नई दिल्ली, Tripund Tilak: सनातन धर्म में तिलक लगाने का बड़ा महत्व है। तिलक मस्तक, कंठ यानी गले, भुजाओं, हृदय और नाभि पर लगाने का नियम है, तिलक भले ही शरीर के अंगों पर न लगाएं लेकिन मस्तक पर अवश्य लगाना चाहिए। अक्सर आपने साधु-संतों, पंडितों और या फिर तपस्वियों के माथे पर अलग-अलग तरह के तिलक देखें होंगे। हालांकि यह दो प्रकार से लगाया जाता है। पहला हमेशा नीचे से ऊपर की ओर यानी कि वर्टिकल लगाया जाता है और दूसरा त्रिपुंड हमेशा बाएं से दाएं नेत्र की ओर यानी कि हॉरिजेंटल लगाया जाता है। मालूम हो कि, हर तिलक की अपनी एक विशेष बात होती है। लेकिन आज हम इस आर्टिकल में हॉरिजेंटल यानी त्रिपुंड तिलक (Tripund Tilak) के बारें में विस्तार से जानेंगे।
सनातन धर्म में है ये दो पूजा पद्धती परंपराओं
यह बात तो हम सभी जानते हैं कि सनातन धर्म के मुताबिक, पूजा पद्धतियों में दो परंपराएं हैं। पहली जिसे वैष्णव मत और दूसरी शैव मत के नाम से जाना जाता है। बता दें कि, त्रिपुंड तिलक शैव मत परंपरा के सन्यासी धारण करते हैं। यह तिलक पीले चंदन या फिर भस्म से लगाया जाता है और इस तरह का तिलक शिव भक्त अपने माथे और शरीर पर लगाते हैं।
त्रिपुंड किसे कहते हैं?
आपने साधु-संतों के माथे पर चंदन या भस्म से बनी तीन रेखाएं देखी होगी यह तिलक त्रिपुंड कहलाती है। इस तरह का तिलक चंदन या भस्म से बना होता है जिसे तीन उंगुलियों की मदद से त्रिपुंड बनाया जाता है। पुराणों के मुताबिक, इन तीन रेखाओं में 27 देवताओं का वास होता है। त्रिपुंड (Tripund Tilak) की प्रत्येक रेखा में 9 देवता वास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि, त्रिपुंड धारण करने वाले शिव भक्त होते हैं और इन पर भोले नाथ की विशेष कृपा होती है।
त्रिपुंड तिलक का महत्व
आपको बता दें कि, ऐसी मान्यता है कि, त्रिपुंड लगाने वाले जातक के मन में किसी भी तरह के बुरे ख्याल नहीं आते और नकारात्मकता इनसे कोसो दूर रहती है। गौरतलब है कि, त्रिपुंड सिर्फ माथे पर ही नहीं बल्कि शरीर के कुल 32 अंगों पर लगाया जाता है। दरअसल, अलग- अलग अंग पर लगाए जाने वाले त्रिपुण्ड का प्रभाव और महत्व भी अलग है। इन अंगों में मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, ह्रदय, दोनों पाश्र्व भाग, नाभि, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर शामिल हैं।
किस अंग पर किस देवता का होता है वास
पुराणों के मुताबिक, शरीर के हर हिस्से में देवताओं का वास होता है। मस्तक में शिव, केश में चंद्रमा, दोनों कानों में रुद्र और ब्रह्मा मुख में गणेश, दोनों भुजाओं में विष्णु और लक्ष्मी, ह्रदय में शंभू, नाभि में प्रजापति, दोनों उरुओं में नाग और नागकन्याएं, दोनों घुटनों में ऋषि कन्याएं, दोनों पैरों में समुद्र और विशाल पुष्ठभाग में सभी तीर्थ देवता रूप में रहते हैं।
भस्म और त्रिपुंड में अंतर
आपको बता दें कि, भस्म जली हुई वस्तुओं की राख को कहते हैं लेकिन यह याद रहे की हर राख को भस्म के रुप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। भस्म के तौर पर सिर्फ उन्हीं राख का इस्तेमाल होता है जो पवित्र कार्य के लिए किए गए हवन या यज्ञ से प्राप्त हुआ हो।
त्रिपुंड के लिए शिवपुराण में लिखी है ये बात
शिव पुराण के मुताबिक, जो व्यक्ति नियमानुसार अपना माथे पर भस्म या चंदन से त्रिपुंड यानी सिर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक तीन रेखाएं धारण करता है उसके सभी पाप धुल जाते है और वह मनुष्य भोलेनाथ की कृपा का पात्र बन जाता है।
साइंस भी मानता है त्रिपुंड की मान्यता
वहीं अगर बात करें त्रिपुंड (Tripund Tilak) को लेकर साइंटिफिक मान्यता की तो विज्ञान का मानना है कि, चंदन और भस्म का तिलक माथे को शीतलता यानी ठंडक पहुंचाता है। ज्यादा मानसिक श्रम करने से विचारक केंद्र में पीड़ा होने लगती है। ऐसे में त्रिपुण्ड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है। इससे मानसिक शांति मिलती है।