कबाड़ी का बेटा बनेगा गांव का पहला एमबीबीएस डॅाक्टर, संघर्ष सुनकर भर आयेंगी आंखे

छात्र अरविन्द की कहानी उन लाखों मेडिकल छात्रों के लिए प्रेरणा हैं, जो संघर्ष व अभावों का सामना करते हुए कई बार लक्ष्य की राह छोड़ देते हैं। अरविन्द ने यह साबित कर दिया कि मजबूत इरादा रखें तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं है। अरविन्द के इरादों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उसने एक सामान्य छात्र रहते हुए यह उपलब्धि हासिल की। आपको हम अरविन्द की कहानी बता रहे हैं

अरविन्द अपने गांव का पहला डॅाक्टर बनेगा

कबाड़ी का बेटा बनेगा गांव का पहला एमबीबीएस डॅाक्टर, संघर्ष सुनकर भर आयेंगी आंखे

अरविन्द ने गोरखपुर के सरकारी स्कूल से पढ़ा, रोजाना साइकिल से 8 किलोमीटर आताजाता था। 10वीं कक्षा 48 प्रतिशत एवं 12वीं कक्षा 60 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। इतने कम अंकों के बाद भी डॉक्टर बनने का सपना देखा,खुद को तैयार किया। अरविन्द ने बताया कि एलन का मार्गदर्शन टर्निंग प्वाइंट रहा। अरविन्द ने कहा कि मैं अपनी सफलता का श्रेय पूरी तरह से कोटा को देना चाहता हूं। यदि मैं कोटा नहीं आता तो अपनेआपको इतना नहीं निखार पाता। मैं एक सामान्य स्टूडेंट था, जिसने 12वीं में मात्र 60 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। दसवीं में भी सैकंड डिवीजन था। कोटा में माहौल मिला तो मैं निखरता चला गया। यहां एलन करियर इंस्टीट्यूट में पढ़ाई में किसी तरह का भेदभाव नहीं होता है। हर स्टूडेंट को हर सुविधा दी जाती है और उसकी प्रतिभा के साथ न्याय किया जाता है।

अभावों में पलेबढ़े और लगन से पढ़ाई की

कबाड़ी का बेटा बनेगा गांव का पहला एमबीबीएस डॅाक्टर, संघर्ष सुनकर भर आयेंगी आंखे

अभावों में पलेबढ़े और लगन से पढ़ाई करने वाले उत्तरप्रदेश के छात्र अरविन्द ने कोटा रहकर नीट परीक्षा में सफलता हासिल की है।परिवार को गांव में सम्मान दिलाने पिता की शर्म को गर्व में बदलने का इरादा लिए ये छात्र दो साल पहले एलन कोटा आया था। यहां मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी की और अब मेडिकल कॉलेज में दाखिले की तैयारी है। डॉक्टर बनकर वो अपने मातापिता का गौरव बनना चाहता है।

अरविन्द ने नीट-2020 में 620 अंक प्राप्त किए। आल इंडिया 11603 एवं ओबीसी कैटेगिरी रैंक 4392 प्राप्त की है।अरविन्द कुमार मूलत: उत्तरप्रदेश में कुशीनगर के बरडी गांव का निवासी है। अरविन्द के पिता भिखारी कुमार कबाड़ी का काम करते हैं। वे साइकिल रिक्शे पर गलीगली घूमकर कबाड़ खरीदते हैं और इसे बेचकर परिवार की आजीविका चलाते हैं। गांव में काम नहीं था,

अरविन्द र्थोपेडिक सर्जन बनना चाहता है

कबाड़ी का बेटा बनेगा गांव का पहला एमबीबीएस डॅाक्टर, संघर्ष सुनकर भर आयेंगी आंखे

पारिवारिक परिस्थितियां विपरीत थी, ऐसे में पांचवी तक पढ़ेलिखे पिता भिखारी ने गांव से भी बहुत दूर जमशेदपुर टाटा नगर में जाकर यह काम किया। मां ललिता देवी निरक्षर है और घर का काम करती है। उनकी इच्छा थी कि अरविन्द डॉक्टर बने। इसके लिए उन्होंने खुद संघर्ष किया और बेटे को मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट की तैयारी करने कोटा भेजा। एलन में एडमिशन दिलवाया, पहले प्रयास में रैंक अच्छी नहीं आई तो फिर मेहनत की। दूसरे प्रयास में सफलता हासिल की।

गांव का पहला डॉक्टर होगा अरविन्द के अनुसार वह अपने गांव का पहला डॉक्टर होगा। उसने बताया कि छोटा भाई अमित कुमार शिक्षक भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहा है। एमबीबीएस करने के बाद आर्थोपेडिक सर्जन बनना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि परिवार को सम्मान मिले, पिता को पहले भिखारी कबाड़ी कहा जाता था अब उन्हें डॉक्टर के पिता के रूप में जाना जाएगा। अरविन्द की कहानी हर उस छात्र के लिए प्रेरणा का श्रोत है जो असुविधा के कारण अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते है।

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