आर्थिक सर्वेक्षण

द हिंदु की एक खबर के मुताबिक, आर्थिक सर्वेक्षण 2021 में खाद्य सब्सिडी के खर्च को बहुत अधिक बताते हुए सुझाव दिया है कि 80 करोड़ गरीब लाभार्थियों को राशन की दुकानों से दिए जाने वाले अनाज के बिक्री मूल्य में बढ़ोतरी की जानी चाहिए।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से खाद्यान्न बेहद सस्ती दर पर दिए जाते हैं। इसके तहत पीडीएस राशन की दुकानों पर तीन रुपय प्रति किलो चावल, दो रुपये प्रिति किलो गेहूं और एक रुपये प्रति किलो के हिसाब से मोटा अनाज दिया जाता है।

क्या कहा गया है आर्थिक सर्वेक्षण में

सरकारी राशन में गेहूं-चवाल के दाम बढ़ाने की सिफारिश: आर्थिक सर्वेक्षण

खबर के मुताबिक, सस्ती दर वाले गेंहूं का ये मुल्य बढ़कर लगभग 27 रुपये प्रति किलो हो गया है। इसी तरह चावल का मूल्य भी बढ़कर लगभग 37 रुपये प्रति किलो से हिसाब से हो गया हो गया है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2021 में कहा गया है, “खाद्य सुरक्षा के प्रति बढ़ती प्रतिबद्धाता के मद्देनज़र खाद्ध प्रबंधन की आर्थिक लागत को कम करना मुश्किल है। लेकिन बढ़ते खाद्य सब्सिडी बिल को कम करने के लिए केंद्रीय निर्गम मूल्य (सीआईपी) में संशोधन पर विचार करने की ज़रूरत है”।

क्या होती है सीआईपी

सरकारी राशन में गेहूं-चवाल के दाम बढ़ाने की सिफारिश: आर्थिक सर्वेक्षण

सीआईपी वह रियायत दर होती है, जिस पर राशन की दुकानों के जरिए खाद्यान्न लोगों में बाटा जाता है। सरकार ने आर्थिक रूप से गरीब वर्गों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सब्सिडी जारी रखी है। यह कानून साल 2013 में लागू किया गया था, उसके बाद से गेहूं, चावल और मोटे अनाज की कीमतों में बदलाव नहीं किया गया है, जबकि हर साल इसकी आर्थिक लागत में बढ़ोतरी हुई है।

क्या कहते हैं अर्थशास्त्री

सरकारी राशन में गेहूं-चवाल के दाम बढ़ाने की सिफारिश: आर्थिक सर्वेक्षण

आईआईटी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर और विकास अर्थशास्त्री रितिका खेड़ा का कहना है कि केंद्र सरकार को सर्वेक्षण की सिफ़ारिशों को नहीं मानना चाहिए।

उनका कहना है कि खाद्य सब्सिडी पर बचत के बजाए जीवन बचाना सरकार की पहली प्राथमिकता होना चाहिए। सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए दूसरे उपाय कर सकती है।

आर्थिक सर्वेक्षण में खेती-किसानी से उम्मीद

सरकारी राशन में गेहूं-चवाल के दाम बढ़ाने की सिफारिश: आर्थिक सर्वेक्षण

आर्थिक सर्वेक्षण में इशारा किया गया है कि विभिन्न क्षेत्रों पर नज़र डालने पर पता चलता है कि कृषि क्षेत्र अब भी आशा की किरण है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक “कृषि क्षेत्र की बदौलत वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था को कोविड-19 महामारी से लगे तेज़ झटकों के असर काफी कम हो जाएंगे। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर पहली तिमाही के साथ-साथ दूसरी तिमाही में भी 3.4 प्रतिशत रही है”।

आर्थिक सर्वेक्षेण में मोदी सरकार के विवादित तीन कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए कहा गया है कि  “सरकार द्वारा लागू किए गए विभिन्न प्रगतिशील सुधारों ने जीवंत कृषि क्षेत्र के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है जो वित्त वर्ष 2020-21 में भी भारत की विकास गाथा के लिए आशा की किरण है”।