वो कहते है न नाम कमाना जितना मुश्किल होता है उससे कई ज्यादा होता है उस नाम को बनाए रखना… फिर बात चाहे क्रिकेट जगत की हो, पोलिटिक्स की या फिर बॉलीवुड की ही क्यों न हो.. हर जगह सिर्फ नाम कमाने से इंसान को सब कुछ हासिल नहीं होता है। बता दें क्रिकेट में नाम कमाने के बाद पॉलिटिक्स के गलियारों में अपनी एक छाप छोड़ने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट ने जोरदार तमाचा मारा है। दरअसल 34 साल पुराने मामले में अब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू पाजी को एक साल की सख्त सजा सुना दी है। आइये इस आर्टिकल के जरिए जानते है इस पूरे माजरे के बारे में…
3 दशक पुराने मामले में Navjot Singh Sidhu को मिली सजा
दरअसल भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व बल्लेबाज और कांग्रेस नेता Navjot Singh Sidhu को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से करारा झटका लगा है। बता दें सुप्रीम कोर्ट ने करीब 34 साल बाद रोड रेज मामले में सिद्धू को एक साल कैद की सजा सुनाई है। आपको बता दें ये मामला 34 साल पुराना है, जब 27 दिसंबर 1988 को पटियाला में एक विवाद हुआ थाऔर ये विवाद पार्किंग को लेकर शुरु हुआ था।
जब पीड़ित और दो लोग और बैंक से पैसा निकालने के लिए जा रहे थे, सड़क पर जिप्सी देखकर Navjot Singh Sidhu से उसे हटाने को कहा। यहीं से पूरी बहसबाजी शुरू हो गई। पुलिस का आरोप था कि इस दौरान सिद्धू ने पीड़ित के साथ मारपीट की और मौके से फरार हो गए। पीड़ित को अस्पताल ले जाने पर मृत घोषित कर दिया गया। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट ने 3 दशक बाद इस मामले में अपना फैसला सुनाया है।
सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट से की थी ये दलील
बता दें इस रोड रेज मामले में Navjot Singh Sidhu ने 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से दलील की थी कि ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिससे ये पता चले कि ये मौत मुक्का मारने की वजह से ही हुई थी। इसके साथ ही सिद्धू ने कहा कि इस पुराने मामले को परिवार फिर से खोलने की अर्जी कर रहा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सभी दस्तावेज और सबूतों के बाद 34 साल बाद सिद्धू को एक साल की सजा सुना दी है।
साल 2006 में इस मामले पर सिद्धू को मिली थी ये सजा
बता दें Navjot Singh Sidhu को इससे पहले भी इस मामले में साल 2006 में हाई कोर्ट ने तीन साल की सजा दी थी। सिद्धू और एक अन्य को गैर इरादतन हत्या के मामले में दोषी करार देते हुए ये सजा दी गई थी। उन्होंने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने तब सिद्धू को मारपीट का दोषी करार देते हुए एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया था।