Nitish-Kumar-Is-Badly-Trapped-By-Increasing-Reservation-High-Court-Gave-A-Big-Blow

Nitish kumar: बिहार में आरक्षण एक बड़ा मुद्दा है, पिछले ही साल नीतीश कुमार ने राज्य में आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाकर एक बड़ा दांव चला था लेकिन अब कोर्ट ने नीतीश कुमार को एक बड़ा झटका देते हुए  शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में दिए गए 65 फीसदी आरक्षण को रद्द कर दिया है साथ ही हाई कोर्ट ने नीतीश सरकार के आरक्षण सीमा बढ़ाए जाने के फैसले को भी पूरी तरह से खारिज कर दिया है एवं सरकार के कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकृति प्रदान कर दी है ।

कोर्ट ने दिया Nitish kumar को झटका

Nitish Kumar
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2023 में बिहार सरकार ने सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया था जबकि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए मात्र 35 फीसदी पद निर्धारित कर दिए गए थे। जिसमें ईडब्लूएस के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण भी शामिल था। लेकिन सरकार के इस फैसले को गौरव कुमार और अन्य ने कोर्ट में चुनौती दी।

इस पूरे मामले पर पटना हाई कोर्ट में सुनवाई हुई और 11 मार्च 2024 को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सार्वजनिक किया गया है। कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए नीतीश सरकार (Nitish kumar) द्वारा बढ़ाई गई आरक्षण की सीमा को रद्द कर दिया है यानि की अब बिहार में आरक्षण सीमा घटकर दोबारा से 50 प्रतिशत हो गई है।

9 नवंबर को पारित हुआ था नया आरक्षण

Nitish Kumar
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गौरतलब है कि सीएम नीतीश कुमार ने 7 नवंबर 2023 को विधानसभा में घोषणा की थी आरक्षण के दायरे को और बढ़ाकर सरकार 50 फीसदी से 65 या उससे ऊपर ले जाना चाहती है। यानी की सरकार की मंशा थी कुल आरक्षण 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने की। लेकिन सत्ता के नशे में चूर नीतीश ये भूल गए की सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही साफ कर दिया था कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता।

खैर कैबिनेट की मीटिंग हुई और नीतीश (Nitish kumar) के इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी गई। इसके बाद  9 नवंबर को बिहार सरकार ने अपने इस प्रस्ताव को विधानमंडल के दोनों सदनों से पारित भी करवा दिया। उस समय नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा थे और ये आरक्षण का दायरा बढ़ाने का उनका फैसला एक मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा था।

Nitish kumar ने क्यों बढ़ाया आरक्षण

Nitish Kumar
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इसकी शुरूआत होती है केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना नहीं कराने के फैसले से। दरअसल केंद्र ने साफ कर दिया था कि वो जातीय जनगणना नहीं करवाएगी, लेकिन राज्यों को छूट दी गई की वो अपने राज्य में जातीय जनगणना करवा सकते हैं। नीतीश कुमार (Nitish kumar) ने इसी मौके का फायदा उठाया और अपने राज्य में जातीय जनगणना करवा दी। नीतीश (Nitish kumar) ने तर्क दिया था कि इससे उन्हें कल्याणकारी योजनाएं बनाने में सहायता मिलेगी। लेकिन जब जातीय जनगणना के आंकड़े सामने आए तो नीतीश ने जातियों की आबादी के हिसाब से आरक्षण की सीमा में भी अपने हिसाब से संसोधन कर दिया।

दरअसल आंकड़ों में पाया गया कि बिहार में सामान्य वर्ग की आबादी 15 प्रतिशत है और सबसे ज्यादा 6 लाख से अधिक नौकरियां भी उनके ही पास हैं। नौकरी के मामले में दूसरे नंबर पर 63 फीसदी आबादी पिछड़े वर्ग की थी और इस वर्ग के पास कुल 6 लाख 21 हजार से ज्यादा नौकरियां थी। तीसरे पर 19 प्रतिशत वाली एससी जातियां थी। एससी के पास 2 लाख 91 हजार के करीब नौकरियां थी। वहीं सबसे कम सरकारी नौकरियां एसटी वर्ग के पास थी। इस वर्ग के पास सिर्फ 30 हजार नौकरियां थी।

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