नई दिल्ली- पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का खौफ फैला हुआ है, वहीं दूसरी ओर दुनिया भर में कोरोना वायरस की वैक्सीन के ट्रायल जारी हैं। पर अभी तक उम्मीदों के मुताबिक सफलता न मिल सकी है। इस बीच वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। वैज्ञानिकों ने 21 ऐसी मौजूदा दवाओं का पता लगाया है जो कोरोना वायरस को कॉपी बनाने से रोकती हैं। ये शोध अमेरिका के सैनफोर्ड बर्नहम प्रीबाईस मेडिकल डिस्कवरी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने की है।
वैज्ञानिकों के इस शोध से कोरोना वायरस के इलाज में मदद मिल सकती है। वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के प्रतिरूप को रोकने के लिए दवाओं के सबसे बड़े संग्रह में से एक का विश्लेषण किया। लैब टेस्ट में एंटीवायरल एक्टिविटी वाले 100 अणु पाए गए।
ये स्टडी जर्नल नेचर में प्रकाशित हुई है स्टडी के अनुसार इनमें से 21 दवाएं वायरस को फिर से बनने से रोकती हैं और ये दवाएं मरीजों के लिए सुरक्षित हैं। इनमें से चार कंपाउंड को रेमडेसिवीर के साथ मिलाकर कोरोना का इलाज किया जा सकता है।
छोटे जानवरों पर हो रहा ट्रायल
स्टडी के लेखक और सैनफोर्ड बर्नहम प्रीबाईस में इम्यूनिटी प्रोगाम के डायरेक्टर सुमित चंदा ने बताया, ये स्टडी कोरोना वायरस के मरीजों के लिए संभावित चिकित्सीय विकल्पों के बारे में बताती है, खास बात ये है कि इनमें से पहले से कई मॉलिक्यूल्स क्लिनिकल डेटा में सुरक्षित पाए गए हैं। उन्होंने बताया, ये रिपोर्ट वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक बड़ा हथियार साबित हो सकती है।
फिलहाल वैज्ञानिक इन 21 कंपाउंड की टेस्टिंग छोटे जानवरों पर कर रहे हैं। अगर ये स्टडी कारगर साबित होती है तो वैज्ञानिक कोरोना के इलाज के लिए एफडीए से इसके क्लीनिकल ट्रायल की इजाजत मांगेंगे।
रेमडेसिवीर दवा के पूरक की हो रही खोज
सुमित चंदा ने कहा, रेमडेसिवीर दवा अस्पताल में मरीजों के रिकवरी टाइम को कम करने में कामयाब हुई है, लेकिन यह दवा सभी लोगों पर काम नहीं करती है। उन्होंने कहा कि सस्ती, प्रभावी, और आसानी से उपलब्ध ऐसी दवाएं खोजी जा रही हैं, जो रेमडेसिवीर की पूरक बन सकें और जिन्हें संक्रमण का पहला लक्षण दिखने पर ही दिया जा सके।
इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने वायरस से संक्रमित होने वाले व्यक्तियों के फेफड़े की बायोप्सिस पर दवाओं के असर की भी जांच की। वैज्ञानिकों ने पाया कि वायरस का प्रतिरूप बनाने से रोकने वाली इन 21 में से 13 दवाएं पहले से ही क्लिनिकल ट्रायल में हैं और जिन्हें कोविड-19 के मरीजों के इलाज में कारगर माना जा रहा है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि इनमें से 2 को पहले ही यूएस फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की तरफ से मंजूरी मिल चुकी है। ये दवाएं एस्टेमिजोल और क्लोफाजिमिन हैं जबकि रेमडेसिवीर को इमरजेंसी में इस्तेमाल करने की मंजूरी मिली हुई है।
धोखेबाज और षड्यंत्रकारी वायरस है कोरोना
कई महीने तक लगातार खोज के बावजूद ज्यादातर वैज्ञानिक कोरोना वायरस की संरचना को समझने में नाकाम रहे हैं। यह वायरस शरीर में जाकर कैसे कमजोर इम्युनिटी के लोगों को अपना शिकार बनाता है, ये अभी तक रहस्य बना हुआ है। कुछ एक्सपर्ट की नजर में तो यह वायरस षड्यंत्रकारी भी है, जो धोखा देकर कोशिकाओं में प्रवेश करता है। एक शोध के मुताबिक, सार्स-सीओवी-2 बड़ी चालाकी से शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करता है। यह ठीक बिल्कुल वैसा है, जैसे कोई चोर अलार्म डिएक्टिवेट होने के बाद ही बिल्डिंग में प्रवेश करता है।
कोरोना वायरस एनएसपी 16 नाम का एक एंजाइम प्रोड्यूस करता है, जो कि इसके मैसेंजर आरएनए कैप को मोडिफाई करने का काम करता है। मैसेंजर आरएनए जेनेटिक कोड को रूप बदलकर आगे बढ़ाने का काम करता है। इसके बाद वायरस इम्यून से बचकर शरीर में प्रवेश कर जाता है और जब तक टी-सेल्स वायरस को टारगेट बनाने के लिए तैयार होते हैं, तब तक एनएसपी16 एंजाइम इसे नया रूप देकर बचा लेता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि वायरस की रूप बदलने की कला एक छलावरण है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास हेल्थ साइंस सेंटर के शोधकर्ता योगेश गुप्ता ने कहा वायरस के रूप बदलने के कारण बॉडी सेल्स उसे पहचानने में धोखा खा जाते हैं। परिणामस्वरूप कोशिकाएं वायरस के मैसेंजर आरएनए को ही अपने सेल्स का कोड मान लेती हैं।
एनएसपी 16 की संरचना पर खोज के दौरान मिली जानकारी
एनएसपी 16 की संरचना पर खोज के दौरान ही शोधकर्ताओं को ये जानकारियां मिली हैं। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि एनएसपी 16 एंजाइम का थ्रीडी स्ट्रक्चर कोविड-19 से लड़ने के लिए एंटीवायरल ड्रग बनाने और कोरोना वायरस के उभरते संक्रमण से निजात दिलाने की राह आसान करेगा।
डॉ. गुप्ता का दावा है कि दवा में मौजूद छोटे-छोटे अणु एनएसपी 16 के कारण वायरस में हो रहे संशोधन को रोकने का काम करेंगे। इसका परिणाम ये होगा कि बॉडी इम्यून सिस्टम वायरस की पहचान कर लेगी और वक्त रहते उन्हें टारगेट बना लेगी।
डॉ. योगेश गुप्ता की स्टडी ने कोविड-19 के एक महत्वपूर्ण एंजाइम की थ्रीडी संरचना को खोजा है, जो इसकी प्रतिकृति के लिए जरूरी है। इसमें पाया गया एक पॉकेट एंजाइम को बाधित करने का काम कर सकता है. सैन एंटोनियो में लॉन्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर और डीन रॉबर्ट ह्रोमस ने इसे वायरस को समझने में एक बड़ी कामयाबी बताया है।