कभी माँ के साथ गलियों में घूम कर बेचता था चूड़ी, अब बना आईएएस

हर इंसान का अपना एक जीवन का लक्ष्य होता है। किसी के सपनों के उड़ान किस्मत दे देती है तो किसी को खुद कड़ी मेहनत करके उनकों पूरा करना पड़ता है। आज हम आपकों एक ऐसे युवक की कहानी बताने जा रहे है, जिसने दिन रात कड़ी मेहनत करके आईएएस बनने जैसे अपने लक्ष्य को पूरा किया। आइए जानते है पूरी कहानी…..

कौन है वो युवक

कभी माँ के साथ गलियों में घूम कर बेचता था चूड़ी, अब बना आईएएस

चूड़ी ले लो…चूड़ी…’ चूड़ी बेचने वाली यह आवाज कभी गांव की गलियों में हर दिन सुनाई पड़ती थी। पहले मां आवाज लगाती और फिर उनका पुत्र बार-बार इसे दोहरा कर खरीदार जुटाता। इस युवक का नाम था रमेश घोलप, जो अपनी मां के साथ गली गली जाकर चूड़ी बेचता था।

कभी माँ के साथ गलियों में घूम कर बेचता था चूड़ी, अब बना आईएएस

आज वो उस बच्चे की पहचान आज आईएएस रमेश घोलप के रूप में सबके सामने है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिला के वारसी तहसील स्थित उसके गांव ‘महागांव’ में रमेश की संघर्ष की कहानी हर जुबान पर है। गरीबी से संघर्ष कर आईएएस बने रमेश घोलप अभी बतौर एसडीओ बेरमो में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

ऐसे दिए सपनों को पंख

कभी माँ के साथ गलियों में घूम कर बेचता था चूड़ी, अब बना आईएएस

दिनभर चूड़ी बेचने के बाद जो पैसे जमा होते थे, उसे पिताजी शराब पर खर्च कर देते थे। न रहने के लिए घर था और पढ़ने के लिए पैसे। मौसी के इंदिरा आवास में रहते थे। मैट्रिक परीक्षा से एक माह पूर्व ही पिता का निधन हो गया। इस विपरीत हालात में मैट्रिक परीक्षा दी और 88.50% अंक हासिल किया।

रमेंश ने बताया कि मैंने 2005 में इंटर पास किया और 2008 में डिप्लोमा करके शिक्षक की नौकरी की। यहां शिक्षकों के आंदोलन का नेतृत्व किया। आंदोलन करते हुए मांग पत्र देने तहसीलदार के पास जाता था। बस इसी ने मन में कौतुहल मचा दी। आखिर ऐसा क्यों कि कोई तहसीलदार और मैं सिर्फ शिक्षक। मैंने तहसीलदार बनने की ठान ली। मैंने वर्ष 2010 में अपनी मां को पंचायत के मुखिया के चुनाव में खड़ा किया। हमें लगता था जीत हमारी होगी, पर मां हार गईं। इसके बाद मैंने गांव छोड़ दिया। मैंने तय कर लिया कि अब गांव तभी आएंगे, जब अफसर बन जाएंगे।

खूब की पढ़ाई, बने आईएएस

कभी माँ के साथ गलियों में घूम कर बेचता था चूड़ी, अब बना आईएएस

कलेक्टर बनने का सपना आंखों में संजोए रमेश पुणे पहुंचे। पहले प्रयास में विफल रहे, पर वे डटे रहे। साल 2011 में पुन: यूपीएससी की परीक्षा दी। इसमें रमेश 287वां स्थान किया। खुशी तब दोगुनी हो गई, जब वे स्टेट सर्विस की परीक्षा में राज्य में प्रथम आ गए।

मेरा नाम दिव्यांका शुक्ला है। मैं hindnow वेब साइट पर कंटेट राइटर के पद पर कार्यरत...