करवा चौथ के दिन सभी सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती है. कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है. करवा चौथ वाले दिन व्रत की शुरुआत सरगी, साड़ी से होती है. करवा चौथ की सुबह 4:00 बजे घर की बड़ी महिलाएं अपनी बहू को सरगी साड़ी पहना देती है.
सौभाग्यवती महिलाएं करती हैं करवा चौथ का विधि विधान से व्रत
सभी सौभाग्यवती महिलाएं सुबह 4:00 बजे उठकर सरगी खाकर अपने व्रत को शुरू कर देती हैं. सरगी में फैनी, मट्ठी चीजें शामिल होती है. व्रत के दौरान महिलाएं पूरा 16 श्रृंगार करती हैं. महिलाएं निर्जला व्रत रहकर व्रत का पालन करती हैं.
महिलाएं दोपहर या शाम को करवा चौथ की व्रत कथा सुनती है, कथा के लिए पाटे पर चौकी में जल भरकर रख लेती हैं और थाली में रोली, गेहूं, चावल मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान और कई सामग्री आदि रखती हैं.
व्रत के दौरान इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि सभी व्रत रखने वाली महिलाएं करवों में रौली से सतियां बना ले. करवा के अंदर पानी और ऊपर ढ़क्कन में चावल, गेहूं भरें. व्रत कथा शुरू करने से पहले प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा होती है, जिसके बाद ही करवा चौथ की कथा पढ़ी जाती है . गणेश भगवान विघ्नहर्ता है, जिसके कारण सबसे पहले उन्हीं की पूजा का विधान है.
पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
साल 2020 में करवा चौथ का व्रत सभी सौभाग्यवती महिलाएं 4 नवंबर को करेंगी. 4 नवंबर यानी कि, बुधवार को संध्या पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 5:34 से शाम 6:52 तक है . पूजा की शुरुआत पटरे पर चौकी में जल भरकर की जाती है. इसके बाद चावल, गेहूं, मिट्टी का करवा आदि रखा जाता है. विघ्नहर्ता गणेश की सर्वप्रथम पूजा करने के बाद भगवान शिव का पूजन किया जाता है, और कथा सुनी जाती है. करवा बदल कर बायना सास के पैर छूकर दे दिया जाता है. रात में चंद्रमा के दर्शन किए जाते हैं. सभी महिलाएं चंद्रमा को छलनी में देखती है. इसके बाद अपने पति को चलने में देखते हैं. इसके बाद महिलाएं अपने पति के पैर छूती हैं और उनके हाथ से पानी पीकर करवा चौथ का निर्जला व्रत खोलती है.