आपने आज तक जानवरों को लेकर लोगों की दीवानगी के बहुत किस्से सुने होंगे। साथ ही जानवरों की वफादारी के भी बहुत किस्से सुने होंगे पर हम आज आपको जापान के एक ऐसे कुत्ते के बारे में बताएंगे, जिसकी वफादारी की दुनिया मिसाल देती है। जिस कुत्ते ने अपने मालिक के लिए 9 वर्ष, 9 महीने 15 दिन तक लगातार इंतजार किया।
प्रोफेसर को ऐसे मिला हचीको
1924 की बात है। ईजबूरो ईनो नाम के एक शख्स टोक्यो यूनिवर्सिटी में एग्रीकल्चर साइंस के प्रोफेसर थे। उन्हें काफी दिनों से एक प्यारे से कुत्ते की तलाश थी। आखिरकार उन्हें एक प्यारा सा पपी मिला, जो अकीटा ब्रीड का था। प्रोफेसर उसे प्यार से उसे हचीको बुलाते थे। कुछ समय बाद ही प्रोफेसर और हचीको आपस में काफी घुल मिल गए। प्रोफेसर ईनो के घर में हचीको पारिवारिक सदस्य के तौर पर रहने लगा। हचीको प्रोफेसर को हर रोज सेंट्रल टोक्यो के शिबूया रेलवे स्टेशन तक छोड़ने जाता था।
प्रोफेसर के जाने के बाद हचीको स्टेशन पर ही घंटों इंतजार करता। जब प्रोफेसर काम से वापस लौटते तो हचीको उन्हें लेकर घर आता। इन दोनों के लिए ये एक नियमित दिनचर्या बन गई थी। 21 मई 1925 को हर दिन की तरह हचीको प्रोफेसर को छोड़ने गया और स्टेशन पर बैठ कर इंतजार करने लगा। अचानक एक दिन प्रोफेसर ईनो की यूनिवर्सिटी में लेक्चर के दौरान ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई। लेकिन अपने मालिक की मौत से अनजान हचीको उनका स्टेशन पर उनका इंतजार करता रहा।
फिर प्रोफेसर का गॉर्डनर हचीको को अपने घर ले आया, लेकिन प्रोफेसर के लिए हचीको का प्यार कम नहीं हुआ। वो हर रोज प्रोफेसर ईनो का स्टेशन पर इंतजार करता। सुबह-शाम वो प्रोफेसर की ट्रेन का बेसब्री से इंतजार करता पर ट्रेन से प्रोफेसर को न निकलता देख उदास होकर वापस चला आता। हचीको ने ये काम 9 साल, 9 महीने और 15 दिन तक लगातार किया।
धीरे-धीरे स्टेशन पर आने वाले यात्रियों ने हचीको की इन गतिविधियों को गौर करना शुरू किया। इसके बाद हचीको कि लोकप्रियता काफी बढ़ गयी। जापान के एक बड़े न्यूजपेपर ने हचीको के ऊपर स्टोरी की। इसके बाद वो देश भर में लोकप्रिय हो गया। लोगों ने उसे प्यार से ‘चुकेन हचीको’ बुलाना शुरू कर दिया। इसका मतलब ‘फेथफुल डॉग’ होता है। हचीको देश भर में वफादारी का मिसाल बन गया।
हचीको को वफादारी के लिए मिला सम्मान
हचीको के मालिक के प्रति इस प्यार को देखते हुए 1934 में शिबूया रेलवे स्टेशन पर उसकी पीतल की मूर्ति लगाई गई। हचीको इस फंक्शन में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुआ था। दूसरे विश्व युद्ध के समय जब सेना को पीतल की जरूरत पड़ी तो हचीको की मूर्ति को गलाकर इस्तेमाल कर लिया गया। 1948 में फिर से हचीको की मूर्ति बनवाई गई।
पहली बार जिस आर्टिस्ट ने हचीको की मूर्ति बनाई थी, उसी के बेटे ने दोबारा उसकी मूर्ति बनाई। तब से लेकर आज तक वो मूर्ति वैसी ही है। हचीको की ये मूर्ति रेलवे स्टेशन के एंट्रेंस के पास लगी है। स्टैच्यू का नाम ‘हचीको गुची’ है।जिसका मतलब होता है हचीको एंट्रेंस/ एग्जिट। ये शिबूया रेलवे स्टेशन के 5 एग्जिट में से एक है। 2015 में टोक्यो यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ एग्रीकल्चर में प्रोफेसर ईनो और हचीको की मूर्ति लगाई गई। इस मूर्ति में ये दिखाने की कोशिश की गई है कि प्रोफेसर हचीको से मिलने वापस आए हैं।
जब प्रोफेसर की राह ताकते ताकते हचीको मर गया……
18 मार्च 1935 को हचीको की कैंसर की वजह से मौत हो गई। मौत के समय भी हचीको रेलवे स्टेशन के आस-पास ही था। हालांकि हचीको की मौत टर्मिनल कैंसर की वजह से हुई है, ये बात 2011 में पता चली. हचीको की समाधि प्रोफेसर ईनो की समाधि के बगल में ही बनाई गई है।
हचीको की वफादारी पर फिल्में भी बनी हैं
– 2015 में भारत में हचीको के ऊपर तेलगु भाषा में फिल्म बनी। उस फिल्म का नाम टॉमी था।
– 1987 में जापान में इसके ऊपर फिल्म भी बनी। जिसका नाम “हचीको मोनो गटारी” है।
– 2009 में हॉलीवुड ने भी हचीको के ऊपर फिल्म बनाई, जिसका नाम ‘हाची–ऐ डॉग टेल’ था। जिसमें हॉलीवुड सुपरस्टार रिचर्ड गेर ने काम किया था।
यहाँ देखें वीडियो
https://www.youtube.com/watch?v=-g9Bl2PWdgY