Omg : कभी साबित ही नहीं हो सकेगा कि हुआ था संजीत यादव की हत्या

कानपुर- लैब टेक्नीशियन संजीत यादव का शव बरामद नहीं हुआ तो कानूनन सात वर्षों तक उसकी मौत साबित नहीं की जा सकती। संजीत के परिजनों के पास इस बात का कोई सुबूत नहीं होगा कि उसकी मौत हो चुकी है। पुलिस भी सिर्फ दावा ही कर सकती है कि उसकी हत्या कर दी गई है।

ज्ञात हो कि 22 जून की रात लैब टेक्नीशियन संजीत यादव पैथालॉजी में सैंपल देने के लिए निकला था। संजीत रास्ते से ही लापता हो गया। पिता चमनलाल ने राहुल के खिलाफ बेटे के अपहरण का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी। 13 जुलाई को पिता ने पुलिस के कहने पर फिरौती के 30 लाख रुपए भी दिए थे। इसके बावजूद अपहृत बेटा नहीं मिला। अब उसके हत्या होने की पुष्टि पुलिस ने कर दी है।

स्थानीय निकाय द्वारा जारी डेथ सर्टिफिकेट ही होता देश भर में मान्य

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मौत का सुबूत स्थानीय निकायों जैसे नगर निगम से जारी किया जाने वाला डेथ सर्टिफिकेट ही है जो देश भर में मान्य है। इसके लिए अंतिम संस्कार का सुबूत जरूरी है। कब्रिस्तान या श्मशान की रसीद आवश्यक है। नगर निकायों के नियमों के मुताबिक किसी की मौत पर चिकित्सक का भी प्रमाण पत्र आवश्यक होता है। किसी चिकित्सक ने मौत का प्रमाण पत्र नहीं दिया है तो शपथ पत्र लगाना होता है। यदि घर पर मौत हुई तो पड़ोसियों की बयान आवश्यक है। पड़ोसियों के बयान के आधार पर डेथ सर्टिफिकेट जारी किया जा सकता है।

असामान्य मौत पर लगती पुलिस की रिपोर्ट

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यदि मौत असामान्य हुई है तो पुलिस की रिपोर्ट भी लगती है। हालांकि यह सब उसी अवस्था में चाहिए जब शव मिला हो और अंतिम संस्कार हो गया हो। बिना इसके किसी के भी दावा करने से नहीं माना जा सकता कि मौत हो चुकी है। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक डेथ सर्टिफिकेट नहीं बनाया जा सकता। परिजन अगर कहीं क्लेम भी करना चाहें तो उनके लिए भारी मुश्किल और बाधा यही होगी कि हर जगह सर्टिफिकेट मांगा जाएगा।

जिम्मेदार बोले मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए शव होना और अंतिम संस्कार का प्रमाण होना जरूरी है। अगर शव नहीं मिलता है तो नियमत: सात वर्ष के बाद मौत मान ली जाती है। हालांकि इसके लिए भी कोर्ट से ऑर्डर जारी होता है। वहीं की घोषणा के आधार पर सर्टिफिकेट बनाया जाता है। – डॉ. अजय संखवार, नगर स्वास्थ्य अधिकारी

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