लखनऊ: अगर इंसान कुछ पाने की कोशिश करे तो वह जरुर पा सकता है. चाहे उसके जीवन कितनी भी समस्याएं आए लेकिन वह उन समस्याओं ने लड़कर अपने भविष्य को संवार सकता है. ऐसे में चलिए आज हम आपको एक ऐसी महिला लेखिका के बारे में बताएंगे जिसने घनघोर अत्याचार से लड़कर जीवन में सफलता की बुलंदियों को प्राप्त किया.
बिना लड़े नहीं छू सकते सफलता की बुलंदियां
जानकारी के मुताबिक सन 1973 में कश्मीर में जन्मी बेबी हलदर का जीवन बहुत ही ज्यादा संघर्षों के बीच से होते हुए गुजरा है. बेबी हलदर महज 4 साल की उम्र की थी जब उनकी मां दुनिया में उन्हें छोड़ कर चली गई. बेबी का पालन पोषण उनके पिता ने ही किया. बेबी के पिता काशी बहुत ज्यादा शराब पिया करते थे, जिसके बाद वह बेबी को मारते थे. मां के गुजरने के बाद बेबी के पिता उन्हें लेकर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर रहने के लिए चले गए. जहां उन्होंने दूसरी शादी कर ली. जिसके बाद घर में सौतेली मां के आते ही उनकी जिंदगी और बेकार हो गई. वह बेबी से घर के सारे काम कराती और न काम करने पर मारती–पीटती थी.
पिता का घर छोड़ पति के घर भी नहीं मिला बेबी हलदर को सुख
वहीँ जब बेबी महज 12 साल की थी तब उनका विवाह उनसे दुगने वर्ष बड़े आदमी के साथ कर दिया गया. विवाह के बाद बेबी को लगा कि अब उनकी जिंदगी संवर जाएगी और उन्हें अत्याचारों से मुक्ति मिलेगी ,परंतु इसका उल्टा हुआ. कहते हैं कुछ लोगों की जिंदगी में भगवान दुखों के अलावा कुछ लिखता ही नहीं है. ठीक इसी तरह बेबी हलदर का दुख कम होने के बजाए बढ़ गया.
बेबी के पति ने महज 12 साल की उम्र में ही उसके पति ने रेप कर दिया. जिसके बाद वह एक बच्चे की मां बन गई. बेबी जब 15 साल की हुई तब तक वह 3 बच्चों की मान बन चुकी थी. बच्चे होने के बाद भी पति का अत्याचार कम नहीं हो रहा था. वह बेबी को रोज मारता और गन्दी-गन्दी गालिया देता था. जिसकी वजह से वह पति से बहुत परेशान हो चुकी थी.
12 साल की मासूम बेबी हलदर के पति ने किया था रेप, बनी थी एक बच्चे की मां
आखिरकार साल 1999 में वह समय आया जब बेबी ने एक साहसी निर्णय लिया. बेबी ने अपने पति का घर छोड़ कर भाग जाने का निर्णय लिया. बेबी ने अपने तीनों बच्चों को साथ लिया और घर से निकल गई. वह ट्रेन में बैठकर दिल्ली के गुरुग्राम पहुंची. जहां वह झोपड़ी बनाकर अपने बच्चों के साथ रहने लगी और गुजारा करने के लिए लोगों के घर में झाड़ू पोछा लगाने का काम करने लगी. संयोग से बेबी ने एक घर का दरवाजा खटखटाया. उस घर के मालिक कोई और नहीं बल्कि मुंशी प्रेमचंद के पोते प्रबोध कुमार थे.
जिसके बाद बेबी की किस्मत चमक गई. बेबी प्रबोध कुमार के घर में झाड़ू पोछा लगाने का काम करती थी इसी दौरान प्रबोध कुमार के घर में रखी हुई किताबों के ऊपर बार-बार बेबी नजर डालती थी. प्रबोध कुमार ने बेबी की इन हरकतों को नोटिस किया. एक दिन बेबी को पेन और कागज दे कर प्रबोध कुमार ने कहा कि वे अपने बारे में जो भी मन में आए वह सब कुछ इस कागज पर लिख दें. जब प्रबोध कुमार ने बेबी से लिखने को कहा तो उन्होंने अपने बीते हुए कल के बारे में लिखना शुरू कर दिया और वह लिखती चली गई.
प्रबोध कुमार के घर पोछा-झाड़ू करके बेबी बनी फेमस लेखिका
बेबी ने अपनी जीवन के बारे में जो कुछ भी लिखा वह प्रबोध कुमार को दिखाया. प्रबोध कुमार ने बेबी के द्वारा बांग्ला भाषा में लिखा हुआ हिंदी अनुवाद किया. प्रबोध कुमार बेबी की जीवनी पढ़कर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसकी एक किताब बना डाली. किताब का नाम रखा गया ‘आलो आंधारि’. इस किताब को पाठकों के द्वारा इतना पसंद किया गया कि यह किताब पूरे देश में धीरे-धीरे करके फैल गई. बाद में इस किताब का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया और इसे विदेशों में भी काफी पसंद किया गया. अपने जीवन की घटनाओं को कागज पर उतारने वाली बेबी हलदर देखते ही देखते एक फेमस लेखिका बन गई. जिसके बाद उन्होंने 4 किताबें और लिखीं. इतना समृद्ध होने के बाद वह आज भी प्रबोध कुमार के घर पोछा-झाड़ू करती हैं.