IAS STORY: आज कल लड़किया हर क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल कर रही है। वही ऐसी ही पटना की रहने वाली अनुपमा सिंह हैं। जिन्होंने शुरूआती शिक्षा पटना से ही पूरी की है। बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में अव्वल रही है। 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद एमबीबीएस का प्रवेश परीक्षा में सफल हुई।
फिर अनुपमा ने MS की प्रवेश परीक्षा दी उसमे भी सफलता हुई। साल 2014 मे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ़ सर्जरी की उपाधि हासिल की। फिर एक सरकारी हॉस्पिटल में एसआरसीप करने लगी। इस दौरान उनकी शादी हो गई।
शादी के कुछ समय बाद ही उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। अनुपमा के पिता एक रिटायर्ड एमआर है तथा उनकी माता एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है।
बच्चे से दूर रह कर पढ़ाई करने का लिया फैसला
अनुपमा ने देखा सरकारी हॉस्पिटल में ग्राउंड लेवल पर बहुत सारी कमियां है तथा उसका हल नहीं निकल रहा है। तब उन्हें लगा कि स्वास्थ्य प्रणाली में बदलाव की बहुत जरुरत है। वह एक डॉक्टर के तौर पर मरीजों का इलाज तो कर रही थी परंतु सिस्टम में मौजुद बहुत सारी समस्याओं पर कार्य नहीं हो पा रहा था।
उन्हें लगा कि जब तक ये सभी समस्याएं खत्म नहीं होगी तो सिर्फ मरीजों के इलाज से उनका भला नहीं हो सकता है। इसी विचार के साथ उन्होंने सिविल सर्विस की ओर रुख किया। छोटे से बच्चे के साथ पढ़ाई कर पाना बहुत कठिन कार्य है। इसलिए वह एक वर्ष का समय लेकर पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई।
वहां उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करने के लिए कोचिंग संस्थान में दाखिला लिया। उन्होंने अपने एक वर्ष के समय में अपने आप को पूरी तरह से पढ़ाई के लिए समर्पित कर दिया। अनुपमा अपने बच्चे से दूर रह कर पढ़ाई करने का फैसला तो ले लिया परंतु अपने बच्चे से दूर रहना बहुत कठिन होता है।
फिर अनुपमा दिल्ली शिफ्ट होने के बाद अपने बच्चे के लिये दिन-रात रोती रहती थी। अनुपमा के इस सपने को पूरा करने के लिए उनके पति और ननद ने काफी सहयोग दिया। उन्होंने अनुपमा को बहुत समझाया। फिर वह तैयारी में जुट गईं।
बिना स्वअध्ययन सफलता हासिल करना है कठिन
तैयारी के दौरान कई बार अनुपमा के मन में यह ख्याल आता था कि वह सब कुछ छोड़कर अपने बच्चे के पास वापस चली जाए। तब वह अपने आप को समझाती थी कि घर वापस जाने के लिए उन्हें जल्द ही लक्ष्य को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
अनुपमा ने बताया कि यूपीएससी की तैयारी के दौरान उन्हें काफी सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। वह साइंस की स्टूडेंट थी। सहायता करने के लिए उन्होंने कोचिंग संस्था में दाखिला लिया। बिना स्वअध्ययन सफलता हासिल करना बहुत कठिन है। सफलता हासिल करने के लिए अपना 100% देना पड़ता है।