किसान आंदोलन: तीनों कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद तीनों कृषि कानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगा दी और साथ ही एक कमेटी का गठन करने का भी आदेश दिया। अब उम्मीद है कि, सुप्रीम कोर्ट कृषि कानून को लेकर जल्द ही अपना फैसला भी सुना सकती है। संभव हो सकता है कि, सुप्रीम कोर्ट सरकार और किसानों को लेकर जारी हुए इस गतिरोध को दूर करने के लिए देश के किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में भी उच्च स्तरीय समिति का गठन करें।

किसान आंदोलन: तीनों कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना व न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने इस मामले को लेकर सुनवाई के समय संकेत दिए थे कि, कृषि कानूनों और किसान के आंदोलनों से संबंधित मुद्दों पर आदेश पारित कर दिए जा सकते हैं। आइए जानते हैं इस आदेश से जुड़ी कुछ खास बातें

कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक और कमेटी का गठन होगा।

सुप्रीम कोर्ट में हरीश साल्वे द्वारा लगाए गए आरोप में कहा है कि- प्रतिबंधित संगठन इस प्रदर्शन को फंडिंग कर रहे हैं। अदालत के समक्ष एक याचिका भी दायर की गई इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एजी वेणुगोपाल से सवाल किया कि क्या वे कंफर्म कर सकते हैं?

इस पर उन्होंने कहा कि हां, हम इस बात को लेकर पुष्टि कर सकते हैं। जिसके लिए 1 दिन का समय भी चाहिए, 26 जनवरी को हाई सिक्योरिटी भी होती है।

एक लाख लोगों को राजधानी में एक साथ होने पर सवाल उठता है? फायदे के लिए न्यायालय की मदद भी नहीं लेनी चाहिए। पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि, यह सब पुलिस पर छोड़ना चाहिए।

किसान आंदोलन: तीनों कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

हरिश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है कि, कोर्ट जब आदेश दे तो उसमें लिखित दे दे कि, एमएसपी जारी होगी और किसानों को रामलीला मैदान में प्रदर्शन के लिए अनुमति भी दी जाएगी। इस पर कोर्ट का कहना है कि, सभी आग्रह करेंगे, तो सोचा जा सकता है। मगर किसानों को प्रदर्शन के लिए पहले पुलिस से अनुमति लेना आवश्यक है। किसान संगठन को लेकर कहा कि, यह राजनीति नहीं है। राजनीति और न्याय तंत्र में काफी फर्क है।

कमेटी की बात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, हम कमेटी बनाएंगे और दुनिया की कोई भी ताकत नहीं रोक सकती है। बस जमीनी स्थिति समझना है। अटार्नी जनरल ने कहा कि कमेटी अच्छा तरीका है। हरीश साल्वे ने कहा कि, कानून को लागू करने के आरोप पर राजनीति जीत के रूप में नहीं मानना चाहिए। इसे कानूनों पर भी चिंताओं की गंभीरता के रूप में देखना चाहिए।

सीजेआई का कहना है कि, समिति इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का भी एक हिस्सा है। इस पर वकील एम एल शर्मा का कहना है कि, कई व्यक्ति बातचीत के लिए आए, लेकिन बातचीत के मुख्य व्यक्ति प्रधानमंत्री ही नहीं आए। चीफ जस्टिस ने कहा कि- प्रधानमंत्री को हम नहीं कह सकते हैं आप मीटिंग के लिए जाओ। मामला हमारे हाथ में नहीं है।

सीजेआई ने कहा कि- समिति का गठन इसलिए किया जा रहा था कि, हमारे पास तो स्पष्ट हो सके। इस पर कोई फर्क नहीं सुनना चाहते। किसान समिति में नहीं जाएंगे समस्या का हल करने के लिए देख रहे है। अगर किसान आंदोलन कर रहे हैं, तो आप ऐसा कर सकते हैं। पर वकील ने अदालत को बताया कि- वे अदालत द्वारा गठित किए गए समिति के समक्ष में उपस्थित नहीं हो सकते।

कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पहले किसान नेता राकेश ने कहा कि- अदालत के फैसले के बाद एक कमेटी बैठक होगी। इसके बाद लीगल टीम से बात कर सकते हैं। बाद में आगे की रणनीति बनाई जाएगी। तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता वाली याचिकाओं के साथ सोमवार को किसानों के आंदोलन के समय नागरिकों के निर्बाध रूप से उठे मुद्दे की याचिका पर सुनवाई हुई थी। इस पर कोई भी हल नहीं निकला था और निराशा ही हाथ लगी।

सोमवार की सुनवाई में ये हुआ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसानों के साथ उनकी बातचीत का जो तरीका था उससे काफी निराशा हुई। इसके लिए समिति गठित की जाएगी और आदेश मंगलवार को दिया जाएगा। न्यायाधीश एस ए बोबडे ने नाराजगी व्यक्त किया और कहा कि- यदि सरकार इन कानूनों पर अमल स्थगित नहीं करेगी तो रोक लगाई जा सकती है।

उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए ही होगी आप सभी लोग इस मुद्दे को हल करने के लिए काफी उम्मीद में लगा रहे हैं, तो इस समिति के समक्ष जा सकते हैं। ना तो इसमें आदेश पारित होगा, ना ही दंडित किया जाएगा, केवल एक रिपोर्ट ही प्रस्तुत होगी।

किसान आंदोलन: तीनों कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

चीफ जस्टिस ने कहा कि, हम इस विरोध में प्रदर्शन से प्रभावित नागरिकों के जीवन में शिक्षा के बारे में काफी चिंतित है। सभी मौजूद शक्तियों के अनुसार समस्या को निपटाने की कोशिश कर रहे हैं, जो भी शक्ति हमारे पास है, उनमें से कानून को निलंबित करके समिति बनाएं। संकेत देते हुए यह भी कहा कि, किसी भी पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति का गठन होगा। जिसमें से सभी किसान यूनियन प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जा सकता है।

अटॉर्नी जनरल से पीठ ने कहा कि, पहले ही काफी समय दिया जा चुका है। संयम के बारे में हमें कोई भी भाषण ना दिया जाए। शीर्ष अदालत का कहना है कि- इस मामले में कृषि कानून और किसानों के आंदोलन को लेकर कई हिस्सों में आदेश दिया जाएगा। अदालत द्वारा गठित पीठ के अध्यक्ष के लिए पूर्व न्यायाधीश आर एम लोढ़ा सहित सहित दो-तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के नाम का सुझाव पेश किया जाए।

पीठ ने कहा कि, यह सब जो भी हो रहा है कुछ समझ में नहीं आ रहा है। राज्य कानूनों के खिलाफ काफी विद्रोह कर रहे हैं। बातचीत से सिर्फ निराशा ही हुई है। आपकी बातचीत पर कोई भी टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं। तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की जा रही है। न्यायालय ने कहा कि, इस कानून को खत्म करने के बारे में बात नहीं हो पाई है। यह बहुत ही संवेदनशील मामला है।

हमारे सामने एक ऐसी भी याचिका नहीं आई है, जो इस कानून को लाभकारी कह सकें। कोर्ट को भी बात ध्यान रखनी चाहिए कि, किसी भी कानून स्थगित करवाना एक चलन बन जाएगा। इस मामले को लेकर सुनवाई हो सकती है। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल के द्वारा दी गई दलील कि, किसी भी कानून पर उस समय तक रोक नहीं लगाई जा सकती है जब तक न्यायालय खुद महसूस ना करें कि मौलिक अधिकारों या फिर संविधान की योजना का हनन किया जा रहा है।

"

Urvashi Srivastava

मेरा नाम उर्वशी श्रीवास्तव है. मैं हिंद नाउ वेबसाइट पर कंटेंट राइटर के तौर पर...