Ramnami Community: 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह की शुरुआत हो चुकी है। बस कुछ ही पल में रामलला अपने गर्भगृह में विराजमान हो जाएंगे। लेकिन इसी बीच छत्तीसगढ़ में रहने वाले रामनामी संप्रदाय (Ramnami Community) की भी खूब चर्चा हो रही है। इस संप्रदाय के एक व्यक्ति ने प्राण प्रतिष्ठा को लेकर एक बड़ा दावा किया है। दावे के अनुसार, उनके पूर्वजों ने राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तारीख 150 साल पहले ही बता दी थी। लेकिन ये समुदाय राम मूर्ति का पूजा नहीं करता,लेकिन इस संप्रदाय के लोग अपने पूरे शरीर पर रामलला का नाम गुदवाते हैं। चलिए आपको बताते हैं।
कब अस्तित्व में आया रामनामी समाज
छत्तीसगढ़ के बलौदाबजार, जांजगीर चांपा, मुंगेली और रायगढ़ जिले में दलित समाज के लोगों की संख्या ज्यादा है। जांजगीर चांपा के एक छोटे से गांव चारपारा में दलित युवक परशुराम ने 1890 के आसपास रामनामी संप्रदाय (Ramnami Community) की स्थापना की थी। इस दौर को दलित आंदोलन के रूप में देखा जाता है क्योंकि रामनामी समाज से जुड़ने वाले लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ने लगी।
शरीर पर गुदवाते हैं भगवान राम का नाम
छत्तीसगढ़ के चांदली गांव से रामनामी समाज (Ramnami Community) की शुरुआत हुई थी। गुलाराम रामनामी जी इस समाज के एक अहम सदस्य हैं जिन्होंने रामनामी समाज के बारे में बहुत तरीके से बताया रामनामियों को राम राम शरीर पर गुदवाना अनिवार्य है। गोदना करवाने के बाद समाज मे अलग पदवी का विभाजन होता है। राम राम से अभिवादन करने वाले और शरीर के किसी भी हिस्से में राम नाम लिखवाने वाले को रामनामी कहते हैं। माथे पर दो बार राम का नाम गुदवाने वाले शिरोमणि कहलाते हैं। पूरे माथे पर राम राम नाम लिखवाने वाले को सर्वांग कहते हैं और शरीर के प्रत्येक हिस्से पर यानी सिर से लेकर पैर तक राम राम का नाम लिखवाने वाले को नखशिख कहा जाता है।
मंदिर में नहीं मिला प्रवेश तो शरीर को बना लिया मंदिर
परसूराम जी को अनुसूचित जाति के होने के कारण १८९० में उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। दुखी हो कर उन्होनें अपने कपाल व पूरे शरीर पर “राम” गुदवा लिया। वहीं से रामनामी संप्रदाय स्थापित हुआ। आज भी छत्तीसगढ़ में रामनामी संप्रदाय के लोग अपने पूरे शरीर पर “राम” गुदवा लेते हैं।… pic.twitter.com/x3jIjqDRbg
— digvijaya singh (@digvijaya_28) January 19, 2024
रामनामी समाज (Ramnami Community) की शुरुआत साल 1890 के आसपास हुई थी। इस समुदाय की स्थापना परशुराम नाम के एक दलित व्यक्ति ने की थी।। परशुराम जी को अनुसूचित जाति के होने के कारण 1890 में उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। दुखी होकर उन्होंने अपने कपाल और पूरे शरीर पर राम गुदवा लिया। वहीं से रामनामी संप्रदाय स्थापित हुआ। आज भी छत्तीसगढ़ में रामनामी संप्रदाय के लोग अपने पूरे शरीर पर राम गुदवा लेते हैं। यह समुदाय मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसंगढ़ में फैला हुआ है।
रामनामी समाज के नियम
गुलाराम जी कहते हैं किस हमारे कोई नियम नहीं है और ना कोई जाति बंधन है। राम नाम के भक्त अनेक हैं, भक्तन के राम नाम एक। हमारा मानना है कि कोई राम कहे, कोई कृष्ण कहे, कोई खुदा कहे या कोई अल्लाह कहे सब एक ही हैं। हम रामनामियों का किसी आडंबर पर नहीं बल्कि शरीर की शुद्धता पर ध्यान होता है। लेकिन अगर वो व्यक्ति मांस मदिरा का सेवन या गौ हत्या करता है तो वो लोग इस समाज में शामिल नहीं हो सकते हैं। जो व्यक्ति मन से, कर्म से, वचन से राम नाम में विश्वास करता हो वहीं, व्यक्ति रामनामी समाज (Ramnami Community) में भी शामिल हो सकता है।
दूरी बना रही आने वाली पीढ़ी
गुलाराम जी कहते हैं कि, जितने भी महापुरुष आए वो लोग उपदेश देकर चले गए। लेकिन,रीति रिवाजों को मानना आने वाली पीढ़ी पर निर्भर करता है। परंतु यह परिवर्तन स्वाभाविक भी है क्योंकि नई पीढ़ी पढ़-लिख कर अपने रोजगार के सिलसिले में अन्य स्थानों में आने-जाने लगी है। ऐसे में वे अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाना पसंद नहीं करते। यही वजह है कि साल में एक बार लगने वाले रामनामी भजन मेले में रामनामी समाज (Ramnami Community) मे दीक्षित होने वालों की संख्या भी लगातार घटती ही जा रही है।
ये भी पढ़ें: 22 जनवरी को जिस दिन होगा राम मंदिर का उद्घाटन, उस दिन दिल्ली के बाजारों में सोने समेत इन चीजों पर होगी बंपर छूट