Mughal-E-Azams-Glass-Palace-Was-Built-For-15-Lakhs-Glass-Was-Brought-From-Belgium-But-As-Soon-As-The-Camera-Was-Turned-On-Everything-Turned-Into-Dust

Mugal-E-Azam: सलीम और अनारकली की प्रेमकहानी पर बनी फिल्म मुगल-ए-आजम को कौन नहीं जानता है। अनारकली बनीं मधुबाला जब शीशमहल में नाचती और गोल-गोल घूमती तो हजारों शीशों में उनकी झलक साफ नजर आती। 64 साल बाद भी इस गाने और शीशमहल का कोई तोड़ नहीं। इस फिल्म को सिनेमा के इतिहास की क्लासिक फिल्म माना जाता है। लेकिन इस फिल्म के लिए बनाए गए शीशमहल में शूट करना नामुमकिन हो गया था। हॉलीवुड से कई एक्सपर्ट को बुलाया गया, लेकिन उन्होंने भी साफ कह दिया कि इसमें शूटिंग नहीं हो सकती। लेकिन फिर भी शूट मुमकिन हुआ। चलिए इस आर्टिकल में आपको बताते हैं जब प्यार किया तो डरना क्या गाना कैसे शूट किया गया।

15 लाख में बना था मुगल-ए-आजम का शीशमहल

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मुगल-ए-आजम (Mugal-E-Azam) साल 1960 में आई थी। उस वक्त मुगल-ए-आजम को बनाने में 1.5 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जिसे आज के वक्त के हिसाब से देखें, तो यह 60 करोड़ बैठता है। फिल्म को बनाने में ही 14 साल लग गए। वहीं शीशमहल को तैयार करने में 2 साल का वक्त लग गया था। इसे बनाने में 15 लाख रुपये का खर्चा आया था। शीशमहल बन तो गया था लेकिन उसमें शूट करना नामुमकिन था। नौबत यहां तक आ गई थी कि इस सेट को तुड़वाने की भी बातें होने लगी थीं। लेकिन सिनेमेटोग्राफर आरडी माथुर ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।

बेल्जियम से मंगवाए थे शीशमहल के लिए कांच

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एक इंटरव्यू के दौरान एक्टर रजा मुराद ने मुगल-ए-आजम (Mugal-E-Azam) के शीशमहल को लेकर कहा था कि बॉम्बे में जो भी टूरिस्ट आता था उसके लिए शीशमहल को देखना एक स्टेटस सिंबल था। इसे बनाने के लिए बेल्जियम से कांच यानी शीशे मंगवाए गए थे। पत्रकार राजकुमार केसवानी ने बताया था कि शीशमहल में शूट करना इस कदर मुश्किल था कि जब कैमरा लगाया जाता था, तो रोशनी शीशों में टकराती और दिक्कत होती। हर कांच में कैमरा और बाकी सारा सेटअप नजर आता। जहां भी लाइट लगाते, वह शीशे में रिफलेक्ट करती। बॉलीवुड के बड़े बड़े डायरेक्टर्स को बुलाया गया। उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए कि शूटिंग नहीं हो सकती।

शीशमहल में शूट न होने पर टेंशन में आ गए थे आरडी माथुर

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बता दें कि शीशमहल को आर्ट डायरेक्टर एम के सैय्यद ने बनाया था। बेल्जियम से शीशे मंगवाने के बाद फिरोजाबाद से कारीगर बुलाए गए थे, जिन्होंने इस पर दिन-रात काम किया। शीशमहल का सेट इतना यूनीक था कि यह सिनेमेटोग्राफर आरडी बर्मन की सिरदर्दी बन गया था। उन्होंने शीशों से रिफ्लेक्ट होती रोशनी को कम करने के लिए हर संभव तकनीक अपनाई, पर कामयाबी नहीं मिली। इससे आसिफ तो परेशान थे ही, आरडी माथुर भी टेंशन में आ गए थे।

आरडी माथुर के दिमाग ने कर दिखाया कमाल

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रजा मुराद ने बताया था कि आखिर आरडी माथुर ने कैसे नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया और शीशमहल में शूटिंग की गई थी। उन्होंने कहा था, एक दिन आरडी माथुर बड़े परेशान और चिड़चिड़े से खड़े थे। उन्होंने ऐसे ही कैमरे की आंख से सेट को देखा, तो एक हिस्सा ऐसा दिखाई दिया, जहां लाइट रिफ्लेक्ट नहीं कर रही थी। वहां लाइट इन्डायरेक्टली बाउंस होती नजर आ रही थी। यह देख आरडी माथुर ने आसिफ से कहा कि मुझे इसका हल मिल गया है। जब आरडी माथुर ने मुगल-ए-आजम (Mugal-E-Azam) में जब प्यार किया तो डरना क्या अपनी तरकीब से शूट किया और कमाल दिखा। हजारों रंग-बिरंगे शीशों में अनारकली बनीं मधुबाला ही घूमती नजर आईं। यह आइकॉनिक सीन बन गया और आज भी इसके चर्चे होते हैं।