मनोज कुमार जो 24 साल के है। ये बचपन से ही दृष्टिहीन है। इनके पिता को लॉकडाउन की वजह से काम न मिलने से काफी दिक्कत हुआ। जिसके बाद बेटा मनोज ने पिता की मदद करने का सोचा। जिसके बाद मनोज ने अपने पापा की मदद के लिये मोमबत्ती बनाने शुरू किये। बता दें ये परिवार हिमाचल के कांगड़ा जिले में रहने वाला है।
मजदुर थे पिता
एक रिपोर्ट ने मुताबिक , मनोज हिमांचल के रहने वाले है लेकिन वे चंड़ीगढ़ में पढाई कर रहे थे। लेकिन जब देश मे कोरोना की आफत आया और लॉक डाउन हो गया तो सब की तरह वे भी घर आ गए। वही मनोज के परिवार में माता पिता के अलावा एक बड़ी बहन है। वही मनोज के पिता कोरोना के पहले मजदूरी करते थे,लेकिन कोरोना की वजह से उनकी मजदूरी भी बन्द हो गयी।
किसी के आगे हाथथ नहीं फैलाना
मनोज के पिता का कहना है कि ” ठेकेदार के पास मजदूर पूरे हो गए थे, दो तीन जगह काम किया और जब मजदूरी लेने गए तब कही आधे तो कही मिले ही नही पैसे।मनोज के पिता सुभाष ने अपनी आप बीती सुनाते हुये कहे कि मेरे बच्चे बोलते थे कि सुखी रोटी खा कर रह लेंगे लेकिन किसी के आगे भीख नही मांगेंगे। इसके वजह से मैं किसी के आगे हाथ नही फैलना चाहता था।
उसी के बाद मनोज के दिमाग में मोमबत्ती का आईडिया आया। उनके दिमाग मे आया कि इस त्यौहार के नजदीकी से मोमबत्ती बना कर बेच के अपने परिवार के मुश्किलें खत्म कर सकते है। मोमबत्ती बनने का तरीका मनोज पहले से कर चुके थे।
काम को शुरू करने के लिये मनोज ने अपने दो दोस्तों से मोमबत्ती के सांचे मंगवाए। जो दिल्ली से आये थे। मनोज के परिवार के मदद के लिये कई लोग सामने आए।जो उनके लिये अच्छा था। एक समय मे मोम न मिलने से काम रुक गया था। जिसके बाद समस्या बढ़ गया था, जिसके बाद कुछ जालंधर और कुछ चंडीगढ़ से मंगवाया। शुरू के चार – पाँच दिन दिक्कतें आये और काम भी नही आये।
जिसके बाद इस मुशीबत की घड़ी में हिम्मत नही छोड़े।