महामारी

डांस इंसान की लाइफ से जुड़ा हुआ एक ऐसा मनोरंजन है जिसे हर एक इंसान जरूर करना पसंद करता है. चाहे कोई इस बात से कितनी भी आनाकानी करे लेकिन हर कोई कभी ना कभी नाचता जरूर है. वहीं अगर हम कहे कि नाचते-नाचते इंसान की मौत हो गई या ये किसी के लिए महामारी की वजह बन जाए तब आपके क्या विचार होंगे? क्योंकि नाचते हुए किसी की सांस थम सकती हैं ये तो मुमकिन है.

लेकिन कोई मर जाए ये मुमकिन नही होता. गौरतलब है कि, हमारी दुनिया ने एक ऐसा दौर देखा था जब नाचना अभिशाप बन गया था. किसी एक इंसान या समुदाय के लिए नहीं बल्कि पूरे शहर के लिए जहां लोग नाचते थे और मर जाते थे. इसी सिलसिले में इस आर्टिकल में आगे बड़ते हुए इस आर्टिकल में हम ऐसी ही महामारी के रहस्य पर बात करने वाले हैं..

फ्राउ ट्रॉफ़ी ने शुरू किया नाचना

डांसिंग डेथ: एक ऐसी महामारी जिसमें नाचते-नाचते मर गये लोग

यह घटना या महामारी की शुरूआत हुई 1518 में जब यूरोप के स्ट्रासबर्ग में रहने वाली एक साधारण सी औरत अपने घर से नाचते हुए बाहर निकली लोगों को लगा शायद कोई खुशी का समाचार है, लेकिन जब उस औरत का नाचना नहीं रुका तो लोगों को लगा कि या तो वो नशे में है या फिर पागल हो गई है और जिस महिला की बात की जा रही है उसका नाम ‘फ्राउ ट्रॉफी’ था. जिन लोगों ने ट्रॉफी को नाचते हुए देखा उन्होंने बताया कि आसपास कोई धुन या संगीत नहीं बज रहा था पर वह नाच रही थी और नाचे जा रही थी. उसे रोका गया पर ट्रॉफी को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था. वह अपने घर से निकलकर गली में आ गई और नाचती रही. उसके कदम गली के हर किनारे को छू रहे थे.

उसे देखने वालों का हुजूम जमा होने लगा. किसी ने उसे पागल कहा, तो किसी ने समझा कि उसे दौरा आ गया है. कुछ लोग उसे देखकर हंस भी रहे थे. हालांकि, फ्राउ ट्रॉफी इन सब बातों से बेखबर बस नाच रही थी. फ्राउ ट्रॉफी की ही तरह एक-एक करके उसके पड़ोसी भी अपने घरों से नाचते हुए बाहर निकलने लगे. वे सभी फ्राउ की तरह बेसुध थे. खास बात ये है कि इनमें से किसी के चेहरे पर भी कोई खुशी या गम का भाव नहीं था. आंखें बंद थीं और वे मग्न थे. सुबह से रात हो गई और इस संख्या में इजाफा होता चला गया. नाच जारी था, वे थक रहे थे, गिर रहे थे पर रूक नहीं रहे थे. जिनके दिल कमजोर थे वे हांफने लगे, सांस रुकने लगी और देखते ही देखते 15 लोगों की मौत हो गई.

नाच बना महामारी

डांसिंग डेथ: एक ऐसी महामारी जिसमें नाचते-नाचते मर गये लोग

करीब 24 घंटे बिना रूके नाचने के बाद भी जब यह सिलसिला जारी रहा तो प्रशासन को चिंता हुई. नाचने वालों में से 15 की मौत हो चुकी थी. नाच में शामिल लोगों की संख्या में इजाफा होता जा रहा था. कोई किसी को नाचने के​ लिए नहीं कर रहा था और अचानक ही लोग घरों से बाहर आकर नाचते हुए सड़कों पर चले जा रहे थे. नाचते हुए लोग थक कर जमीन पर गिरे, कईयों को दिल के दौरे आए और वे मर गए. जब तक प्रशासन स्थिति पर काबू पाता, तब तक मौत के इस नाच ने उस शहर के 400 लोगों की जान ले ली थी. दो-तीन दिन के इस तमाशे के बाद सब कुछ शांत हो गया, जिसके बाद इतिहासकारों ने अपनी किताबों में इस महामारी को ‘डांसिंग डेथ’ का नाम दिया. लेकिन यह कोई नहीं समझ पाया कि आखिर नाच शुरू कैसे और क्यों हुआ.

महामारी

लोगों ने ‘फ्राउ ट्रॉफी’ की तलाश करने की काफी कोशिश की पर उसका कोई सुराग नहीं मिला. वह नाचते हुए मर गई या नाचते हुए गुम गई, कोई नहीं जानता. प्रशासन के सामने दूसरी चुनौती थी, कि इस महामारी के कारणों का पता किया जाए ताकि अगली बार ऐसा कुछ होने से पहले ही स्थिति को काबू में किया जा सके, वहीं कुछ लोगों ने इसे तंत्र साधना का असर बताया, तो कुछ ने मनोवैज्ञानिक तर्क दिए. जो ईश्वर पर विश्वास करते थे उन्होंने कहा कि यूरोप में 200 से 500 ईसा पूर्व अंधकार का युग था. यानी, लोगों को चमत्कार, शैतानी ताक़तों पर विश्वास था. 14वीं और 15वीं शताब्दी में यूरोप में महिलाओं को डायन समझकर मार देना आम था. जब इस महामारी की शुरूआत हुई तब यही अंदाजा लगाया गया कि लोगों पर किसी डायन या भूत का साया था.

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