हर बड़े सफर कर शुरुआत छोटे कदम के साथ ही होती है. यह कहावत तो आप लोगों ने कई बार सुनी ही होगी, जो कि आगरा की रहने वाली एक महिला (रंजना यादव) पर यह एकदम सटीक बैठती है. क्योंकि इन्होनें अपने घर में ही मोती की खेती कर डाली, जिसके लिए उन्हें कई पापड़ भी बेलने पड़े. दरअसल रंजना ने अपने लिए एक ऐसा व्यवसाय चुना, जिसके बारे में उनके आसपास के लोग न तो जानते थे और न ही इसे मुनाफे का कारोबार मानते थे.
लेकिन इन तमाम रोक-टोक के बावजूद रंजना पीछे नहीं हटीं और मोती की खेती करने के अपने फैसले पर अडिग रहीं और इसीलिए उन्होनें सबसे पहले अपने परिवार को भरोसा दिलाने के लिए अपने घर पर मोती की खेती करने का फैसला लिया जिसके लिए उन्हें करीब 1 साल का समय लगा. तो आइए रंजना यादव की इस कामयाबी को एक बार डिटेल में जानते हैं..
पर्ल फार्मिंग के नाम से शुरू किया स्टार्ट-अप
आगरा की 27 वर्षीय रंजना यादव ने तीन साल पहले ही फॉरेस्ट्री में एमएससी की पढ़ाई पूरी की था इस दौरान उन्होनें पर्ल फार्मिंग (मोती की खेती) की तरफ ज्यादा गौर किया और इसे ही अपना व्यवसाय बनाने का फैसला किया, लेकिन परिवार का साथ नहीं मिलने के कारण पैसो की समस्या सामने आ खड़ी हुई. इसी बीच उनकी एक दोस्त ने उन्हें मोदी सरकार के स्टार्ट-अप की जानकारी दी तो उनका हौसला और बुलंद हो गया। लेकिन समस्या अब भी वही थी कि परिवार को कैसे राजी किया जाए.
इसके लिए उन्होंने सबसे पहले घर पर ही एक उदाहरण करने का सोचा जिसमें उन्होनें मोती की खेती के लिए बाथटब को चुना, गौरतलब है कि उनका यह आइडिया काम भी कर गया और रंजना को आगे बढ़ने की राह मिल गई. अब रंजना ने विधिवानी पर्ल फार्मिंग के नाम से स्टार्ट-अप भी शुरू कर दिया है. इस बारे में रंजना बताती हैं कि ” सीप(बीज) के भीतर मोती बनने की प्रक्रिया मुझे काफी हैरान करती थी, इस पूरी प्रकिया को जानने की मेरी अंदर काफी जिज्ञासा थी, इसी ने मुझे इस ओर काफी आकर्षित किया”.
मोती तैयार होने में लगता है एक साल
रंजना के मुताबिक मोती को इस तरह से तैयार करने में तकरीबन एक साल का समय लग जाता है..
“सीप लगाने से मोती तैयार होने के दौरान करीब एक साल का समय लगता है, क्योंकि सीप मिलने के बाद उन्हें एक दिन के लिए ऐसे ही छोड़ा जाता है और फिर इसके बाद अगले 7 दिनों के लिए क्षार उपचारित पानी में डुबो दिया जाता है इस दौरान रोजाना सीपों को हरे शैवाल का चारा देना होता है. तब जाकर तकरीबन एक हफ्ते बाद जब कवच और मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं तो सर्जरी कर सीप के अंदर सांचा डाल दिया जाता है.
इसके बाद बड़ी सावधानी से नायलॉन नेट और रस्सियां टांगी जाती हैं, ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि सीप को सहारा मिल सके और सालभर उन्हें कोई परेशानी न हो इस पूरी प्रकिया के दौरान पानी के तापमान की जांच करना. तालाब की सफाई और सीपों को लगातार ठीक ढंग से चारा मिलता रहे, इसका खास ख्याल रखना होता है. सही ढंग से देखभाल न होने पर 90 फीसदी सीपों के खराब होने का खतरा भी बना रहता है.”