख से तो परिवार गुजर ही रहा था कि तभी सुदीप के पिता भी बेटे के मौत का सदमा न बर्दास्त कर सके और उनकी मौत हो गई. अब घर की साड़ी जिम्मेदारी सुदीप पर आ गई.

गरीबी से जन्मा एक करोड़पति

सुदीप दत्ता की कहानी: दिहाड़ी पर काम करने वाला मजदूर कैसे बना 1600 करोड़ का मालिक  

पिता और भाई के मौत के बाद 4 बहनों और मां की जिम्मेदारी सुदीप के कन्धों पर आ गई. सुदीप के पास पढ़ाई के नाम पर बारहवीं पास का सर्टिफिकेट मात्र था. ऐसे में वक्त की मार ने सुदीप को उम्र से पहले ही बड़ा बना दिया था. जिम्मेदारी तो कंधों पर आ गई थी, लेकिन उन्हें ये बिलकुल नहीं पता था कि वह इसे निभाएंगे कैसे. इस बीच उनके मन में वेटर का काम करने या रिक्शा चलाने जैसे ख्याल भी आए लेकिन उन्हें क्या पता था कि घर पर आई इस आपदा के बाद किस्मत उनके लिए करोड़पति बनने का रास्ता तैयार कर रही है.

यह रास्ता उन्हें तब दिखा जब उनके दोस्तों ने उन्हें अमिताभ बच्चन का उदाहरण देते हुए मुंबई जाने की सलाह दी. चूंकि सुदीप पहले से ही अमिताभ बच्चन की सफलता की कहानी से काफी प्रेरित थे, ऊपर से दोस्तों  ने जब हिम्मत दी तो वह पूरी तरह से मुम्बई जाने के लिए तैयार हो गए. सभी की तरह मायानगरी पहुँचने के बाद सुदीप की किस्मत भी चमकी और वह मजदूर से करोड़पति बन गए.

मायानगरी के छलावे ने बना दिया मज़दूर 

सबकी तरह सुदीप भी आंखों में सुनहरे सपने लिए मुंबई पहुंचे थे, लेकिन इस मायानगरी के छलावे ने उनके सपने सच करने के बदले उन्हें मज़दूर बना दिया. हालांकि मुंबई के बारे में यह बात बहुत प्रसिद्ध है कि ये शहर हर इंसान को पहले परखता है और जो इसके इम्तिहान में पास हो जाता, उसे ये शहर इतना देता है कि उसे संभालना मुश्किल हो जाता है. ऐसे लगता है अभी मुंबई सुदीप को भी परख रही थी. 1988 में सुदीप ने अपने कमाने की शुरुआत एक कारखाना मजदूर के रूप में की. 12 लोगों की टीम के साथ वह एक करखाने में सामानों की पैकिंग, लोडिंग और डिलीवरी का काम करते थे. इसके बदले इन्हें दिन के मात्र 15 रुपये के हिसाब से मजदूरी मिलती थी.

मालिक को हुए नुकसान सुदीप को बनाया करोड़पति

सुदीप दत्ता की कहानी: दिहाड़ी पर काम करने वाला मजदूर कैसे बना 1600 करोड़ का मालिक  

कारखाने में पैकिंग करते हुए सुदीप के 2-3 साल गुजर चके थे. इतने वक्त में मुंबई शहर ने सुदीप को हर तरह से परख चुकी थी. अब समय था उसके सपनो को पंख देने का, अक्सर लोग सच ही कहते हैं एक का नुकसान दूसरे का फायदा बन जाता है और सुदीप को ये फायदा तब दिखा जब 1991 में कारखाने के मालिक को भारी नुकसान उठाना पड़ा. नुकसान होने की वजह से मालिक ने अपने कारखाने को बेचने का मन बना लिया. पिछले दो तीन साल से सुदीप केवल पसीना बहा कर प्रतिदिन 15 रुपये की देहाड़ी ही नहीं कमा रहे थे बल्कि इसके साथ ही वह इस धंधे की बारीकियों और इसे चलाने की प्रक्रिया को भी अच्छे से समझ रहे थे. यही कारण रहा कि जब उनकी कंपनी के मालिक ने इसे बेचने का मन बनाया तो सुदीप ने इस डूबती हुई कंपनी में अपना फायदा देख कर खरीद लिया.

डूबती हुई कंपनी से सुदीप बने करोड़पति

सुदीप जानते थे कि कंपनी के मालिक को कंपनी बंद करने पर कुछ नहीं मिलेगा, ऐसे में अगर उन्हें इसके बदले कुछ रुपये मिल रहे हों तो शायद वह इस डील के बारे में सोच लें. यही सोचकर वह कंपनी खरीदने के मकसद से मालिक के पास पहुंचे. वही हुआ जो सुदीप ने सोचा था, मालिक कंपनी बेचने को तैयार हो गया लेकिन इसके साथ ही उसने एक शर्त रखी और वो शर्त ये थी कि सुदीप अगले दो साल तक उस फैक्ट्री से होने वाला सारा मुनाफा मालिक को देंगे. ऐसे में सुदीप ने मालिक की इस डील को मान लिया. उन्हें खुद पर इस बात का यकीन कि वह कंपनी से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. जिसके बाद कड़ी मेहनत से सुदीप मजदूर से एक करोड़पति बनने का सफर तय किया.