देश के लिए जब कोई खिलाड़ी पदक लेकर आते हैं, तो सभी देश वासियों का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है और उनका सम्मान में झुकता है. लेकिन, जिस तरह से हमारे देश में मेडल जीतने वाले खिलाडियों का हाल है, उससे यही सिर शर्म से झुक जाते हैं. आज हम ऐसे ही एक खिलाड़ी के बारे में बात करेंगे जिसे हालात ने आज देसी शराब बेचने पर मजबूर कर दिया है.
2011 के 34वें राष्ट्रिय खेलों में कराटे में सिल्वर मैडल
आपको बता दें कि झारखंड की रहने वाली बिमला 2011 के 34वें राष्ट्रिय खेलों में कराटे में सिल्वर मैडल लाने वाली आज घर चलाने के लिए शराब बेच रही हैं. उसे सरकार की तरफ़ से एक सरकारी नौकरी का इंतज़ार है और जब तक वहां से कुछ नहीं हो जाता, उसे यही काम करना पड़ेगा. बिमला ने गरीबी को मात देते हुए अपने राज्य के लिए पदक जीते थे, झारखंड के लिए नाम कमाया. घर चलाने के लिए लॉकडाउन के दौरान उसने नए प्रतिभावान कराटे प्लेयर्स को कोचिंग देनी भी शुरू की लेकिन इसे भी बंद करना पड़ा.
शराब बेचने पर मजबूर
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बिमला ने एक महीने कोचिंग चलाने की कोशिश की, लेकिन लॉकडाउन में उसे ये भी बंद करना पड़ा. इससे पहले वो 2012 की अंतरराष्ट्रीय Kudo चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल लेकर आई है. जब कहीं से मदद नहीं मिली, तो उसे पेट पालने के लिए देसी शराब बेचने पड़ी. बिमला के पिता किसान है खेती करके परिवार के 6 सदस्यों का भरण–पोषण करते हैं लेकिन अब उनकी हालत सही नहीं तो परिवार की ज़िम्मेदारी भी बिमला पर आ गई है. वो ग्रेजुएशन कर चुकी है और बचपन से ही अपने नाना के साथ रहती है. नाना को 6 हज़ार रुपये पेंशन मिलती है लेकिन उस पेंशन में सिर्फ़ उनकी दवाइयों का ख़र्च निकल पाता है.
मीडिया से बात करते वक्त बिमला ने बताया कि वो अपने ही घर में Hadiya बेचती है. रोज़ाना लगभग 70-80 गिलास बिक जाते हैं. एक गिलास की कीमत 4 रुपये है.वो जितना भी कमाती है, वो घर की ज़रूरतों में ही लग जाता है. उसका दावा है कि वो उन 33 खिलाडियों में से एक है जिन्हें झारखण्ड सरकार की डायरेक्ट पे स्कीम के तहत नौकरी मिलनी थी लेकिन वो अभी भी इंतज़ार ही कर रही है.