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नई नवेली दुल्हन क्यों नहीं मनाती ससुराल में पहली होली? जानें इसके पीछे की हैरान करने वाली कहानी 

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Holi: होली का त्योहार आते ही लोगों में इसे लेकर एक्साइटमेंट बढ़ जाती है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी होली के रंग में रंग जाते हैं। होली (Holi) आते ही घरों में तरह-तरह के पकवान बनना शुरू हो जाते हैं। इस बार होली का त्योहार 25 मार्च को मनाया जाएगा और होलिका दहन उससे एक दिन पहले 24 मार्च को किया जाएगा। लेकिन हम सभी बचपन से अपने आस पड़ोस में एक परंपरा देखते हुए आए है कि कोई भी नई नवेली दुल्हन अपनी पहली होली ससुराल में नहीं मनाती। किसी वजह कोई भी ठीक से नहीं बता पाता। लेकिन जब हम इस सवाल का जवाब पुराणों में खोजते हैं तो आसानी से इसका जवाब मिल जाता है। तो चलिए इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि क्या है इसके पीछे की वजह?

विष्णुभक्त होने के नाते बच गए थे प्रह्लाद

नई नवेली दुल्हन क्यों नहीं मनाती ससुराल में पहली होली? जानें इसके पीछे की हैरान करने वाली कहानी 

पुराणों में वर्णित घटना के अनुसार, हिरण्यकश्यप नाम के राक्षस के घर भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद का जन्म हुआ था। वह बचपन से ही विष्णुभक्त थे। यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल पसंद नहीं थी तो उसने अपनी बहन होलिका (Holi) के साथ मिलकर अपने ही बेटे को मारने की कोशिश की। लेकिन प्रह्वाद विष्णु भक्त होने के नाते बच जाते हैं और होलिका जलकर भस्म हो जाती है।

नई दुल्हन इस वजह से ससुराल में नहीं मनाती पहली होली

नई नवेली दुल्हन क्यों नहीं मनाती ससुराल में पहली होली? जानें इसके पीछे की हैरान करने वाली कहानी 

कई लोक कथाओं में होलिका की इसी कहानी एक और स्वरूप मिलता है। कहते हैं कि जिस दिन होलिका ने आग में बैठने का काम किया अगले दिन उसका विवाह भी होना था। उसके होने वाले पति का नाम इलोजी बताया जाता है। लोक कथा के मुताबिक, इलोजी की मां जब बेटे की बारात लेकर होलिका के घर पहुंची तो उन्होंने उसकी चिता जलते हुए देखी। अपने बेटे का बसने वाला संसार उजड़ता देख वह बेसुध हो गईं और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। बस तभी से ये प्रथा चली आ रही है कि नई बहू को ससुराल में पहली होली (Holi) नहीं देखनी चाहिए। इसलिए नई शादीशुदा लड़की होली से कुछ दिन पहले मायके आ जाती हैं।

बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है Holi का त्योहार

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भागवत कथा और विष्णु पुराण के अनुसार, होलिका (Holi) को ब्रह्माजी से वरदान में ऐसा वस्त्र मिला था जो कभी आग से जल नहीं सकता था। बस होलिका उसी वस्त्र को ओढ़कर प्रह्लाद को जलाने के लिए आग में जाकर बैठ गई। जैसे ही प्रह्लाद ने भगवान विष्णु के नाम का जाप किया, होलिका का अग्निरोधक वस्त्र प्रह्लाद के ऊपर आ गया और वह बच गया। जबकि होलिका भस्म हो गई। मानयता है, कि तब से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के उत्साह स्वरूप सदियों से हर वर्ष होलिका दहन मनाया जाता है। होलिका दहन की कथा पाप पर धर्म की विजय का प्रतीक है।

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