बेटे को पढ़ने के लिए दिल्ली छोड़ने आये पिता की हुई थी मौत, अब बेटा बना महज 22 साल में Ias

जिंदगी में सफलता हासिल करने वाले हर व्यक्ति की एक कहानी होती है, जिसमें कई तरह की कठीनाईया भी शामिल होती हैं. आसान से नजर आने वाले इस सफर में अनेक प्रकार के उतार चढाव शामिल होते है. कुछ ऐसी ही कहानी यूपीएससी परीक्षा पास करके IAS ऑफिसर बने 22 साल के युवा हिमांशु की है, जिन्होंने अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए कठोर परिश्रम किया इस सफर में उनकी जिंदगी में कई ‘तूफान’ आए.

मगर हिमांशु ने अपने आप को संभालते हुए लक्ष्य को हासिल कर ही लिया. दिल्ली नॉलेज ट्रैक को एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने जिंदगी के कुछ कठीन समय के बारे में बताया. हिमांशु की कहानी आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है.

हिमांशु नागपाल

बेटे को पढ़ने के लिए दिल्ली छोड़ने आये पिता की हुई थी मौत, अब बेटा बना महज 22 साल में Ias

हिमांशु का जन्म हरियाणा के हिसार जिले के गांव भूना में हुआ है. यहीं के एक हिंदी मीडियम स्कूल में उन्होने पांचवी कक्षा तक पढ़ाई की. अपनी दसवीं और बारहवीं की पढाई उन्होने हांसी के एक हिंदी मीडियम स्कूल  से की.  हिमांशु पढ़ाई में तेज थे, इसलिए दसवीं के बाद बारहवीं में भी उन्होंने टॉप किया. बारहवीं तक हिमांशु की जिंदगी  एकआम स्टूडेंट की तरह ही थी और सिविल सर्विस जैसी कोई भी पढ़ाई के बारे में उन्होने सोचा तक नही था.

हिमांशु नागपाल का दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिया गया इंटरव्यू

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हिमांशु के जीवन का मकसद

बेटे को पढ़ने के लिए दिल्ली छोड़ने आये पिता की हुई थी मौत, अब बेटा बना महज 22 साल में Ias

बारहवीं कक्षा के बाद हिमांशु ने दिल्ली आ गए और हंसराज कॉलेज में कॉमर्स स्ट्रीम में दाखिला लिया. उन्हें दिल्ली छोड़ने उनके पिता आए थे. कॉलेज में रखें बोर्ड को देखकर हिमांशु के पिता बोल पड़े कि मैं तुम्हारा नाम इस बोर्ड पर देखना चाहता हूं. दिल्ली से वापसी में उनकी मृत्यु हो गई. हिमांशु  पुरी तरह से बिखर गये मगर पिता के कहे आखिरी शब्द उनके जीवन का मकसद बन गए.

हिंमत हार गये थे हिमांशु

पिता की मौत का गम हल्का नही हुआ था की हिमांशु को भाई की मृत्यु की खबर मिली. इससे वे पूरी तरह हिम्मत हार गये और पढ़ाई छोड़कर घर मां के पास जाने कि तैयारी कर ली. उस कठीन समय में उनके चाचा ने सहारा दिया और हिमांशु को मां की चिंता छोड़ पढ़ाई जारी रखने को कहा.

उस बाद हिमांशु के लिए सिविल सर्विस एक मकसद बन गया था.उन्होने तय कर लिया था की हर संजोग मे उन्हें यह परीक्षा पास करनी है. हिमांशु के इस मकसद को कामयाबी की मंजिल तक पहुँचाने मे उनके चाचा ने उन्हें हर तरह का सपोर्ट किया.

कमजोर इंग्लिश बनता था रुकावट

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दूसरे स्टूडेंट्स को फर्राटेदार अंग्रजी बोलते देखकर हिमांशु के मन में हीनभावना आती और वे क्लास के कोने में छिपकर बैठे रहते. फिर भी हिमांशु ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और खुद को बदलने की, नये माहौल में ढ़लने की कोशिश करते हुए अपनी पढाई जारी रखी.

एमपी और एमएलए के फर्क से भी बेखबर

अन्य प्रतिस्पर्धी को  समझाते हुए हिमांशु ने कहा किउन्हें एमपी और एमएलए में क्या फर्क होता है यह भी मालूम नही था. इस उदाहरण से हिमांशु कहते हैं कि जरूरी नहीं कि सिविल सेवा पास करने वाले स्टूडेंट हमेशा ब्रिलिएंट ही हों, उनके जैसे भी  कई लोग होते हैं जो कई मंजिले तय करके यहां तक पहुंचते हैं. हिमांशु ने यह भी कहा कि ग्रेजुएशन का पीरियड हर एक स्टूडेंट के लिए खुद को सवारने का और तैयारी करने का गोल्डन पिरीयड  होता है,  इसलिये इसे वेस्ट न करें.

युवाओं को हिमांशु की सलाह

हिमांशु युवाओं को सलाह देते हैं कि “अपने बैकग्राउंड को लेकर कभी खुद को हलका न समझें. हिंदी, इंग्लिश से आपकी सफलता पर कोई फर्क नहीं पड़ता.परिश्रम, सही डायरेक्शन और सही मोटिवेशन आपको इस परीक्षा में सफल बनाते हैं . फैमिली फंक्शन, फेस्टिवल वगैरह कुछ भी हो आपकी पढ़ाई पर इसका असर नही होना चाहिए.”

हिमांशु ने यह भी  कहा कि,”जीवन में आने वाली समस्याओं की बात है तो याद रखो की उतार चढाव सभी के जीवन में होते हैं. लेकिन  उनका सामना करते हुए  उन्हे कैसे हल करना है यह आप पर ही डिपेंड है क्योंकी  आप  ही अपनी स्ट्रेंथ और वीकनेस जानते हैं. इसलिए  हर मुश्किल का सामना करते हुए आगे बढ़िये अगर आपका इरादा पक्का और सच्चा है तो आप जरूर सफल होंगे.”

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