नई दिल्ली: CAA के विरोध में शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज बुधवार को अपने फैसले में कहा कि कोई भी व्यक्ति या समूह सार्वजिनक स्थानों को ब्लॉक नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पब्लिक प्लेस पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा नही किया जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए थी, जो उसने नहीं की. कोर्ट ने यह भी उम्मीद जताई है कि भविष्य में ऐसी स्थिति नहीं बनेगी.
सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चित काल के लिए कब्जा नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा CAA के विरोध में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे, रास्ते को प्रदर्शनकारियों ने ब्लॉक किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट से अलग–अलग फैसला दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर अनिश्चित काल तक कब्जा नहीं किया जा सकता है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन और विरोध में लोगों के विचार हैं. आज के दौर में सोशल मीडिया पर होने वाली चर्चा से भी भावनाएं और तेज़ होती हैं. विरोध करने वालों ने प्रदर्शन के ज़रिए अपनी बात रखी. लेकिन एक अहम सड़क को लंबे समय तक रोक देना सही नहीं था.
विरोध करना लोगों का हक है. लेकिन अधिकार की सीमाएं हैं
जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है, “संविधान के अनुच्छेद 19 1(a) के तहत अपनी बात कहना और 19 1(b) के तहत किसी मसले पर शांतिपूर्ण विरोध करना लोगों का संवैधानिक हक है. लेकिन इस अधिकार की सीमाएं हैं. सार्वजनिक जगह को अनिश्चितत काल तक नहीं घेरा जा सकता. दूसरे लोगों के आने–जाने को बाधित नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए. इस मामले में भी कार्रवाई होनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं किया गया.
100 दिनों से ज्यादा दिन तक चला था धरना
दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ करीब 100 दिनों तक लोग सड़क रोक कर बैठे थे. दिल्ली को नोएडा और फरीदाबाद से जोड़ने वाले एक अहम रास्ते को रोक दिए जाने से रोज़ाना लाखों लोगों को परेशानी हो रही थी. इसके खिलाफ वकील अमित साहनी और बीजेपी नेता नंदकिशोर गर्ग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. कोर्ट ने पुलिस को भीड़ पर कार्रवाई का निर्देश देने की बजाय लोगों को समझा कर हटाना उचित समझा. इस काम के लिए 2 वार्ताकार संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन को नियुक्त कर दिया. इस बीच कोरोना के चलते कोर्ट का सामान्य कामकाज बाधित हो गया. 21 सितंबर को मामला जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने लगा. उस दिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जजों को बताया कि लॉकडाउन लागू होने के बाद प्रदर्शकारियों को सड़क से हटा दिया गया था. इस जानकारी के बाद कोर्ट ने मामले पर आगे सुनवाई को गैरज़रूरी माना.याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अनुरोध किया गया कि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचाव के लिए वह कुछ निर्देश दें. जजों ने भी माना कि लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन के अधिकार और लोगों के मुक्त आवागमन के अधिकार में संतुलन को लेकर स्पष्टता की ज़रूरत है.