Sarva Pitru Amavasya:सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya), जिसे पितृ पक्ष के अंतिम दिन के रूप में मनाया जाता है, इस वर्ष एक विशेष घटना के साथ जुड़ा है—सूर्य ग्रहण। इस दिन भारतीय संस्कृति में पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का महत्वपूर्ण महत्व है। श्राद्ध कर्म, जो पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, इस दिन का केंद्र बिंदु है। लेकिन इस बार ग्रहण के कारण क्या इसे संपन्न करना चाहिए या नहीं, यह सवाल उठता है। आइए जानते हैं कि इस विशेष अवसर पर श्राद्ध कर्म करने का सही तरीका क्या है और ग्रहण का इसका क्या प्रभाव पड़ता है।
भारत में न दिखने से सूतक काल नहीं होगा मान्य
सूर्य ग्रहण के प्रकार और उसकी दृश्यता के बारे में जानना जरूरी है। यदि चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह ढकता है, तो इसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है, जबकि आंशिक ढकाव को आंशिक सूर्य ग्रहण कहा जाता है। ग्रहण हमेशा पृथ्वी के कुछ क्षेत्रों में ही दिखाई देता है, जो चंद्रमा की छाया के मार्ग पर निर्भर करता है।इस साल 2 अक्तूबर को सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) पर सूर्य ग्रहण होगा, लेकिन यह भारत में दिखाई नहीं देगा। इसलिए सूतक काल मान्य नहीं होगा। भारतीय समयानुसार, यह ग्रहण रात 9:13 बजे शुरू होकर 3:17 बजे समाप्त होगा, लेकिन इसका भारतीय वातावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
सूर्य ग्रहण का पितृ पक्ष में महत्व
हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण को अशुभ माना जाता है, और इसके दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान इसका विशेष महत्व है, क्योंकि इस समय पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। ग्रहण के समय श्राद्ध कर्म करना शुभ माना जाता है, और दान देना भी पुण्य का कार्य है। इस दौरान भगवान सूर्य और अन्य देवताओं के मंत्रों का जाप करने की परंपरा है।ग्रहण को नंगी आंखों से देखना हानिकारक हो सकता है, इसलिए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को विशेष ध्यान देने की सलाह दी जाती है। हिंदू धर्म में इस समय खाने-पीने से भी वर्जित रहता है। पितृ पक्ष की अमावस्या पर लगने वाला सूर्य ग्रहण एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है।
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