शबनम के बेटे ने लगाई गुहार, कहा &Quot;मेरी माँ है उसे जीवन दान दे दे&Quot;

यूपी के अमरोहा जिले का मामला है, जहाँ पर शबनम नाम की एक महिला ने अपने प्रेमी संग मिलकर घर के 7 सदस्यों का हत्या कर दी। हत्या का कारण ये है कि वह अपने प्रेमी के संग शादी करना चाह रही थी लेकिन घर के सदस्य इस शादी के खिलाफ थे। जिसके बाद शबनम ने सोची की घर के सारे सदस्य को अगर हटा दिया जाए तो प्रेमी के संग शादी भी कर सकती है और पूरा संपति भी मिल सकता है।
लेकिन शायद ये भूल चुकी थी कि अपराध कभी छुपाया नही जा सकता और पुलिस ने शबनम और उसके प्रेमी को धर दबोचा। जिसके बाद दोनों को अदालत ने फाँसी की सजा सुना दी। जिसके बाद इस मामले को लगभग 13 साल बीत चुके हैं।

जाने कैसे 7लोगो की हत्या की और पकड़ी गई

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ये मामला 2008 का है जिसमे एक ही घर के 7 सदस्यों को मार दिया गया। घर की एक बेटी ने सारे रिश्ते भूल कर माता पिता, भाई बहन समेत एक छोटा सा मासूम समेत कुल 7 लोगो की हत्या कर दी। लड़की अपने प्रेमी के साथ मिलकर इस साजिस को अंजाम दी। शबनम एक पढ़ी लिखी थी , शबनम अपने प्रेमी सलीम के साथ शादी रचना चाह रही थी और भविष्य के लिये प्रोपर्टी भी लेनी चाह रही थी।

शबनम परिवार को चाय में नींद की गोली मिला कर दे दी जिसके बाद जब सब सो गए तब प्रेमी के साथ मिलकर हत्या कर दी। जब इस बात की खबर पुलिस को मिली तब शबनम ने बताई की डकैतों ने घर मे घुस कर पूरे परिवार को मार डाला वह इस लिये बच गई क्योंकि वह छत पर सोई हुई थी।

सिम कार्ड के जरिये खुला हत्या का राज

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पुलिस जब जांच की तब चायपत्ती के डिब्बे में एक सिम कार्ड मिला इस सिम कार्ड के जरिये शबनम सलीम से बात करती थी। जिससे सारे राज खुल गए। पुलिस जब दोनो से पूछा तब सारे जुल्म कबूल कर लिए। जिसके बाद जेल भेज दिया गया। 8 महीने बाद शबनम ने जेल में एक बच्चे को जन्म दी। वही बच्चा आज शबनम के जीवनदान के लिए राष्ट्रपति से अपील किया है।

अमरोही के जिला अदालत में सुनवाई

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जब ये मामला अमरोहा के जिला अदालत में पहुची तो अदालत ने 2010 में फांसी की सजा सुनाई। जिसके बाद ये केस इलाहाबाद के हाईकोर्ट फिर सुप्रीमकोर्ट तक गया लेकिन जो सजा सुनाई थी वह बरकरार रही। शबनम की दया याचिका 2016 में राष्ट्रपति के पास पहुची लेकिन ये सजा खारिज हो चुकी थी।
शबनम इस वक्त रामपुर जेल में बंद है और रामपुर जेल ने अमरोहा की जिला अदालत से शबनम की फांसी के लिए डेथ वॉरेंट जारी करने के लिए याचिका लगाई है. इस मामले पर कल अमरोहा की जिला अदालत में सुनवाई होनी है. अब सवाल ये है कि क्या एक बेटे को उसकी मां मिलेगी या शबनम को फांसी होगी?

13 साल का शबनम का बेटा

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दरअसल शबनम जेल में जिस बच्चे को जन्म दी थी कानून के मुताबिक उसे 6 साल तक माँ के साथ ही रहना पड़ता है। और वह बच्चा 6 साल तक माँ के साथ जेल में बिताया और अपने माँ के साथ जेल में सुख दुख का समय भी देखा और जेल के रहन सहन और बचपना बिता दिया। वही अब ये बच्चा13 साल का हो गया है। जेल में 6 साल के बाद नही रखा जा सकता जिसके बाद ये बच्चा किसके साथ रहे न ही शबनम के परिवार का कोई सदस्य था न कि सलीम के घर वाले अपनाना चाहते थे। जिसके बाद बच्चे के लिये उस्मान और वंदना सामने आए । उस्मान शबनम के कॉलेज में 2 साल जूनियर थे।

बच्चे के गार्जियन शबनम की फांसी की सजा चाहते हैं

शबनम का बच्चा आज एक अच्छी परवरिश जी रहा है एक अच्छी पढ़ाई पढ़ रहा है। लेकिन आज भी ये बच्चा दोहरी ज़िंदगी जी रहा है क्योंकि आज भी इसे जेल में जाना पड़ता है मिलने के लिए। एझ4बच्चे के गार्जियन यानी कि वंदना चाहती है कि जल्द से जल्द ये केस खत्म हो जाये और शबनम को फांसी हो जाये ताकि जेल न जाना पड़े मिलने के लिए। और वंदना कानूनी तौर पर गोद ले सके इस बच्चे को।

मथुरा फाँसी घर के बाहर तेज हुई हलचल

शबनम के बेटे ने लगाई गुहार, कहा &Quot;मेरी माँ है उसे जीवन दान दे दे&Quot;

अमरोहा में शबनम के चाचा चाची रह रहे हैं। 13 साल बीतने के बाद अब ये मांग कर रहे हैं कि शबनम को फाँसी की सजा न हो। लेकिन अदालत अपने फैसले पर ही बनी हुई है क्योंकि कानून भावनाओं से नही बल्कि सबूतों से चलती हैं। यूपी के मथुरा में एक मात्र घर है जहाँ महिला फाँसी घर है। लेकिन इस फाँसी में 1947 से लेकर अब तक कोई फाँसी नही दी गयी है। वही शबनम के जो वकील है वह बचाब के लिये कानूनी तौर तलास रहे है।

“होगी फाँसी या होगा माफ ” एक मिसाल बनेगा

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शबनम का जो प्यार था वह अब हवा हो गया है जिस प्रॉपर्टी के लिये शबनम के सब की अब वह दान करना चाह रही है। शबनम के इस 7 खून को लेकर क्या फाँसी होगी या माफ होगा यह एक मिसाल बनेगा।

यूपी के राज्यपाल को दयाचिक

शबनम के बेटे ने लगाई गुहार, कहा &Quot;मेरी माँ है उसे जीवन दान दे दे&Quot;

एक एनजीओ ने रामपुर जेल के माध्यम से यूपी के राज्यपाल के पास याचिका दायर भेजी है। जिसमे सुप्रीमकोर्ट में इस मामले में शबनम के केस को लेकर पुनर्विचार करने की दाखिल की जा सकती है। लेकिन 1947 के बाद स्वतंत्र भारत में पहली बार ऐसा होगा की किसी महिला को फाँसी होगी।